Ground Reprot : टिटौली में ढाई माह में 70 मौतें, प्रशासन मान रहा कोविड से गई सिर्फ 10 की जान

एक बच्चा अनाथ हुआ तो दो बुजुर्ग हो एक निराश्रित, गांव में अब टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि आठ महिलाएं विधवा हुई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने समय रहते ध्यान नहीं दिया....

Update: 2021-06-10 15:20 GMT

(मौतों ने गांव को बुरी तरह से प्रभावित किया है। गांव की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत असर पड़ा है। कई परिवार ऐसे है, जिसमें एक ही कमाने वाला था, वह ही चला गया।)

मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो/रोहतक। हरियाणा के रोहतक जिले से 10 इतनी दूरी पर स्थिति 12 हजार की आबादी के गांव टिटौली में अब मरघट सी शांति है। प्रदेश में जहां अब कोविड प्रतिबंध में ढील दी जा रही है, इस गांव में संक्रमण का खौफ साफ नजर आता है। कहना गलत नहीं होगा, गांव में अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल है। अब गांव में पहले की तरह बैठकों में बुजुर्गों जुटते, न गलियों में कोई दिखता। दिखे भी कैसे? इस गांव में कोविड के दौरान मौत का जो तांडव बरपा।

ढाई माह यानी अप्रैल से लेकर अभी तक गांव में 70 लोगों की मौत हो गई है। प्रशासन ने सिर्फ 10 मौत ही कोविड संक्रमण से मानी। बाकी की मौत की वजह किसी को कैंसर तो किसी को ब्लड प्रेशर या अन्य कारण बता दिया गया। कोविड के नोडल अधिकारी डॉक्टर कुलदीप सिंह ने बताया कि मृतकों में ज्यादातर की उम्र 50 के आस पास रही है।


गांव निवासी चांद सिंह कुंडू ने बताया कि मृतकों में से ज्यादातर का पोस्टमार्टम नहीं हुआ। यह देखने की कोशिश नहीं हुई कि मौत की वजह क्या है? अब प्रशासन जो मर्जी बोल दें। कैसे उनका विरोध कर सकते हैं? वह भले ही किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर को संक्रमण हुआ, इस वजह से उनकी बीमारी गंभीर हुई। जो उनकी मौत की वजह बन गई।

मौतों ने गांव को बुरी तरह से प्रभावित किया है। गांव की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत असर पड़ा है। कई परिवार ऐसे है, जिसमें एक ही कमाने वाला था, वह ही चला गया।

गांव में कोविड ने एक बच्चा अनाथ तो दो बुजुर्गों को निराश्रित कर दिया है। गांव निवासी प्रताप सिंह के दो बेटे थे। दोनों की मौत हो गई। 28 वर्षीय बेटे भूप सिंह और 32 साल के बेटे की मौत कोविड संक्रमण से हुई। दोनो बेटे शादीशुदा है। इनके परिवार में दो बच्चे हैं। चांद सिंह कुंडू ने बताया कि अब इस घर में कोई कमाने वाला नहीं रहा है। एक बच्चे के माता पिता दोनो की मौत हो गई।

अब वह अपने चाचा चाची पर निर्भर है। गांव के बुजुर्ग हरिराम (70) ने बताया कि कोविड ने तो गांव की कमर तोड़ दी। अब इन विधवा महिलाओं का क्या होगा? किसके सहारे उनकी जिंदगी कटेगी? उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा दिक्कत तो छोटे बच्चों की है। क्योंकि उनका पूरा भविष्य सामने पड़ा है। गांव में दस बच्चें ऐसे हैं, जिन्होंने अपना पिता खो दिया है। अब उनके लालन पालन का खर्च कौन उठाएगा? सरकार को चाहिए कि उनकी पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाए। सात बच्चों ने अपनी माता को खो दिया है।

ग्रामीण विधवा महिलाओं के भविष्य को लेकर भी चिंतित है, क्योंकि उनकी रोजी रोटी का क्या होगा? इसमें ज्यादातर तो अनपढ़ है। वह कोई काम भी नहीं कर सकती है। महिला अधिकार कार्यकर्ता व पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय की एडवोकेट आरती ने बताया कि सरकार को चाहिए कि इन विधवाओं के स्वरोजगार की दिशा में ध्यान दिया जाए। उन्हें स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। इस ओर ध्यान देेने की सख्त जरूरत है।

