अरुंधति रॉय और डॉ. शौकत अली पर UAPA लगाने का भारी विरोध, सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने बताया तानाशाहीपूर्ण कार्रवाई
लेखिका एवं बुकर प्राइज विजेता अरुंधति राय व अन्य पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा दर्ज करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि भाजपा सरकार केंद्र में पूर्ण बहुमत न मिल पाने के बावजूद भी अपना तानाशाहीपूर्ण रवैया कायम किए हुए है...
Ramnagar news : लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय और डॉ. शौकत अली के खिलाफ यूएपीए के तहत 14 साल पुराने एक मामले में दिल्ली के राज्यपाल ने मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी है। इसका विरोध करते हुए समाजवादी लोकमंच द्वारा बयान जारी किया गया है कि अरूंधति राय और डॉ. शौकत अली के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति देना देश के संविधान के अनुच्छेद 19 में दर्ज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
समाजवादी लोकमंच ने लेखिका एवं बुकर प्राइज विजेता अरुंधति राय व अन्य पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा दर्ज करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि भाजपा सरकार केंद्र में पूर्ण बहुमत न मिल पाने के बावजूद भी अपना तानाशाहीपूर्ण रवैया कायम किए हुए है।
समाजवादी लोकमंच के संयोजक मुनीष कुमार ने प्रेस को दिये बयान में कहा कि कश्मीर के भारत में विलय के बाद से ही कश्मीर का मसला विवादास्पद बना हुआ है। भारत सरकार कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानती है जबकि कश्मीर के लोग तथा देश के अन्य जनपक्षधर लोग भी कश्मीर की विलय की शर्तों के अनुरूप जनमत संग्रह करवाए जाने के पक्षधर हैं।
लोकतंत्र में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है और सरकार की राय से जुदा राय प्रस्तुत करने पर यूएपीए के तहत मुकदमा कायम करना मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है तथा ये शासन सत्ता द्वारा प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग है। अतः अरुंधति राय व अन्य पर यूएपीए के तहत दर्ज मुकदमा वापस लिया जाना चाहिए तथा भाजपा सरकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में दर्ज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
वहीं आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि चौदह साल पुराने और प्राइवेट व्यक्ति सुशील पंडित द्वारा कोर्ट के माध्यम से कायम करवाये मुकदमे में यूएपीए कायम करना बदले की भावना से की गई कार्रवाई है। इतने लंबे समय के बाद अरुंधती राय पर यूएपीए लगाया जाना मोदी सरकार की सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों एवं लेखकों के उत्पीड़न की पूर्व से चली आ रही नीति का ही हिस्सा प्रतीत होती है। लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने मोदी सरकार की दमन की अलोकतांत्रिक कार्रवाई को खारिज किया है पर इससे सबक लेने की जगह आज भी सरकार असहमति की आवाजों को कुचलने में लगी हुई है। आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर समाज के सभी हिस्सों, राजनीतिक पार्टियों, नागरिक समाज से अरुंधती राय के मोदी सरकार व्दारा किए जा रहे उत्पीड़न के विरोध में खड़े होने का आवाहन करता है।
गौरतलब है कि जिस मामले में अरुंधति राय और डॉ. शौकत अली के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दिल्ली के एलजी द्वारा दी गयी है वह 14 साल पुराना यानी 27 नवंबर 2010 का है। चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय को उनकी किताब 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' के लिए 1997 में बुकर पुरस्कार मिला था, वहीं शेख शौकत हुसैन कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल लॉ के पूर्व प्रोफेसर रह चुके हैं।
कश्मीरी मूल के शिकायतकर्ता सुशील पंडित ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत नई दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी, जिन्होंने 27 नवंबर, 2010 को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश के साथ शिकायत का निपटारा किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि गिलानी और अरुंधति रॉय ने जोरदार तरीके से प्रचार किया कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और भारत के सशस्त्र बलों द्वारा जबरन कब्जा किया गया था और भारत से जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि उसके पास इससे संंबंधित रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध थी।