Oral Cancer : कोरोना काल में लोगों में बढ़ा ओरल कैंसर का खतरा, तेजी से चपेट में आ रहे हैं युवा

Oral Cancer : 20 साल से दो फीसदी की दर से बढ़ने वाला माउथ कैंसर कोविड काल के दौरान अप्रत्याशित रूप से छह फीसदी की दर से वृद्धि कर गया, यह सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर का रूप बन चुका है...

Update: 2022-09-19 12:22 GMT

Oral Cancer : कोरोना काल में लोगों में बढ़ा ओरल कैंसर का खतरा, तेजी से चपेट में आ रहे हैं युवा

Oral Cancer : कोरोना काल ने लोगों के जीवन में बहुत प्रभाव डाला है। ऐसी कई स्टडीज सामने आती है, जिसमें पता चलता है कि कोरोना काल के दौरान और उसके बाद भी लोगों के जीवन में और उनके स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ रहा है। कोरोना काल में लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता कम हुई है। अब ऐसी ही जानकारी मुंह के कैंसर के लिए भी सामने आई है। कोरोना काल के बाद लोगों में मुंह का कैंसर होने का खतरा बढ़ गया है।

कोरोना काल के बाद बढ़ा लोगों में ओरल कैंसर

कोरोना काल में भले ही तंबाकू का सेवन घट गया हो लेकिन मुख कैंसर में काफी बढ़ोतरी हो गई है। 20 साल से दो फीसदी की दर से बढ़ने वाला माउथ कैंसर कोविड काल के दौरान अप्रत्याशित रूप से छह फीसदी की दर से वृद्धि कर गया। यह सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर का रूप बन चुका है। बता दें कि इसका खुलासा वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हुआ है।

ओरल कैंसर की चपेट में तेजी से आ रहे हैं युवा

जेके कैंसर संस्थान में मरीजों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। चिंताजनक बात है कि अब मुख कैंसर की चपेट में युवा तेजी से आ रहे हैं। जेके कैंसर संस्थान में तीन वर्ष की बात करें तो हर साल 10-11 हजार कैंसर रोगी रिपोर्ट किए जा रहे हैं और इनमें मुख कैंसर का ग्राफ 40 प्रतिशत तक पार कर गया है।

कोरोना काल से पहले ओरल कैंसर के मरीज

रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल से पहले यानी 2019 में औसत 33 फीसदी था। 2019 में मुख कैंसर के 3610 मरीज रिपोर्ट हुए थे, जो बीती जुलाई 2019 तक एक साल में 3893 रिपोर्ट किए गए। 2019 से पहले संस्थान में हर साल 28 सौ से तीन हजार ही मरीजों का इलाज किया जाता रहा है। खास बात यह है कि कोरोना काल के बाद खैनी खाने वाले 58 युवा कैंसर के पीड़ित आए हैं, जिनका जेके के साथ दिल्ली में भी इलाज चल रहा है।

कोरोना काल के बाद तंबाकू सवाल में कमी

बता दें कि रिपोर्ट में एक बात संतोषजनक है कि कोरोना काल के बाद 1.4 फीसदी की दर से तंबाकू सेवन में कमी आई है लेकिन इसे फिर भी नाकाफी माना जा रहा है। डब्ल्यूएचओ की पहले की रिपोर्ट के मुताबिक जब तक तंबाकू के सेवन में हर साल 3.2 फीसदी कमी नहीं आती है तब तक सुरक्षित नहीं माना जा सकता।

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