हालांकि सरकार की योजना है कि जिन बच्चों ने अपने माता पिता को खो दिया, उन्हें मदद मिलेगी। लेकिन जिन बच्चों ने अपनी माँ या पिता को खो दिया। खासतौर पर यदि किसी बच्चे ने कमाने वाले को खो दिया तो उसका क्या? उसका गुजारा कैसे होगा? सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।

ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन इन सभी मृतकों की आर्थिक मदद करे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह 70 परिवार आर्थिक बदहाली के कगार पर पहुंच जाएगे। इस वक्त उन्हें आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है। गांव के लोग कोविड से डरे हुए हैं। इसके बावजूद दिक्कत यह है कि इस इस गांव में संक्रमण को लेकर जागरूकता नहीं है।


गांव में टीकाकरण अभियान से जुड़ी एक एएनएम ने बताया कि 45 साल से उपर के सात सौ से आठ सौ लोगों ने ही टीका लगवाया है। गांव की आबादी 12 हजार के आस पास है। कोविड नोडल अधिकारी डॉक्टर कुलदीप सिंह ने बताया कि टीकाकरण केंद्र पर तीन चार लोग ही आते हैं। इस तरह से गांव में एक वायल भी नहीं लगती,बाकी की दवा खराब जाती है। अब गांव में मेगा टीकाकरण अभियान चलाने की सोच रहे हैं। जिससे गांव में व्यापक पैमाने पर टीकाकरण कराया जा सके।

टिटौली के सरपंच सुरेश कुंडू गांव में हुई मौतो पर कहते हैं, 'अभी तक किसी भी मृतक परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। मदद मिलनी चाहिए, क्योंकि ज्यादातर पीड़ित परिवार गरीब है। जिन परिवार से कमाने वाला चला गया, उसे तुरंत ही मदद की जरूरत है। यदि मदद मिलती है तो इस मुश्किल घड़ी में उनकी जिंदगी कुछ आसान हो सकती है।'

सरपंच ने इस बात पर भी दुख प्रकट किया कि गांव के लोग अभी भी टीकारण के प्रति गंभीर नहीं है। वह कोविड संक्रमण के खौफ को अभी भी सही से समझ नहीं रहे हैं। यह गलत बात है। इससे स्थिति दोबारा से बिगड़ सकती है। हालांकि सरपंच भी यह बात नहीं मानते कि गांव में कोरोना से 70 मौतें हुयी हैं, वह कहते हैं कि गांव में कोविड से सिर्फ 10 मौतें हुयी हैं। 

डॉक्टर कुलदीप सिंह दावा करते हैं कि गांव में दस प्रतिशत आबादी को टीका लग चुका है। वह स्वयं स्वीकार करते हैं कि यह बहुत कम है। इसे बढ़ाया जाने की जरूरत है।

ग्रामीण चांद सिंह कुंडू कहते हैं कि गांव में जागरूकता की कमी है। उन्हें समझाया जाना चाहिए। प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। जब मौत का सिलसिला शुरू हुआ था, यदि तभी गांव में टेस्टिंग अभियान चलाया जाता तो मौत का आंकड़ा कम हो सकता था। इसके साथ ही बीमारी पर भी रोक लग सकती थी।

तब किसी ने ध्यान नहीं दिया। यह भी एक कारण रहा कि गांव में इतनी ज्यादा मौत हुई है। अब गांव में घर घर सर्वे करने की बात की जा रही है। अब इसका क्या फायदा होगा? जो अनहोनी उनके गांव में हो चुकी है, वह अब ठीक तो हो नहीं सकती है।

इसके लिए किसी दोष दें, चंद्र सिंह कुंडू कहते हैं, जिन्होंने अपनो को खो दिया वह तो वापस आ नहीं सकते, जो बच गए अब उनके गुजारे का इंतजाम हो जाए तो बहुत बड़ी बात होगी।

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