कोविड 19: सरकारी आंकड़ों की अपेक्षा 10 गुना अधिक मौतें, मोदी सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री बोले ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई किसी की मौत

स्वास्थ्य राज्य मंत्री के राज्य सभा के बयान के बाद तो देश के सर्वोच्च न्यायालय समेत तमाम उच्च न्यायालयों को भी शांति से बैठ कर सोचना चाहिए की न्यायाधीशों ने ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए अपना समय क्यों बर्बाद किया और क्यों बार-बार सरकारों को कटघरे में खड़ा किया.....

Update: 2021-07-21 09:55 GMT

(अमेरिका के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट नामक संस्था ने भारत में कोविड 19 से होने वाली मौतों का गहराई से अध्ययन किया है।)

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार न्यूज। वैसे तो इस सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्री और प्रवक्ता बड़ी मुश्किल से और कभी-कभी ही सच बोलते हैं, पर कोविड 19 का विषय ऐसा है जिसपर प्रधानमंत्री समेत किसी मंत्री ने आज तक केवल झूठ ही बोला है। झूठ भी ऐसा है, जिसके बाद झूठ की परिभाषा भी बदलनी पड़ेगी, और झूठ, फरेब, लूट, नरसंहार इत्यादि के बदले नए शब्द ईजाद करने पड़ेंगें। शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा जब मोदी सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री राज्य सभा में गर्व से बता रहे थे कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी कोविड 19 के मरीज की मृत्यु नहीं हुई।

इंतज़ार कीजिये, जल्दी ही आपको बताया जाएगा कि हमारे देश में कोविड 19 से ही कोई मृत्यु नहीं हुई। दरअसल लाशों और सामूहिक नरसंहार को विकास बताने वाले वर्ष 2014 के बाद से गुजरात राज्य से बढ़कर पूरे देश में फ़ैल गए हैं। इन लोगों का बहुचर्चित विकास मॉडल आम जनता के नरसंहार और पूंजीपतियों को सरकारी संपत्ति के उपहार पर ही टिका है।

इस समय देश में जल्लादों की सरकार है, जो नदियों में तैरती लाशों को देखकर अट्टाहास करते हैं क्योंकि इससे से उनकी राजनीति चमकती है। स्वास्थ्य राज्य मंत्री के राज्य सभा के बयान के बाद तो देश के सर्वोच्च न्यायालय समेत तमाम उच्च न्यायालयों को भी शांति से बैठ कर सोचना चाहिए की न्यायाधीशों ने ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए अपना समय क्यों बर्बाद किया और क्यों बार-बार सरकारों को कटघरे में खड़ा किया। अनेक न्यायाधीशों ने तो ऑक्सीजन की कमी से मरते लोगों का जिक्र भी किया था।

इस सरकार के तथाकथित रामराज्य में कोई मरता ही नहीं है – कोई वायु प्रदूषण से नहीं मरता, कोई भूख से नहीं मरता, कोई बाढ़ या सूखा से नहीं मरता, कोई नोटबंदी से नहीं मरता, कोई जेल में नहीं मरता। जाहिर है, सरकार की नजर में कोई मरता ही नहीं तभी उसे अचानक से जनसंख्या नियंत्रण का ध्यान आएगा। यह ध्यान भी ऐसा है जिसमें आधे दर्जन से अधिक बच्चे वाले भी जनसंख्या नियंत्रण पर प्रवचन देने लगे हैं।

इन सबके बीच अमेरिका के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट नामक संस्था ने भारत में कोविड 19 से होने वाली मौतों का गहराई से अध्ययन किया है। यह अध्ययन वर्ष 2020 के जनवरी से वर्ष 2021 के मई महीने तक के गैर-सरकारी और सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर किया गया है। इस अध्ययन का निष्कर्ष है, सरकारी आंकड़ों के अलावा देश में मुख्यतः कोविड 19 के कारण दस गुना अधिक मौतें हुईं हैं, जिसे सरकार ने छुपाया है। इस अध्ययन के अनुसार जून 2021 के अंत में सरकारी स्तर पर मौत के आंकड़े 4 लाख थे, जबकि इस अध्ययन के अनुसार मौत के आंकड़े 30 लाख से 47 लाख के बीच हैं।

