पटना के अस्पताल कैंपस में तड़पते-तड़पते मर गया कोरोना मरीज, ट्रॉली तक नहीं मिली
पटना का NMCH बिहार का सबसे बड़ा कोरोना अस्पताल है। यहां भर्ती सारण जिले के एक मरीज को कोरोना की पुष्टि हुई, मरीज को पैदल ही मेडिसिन विभाग से कोरोना वार्ड ले जाया जा रहा था कि तभी उसकी हालत खराब हो गयी...
जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। सरकार का दावा है कि कोरोना मरीजों के लिए अस्पतालों में पूरी व्यवस्था है। ऐसे में बिहार के सबसे बड़े अस्पताल NMCH में जो मामला सामने आया है, उसने पूरी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। कोरोना मरीज की अस्पताल परिसर में हुई मौत ने अस्पतालों में डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के पास प्रोटेक्टिव गियर्स की उपलब्धता पर भी सवाल खड़ा कर दिया है।
शुक्रवार 19 जून की यह घटना है, जो शनिवार को सामने आई है। बिहार के सारण जिला के निवासी कन्हैया प्रसाद हाल में ही दिल्ली से आए थे। उनके पुत्र सचिन कुमार ने बताया कि वे खांसी, कमजोरी और सांस की तकलीफ से पीड़ित थे। इलाज के लिए उन्हें NMCH में भर्ती कराया गया था। उनकी कोरोना जांच भी हुई थी।
शुक्रवार 19 जून को आई रिपोर्ट में वे पॉजिटिव पाए गए, जिसके बाद उन्हें कोरोना डेडिकेटेड वार्ड में भर्ती करना था। उनका आरोप है कि दूसरे वार्ड में ले जाने के लिए अस्पताल में उनको ट्रॉली तक नहीं दी गयी। वे स्वयं पैदल ही उन्हें दूसरे वार्ड में ले जा रहे थे। उनकी हालत ठीक नहीं थी। इसी बीच वे मेडिसिन विभाग के गेट पर गिर गए।
उनका यह भी आरोप है कि अस्पताल कर्मी आसपास खड़े रहे और सारा माजरा देखते रहे। मेडिसिन विभाग के गेट पर वे काफी देर तड़पते रहे। बहुत देर बाद एक अस्पताल कर्मी आया और उनके सहयोग से वार्ड में ले जाया गया। सचिन का कहना है कि मेडिसिन विभाग के गेट पर ही तड़प-तड़प कर उनकी मौत हो गई। उन्होंने सरकार से दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है। अस्पताल परिसर में ही मरीज आधे घंटे तक इलाज के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गया और अस्पताल प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी।
इस संबंध में अस्पताल प्रशासन यह गलती मान रहा है कि मरीज को शिफ्ट करते वक्त वार्ड अटेंडेंट को साथ होना चाहिए। अस्पताल अधीक्षक डॉ निर्मल कुमार सिन्हा ने कहा है कि कन्हैया प्रसाद सांस की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, साथ ही उनकी कोरोना जांच रिपोर्ट भी पॉजिटिव थी। उन्होंने इस घटना की जांच कर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की बात कही है।
इन सबके बीच यह प्रश्न अहम है कि राज्य के सबसे बड़े कोरोना अस्पताल की यह हालत है कि अस्पताल परिसर स्थित उसके मेडिसिन विभाग के पास कोई मरीज काफी देर तक तड़पता रहा और कोई देखने-सुनने वाला नहीं था। मरीज ने तड़प-तड़प कर दम भी तोड़ दिया और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। मान लिया जाय कि कोरोना एक खतरनाक और संक्रामक बीमारी है, मगर फिर भी कोरोना डेडिकेटेड अस्पताल की यह कैसी व्यवस्था है।