इस अध्ययन का आधार देश में जन्म और मृत्यु के पंजीकृत आंकड़े, सीरो सर्वे के आंकड़े और 9 लाख व्यक्तियों का वर्ष में तीन बार किया गया आर्थिक सर्वेक्षण है। इस अध्ययन में देश के अनेक निष्पक्ष पत्रकारों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा इस विषय पर अध्ययन और विश्लेषण की समीक्षा भी की गयी है। इस अध्ययन के एक लेखक, अरविन्द सुब्रमण्यम के अनुसार इसमें अनेक चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। अब तक माना जाता रहा है कि कोविड 19 के पहले दौर में मौतें कम हुईं हैं, पर नए अध्ययन के अनुसार इस दौर में भी 20 लाख से अधिक मौतें हुई थीं।

प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार कोविड 19 के नियंत्रण और कम मौतों के लिए आपनी पीठ थपथपाती रही, पर इस रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 से होने वाली मौतों के सन्दर्भ में भारत कोई अजूबा नहीं था, बल्कि यदि सरकार में मौत का वास्तविक आंकड़ा उजागर किया होता तो हम इस सन्दर्भ में पहले स्थान पर पिछले वर्ष ही पहुँच गए होते।

पिछले वर्ष से ही पूरी दुनिया भारत के मौत के आंकड़ों पर प्रश्न कर रही है। अमेरिका में बसे भारतीय मूल के कैंसर विशेषज्ञ सिद्धार्थ मुख़र्जी कहते हैं कि इस रहस्य का उत्तर पूरी दुनिया में फिलहाल किसी के पास नहीं है।

विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि दुनिया के अधिकतर देश अपने यहाँ के पूरे आंकड़े प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं, संभव है भारत सरकार भी यही कर रही हो। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अप्रैल 2020 में ही अमेरिका, कनाडा समेत 12 देशों में कोविड 19 से सम्बंधित मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण कर बताया है कि इन देशों में सम्मिलित तौर पर सरकारी आंकड़ों के अलावा 40000 से अधिक मौतें हुईं हैं। इसी तरह फाइनेंसियल टाइम्स ने 14 देशों के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण कर बताया कि इन देशों में सरकारी आंकड़ों की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक जानें गईं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो के भारतीय मूल के वैज्ञानिक प्रभात झा पहले भी भारत की मृत्यु दर पर अध्ययन कर चुके हैं। इनके अनुसार भारत में मृत्यु के सही आंकड़े जुटा पाना कठिन काम है, क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत मौतें घरों में ही होतीं हैं और उनका लेखा-जोखा नहीं रहता। प्रभात झा के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ लोग मरते हैं, जिनमें से सरकारी आंकड़ों के अनुसार महज 22 प्रतिशत की सूचना अस्पतालों के पास रहती है।

मौत के आंकड़ों का रहस्य और भी गहरा तब हो जाता है, जब यह पता हो कि फरवरी 2020 के बाद से देश में किसी भी कारण से होने वाली मौतों में कमी आ गयी है। यह कमी इस हद तक है कि अब शवदाह सेवा, श्मशान सेवा इत्यादि से जुड़े कर्मचारियों के भी वेतन कटौती या नौकरी से निकाले जाने की नौबत आने लगी है। अंत्येष्ठी फ्यूनरल सर्विसेज नामक संस्था कोलकाता और बंगलुरु में कार्यरत है। इसकी सीईओ श्रुति रेड्डी के अनुसार जनवरी 2020 तक हरेक दिन उनकी संस्था ने हरेक केंद्र पर औसतन 5 शवदाह का कार्य किया, पर मार्च और अप्रैल 2020 में यह संख्या औसतन 3 तक भी नहीं पहुँच रही है। श्रुति रेड्डी ने बताया कि यदि यही स्थिति बनी रही तो जल्दी ही अनेक कर्मचारियों की छंटनी कर दी जायेगी।

जिस समय दुनिया की मीडिया भारत सरकार के मौत के आंकड़ों पर प्रश्न कर रही थी, पर हमारी सरकार का चरित्र देखिये – जब अप्रैल और मई 2021 में दुनिया ने हमारे देश को जलती हुई लाशों, नदी में बहती लाशों और नदी किनारे गडी लाशों में तब्दील होते देख लिया। आखिर, हम वैसे ही विश्वगुरु थोड़े ही हैं, विश्वगुरु बनाने के लिए लाशों का ढेर लगाना पड़ता है, और इस सन्दर्भ में हमारी सरकार से अधिक माहिर दुनिया की कोई सरकार नहीं है।

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