निर्भया गैंगरेप-हत्या के दोषियों को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया 1 हफ्ते का वक्त, 2 बार टल चुकी है फांसी

Update: 2020-02-05 14:49 GMT

केंद्र की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा चारों निर्भया गैंगरेप-हत्या के चारों दोषियों को अलग-अलग नहीं एक साथ होगी फांसी...

जेपी सिंह

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निर्भया मामले में चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने चारों दोषियों को सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया है। हाईकोर्ट का यह आदेश केंद्र की याचिका खारिज करते हुए आया है।

केंद्र सरकार ने इस मामले में चार दोषियों की फांसी पर रोक लगाने वाले निचली अदालत के आदेश को 1 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने 1 और 2 फरवरी को विशेष सुनवाई के बाद 2 फरवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले से साफ हो गया है कि निर्भया के दोषियों को अब जल्द ही फांसी मिल सकेगी।

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सके पहले दिल्ली की एक अदालत ने 31 जनवरी को निर्भया मामले के चार दोषियों की फांसी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। इन दोषियों को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दी जानी थी, मगर दूसरी बार फांसी के वॉरंट की तामील टाल गई। पहली बार चारों दोषियों को 22 जनवरी को फांसी देने का वारंट जारी किया गया था। इस पर 17 जनवरी को स्थगन दिया गया था। उसी दिन फिर उन्हें एक फरवरी को फांसी देने के लिए दूसरा वारंट किया गया था, जिस पर रोक लगा दी गई।

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गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2012 की रात को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा (निर्भया) के साथ गैंगरेप और बर्बरता की गई थी। सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी।

स्टिस कैत ने कहा कि गृहमंत्रालय यह याचिका डालने के लिए सक्षम है। दिल्ली कैदी नियम 834 और 836 में दया याचिका के बारे में नहीं लिखा है। जस्टिस कैत ने कहा कि मैं ट्रायल कोर्ट की राय से सहमत नहीं हूं कि कारागार नियमों में 'आवेदन' शब्द एक सामान्य शब्द है जिसमें दया याचिका भी शामिल होगी।

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स्टिस कैत ने कहा कि सभी दोषी बर्बरता से दुष्कर्म और हत्या करने के दोषी पाए गए हैं जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया था। ये बात कम से कम यह विचार करने के लिए प्रासंगिक है कि क्या मौत की सजा के निष्पादन में देरी दोषियों की देरी की रणनीति के कारण होती है।

स्टिस कैत ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सभी दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दायर करने में 150 दिन से भी ज्यादा का समय लिया। अक्षय ने तो 900 दिन से भी ज्यादा समय के बाद अपनी पुनर्विचार याचिका दाखिल की।सभी दोषी अनुच्छेद 21 का सहारा ले रहे हैं जो उन्हें आखिरी सांस तक सुरक्षा प्रदान करता है।

च्चतम न्यायालय में भी दोषियों के भाग्य का फैसला उसी आदेश से किया गया है। मेरी राय है कि उनके सभी डेथ वारंट को एक साथ निष्पादित किया जाना है। जस्टिस कैत ने कहा कि दोषियों ने सजा में देरी करने की रणनीति अपनाई है, इसलिए मैं सभी दोषियों को 7 दिनों के भीतर उनके कानूनी उपचार के लिए निर्देशित करता हूं, जिसके बाद उनके डेथ वॉरंट पर तामील करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाए।

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केंद्र सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। पटियाला हाउस कोर्ट ने 17 जनवरी को चारों दोषियों मुकेश कुमार सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय कुमार शर्मा (26) और अक्षय कुमार (31) को 1 फरवरी को सुबह 6 बजे तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाने के लिए दूसरी बार ब्लैक वारंट जारी किया था। इससे पहले, अदालत ने 7 जनवरी को फांसी के लिए 22 जनवरी की तारीख तय की थी। दोषियों के वकील ने कोर्ट में दलील दी थी कि फांसी को टाला जाए, क्योंकि अभी उनके कानूनी उपचार के मार्ग बंद नहीं हुए हैं।

केंद्र ने हाई कोर्ट में कहा था कि दुष्कर्मी जान—बूझकर कानूनी विकल्प के इस्तेमाल में देरी कर रहे हैं। दुष्कर्मी जान—बूझकर और सोचे-समझे तरीके से दया याचिका और क्यूरेटिव पिटीशन नहीं दाखिल कर रहे हैं और यह कानूनी आदेश को कुंठित करने का मंसूबा है। उन्होंने फांसी में जरा सी भी देर न किए जाने की अपील की। दोषियों की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने दलील दी थी कि अगर दोषियों को मौत की सजा एक साथ दी गई है, तो उन्हें फांसी भी एक साथ दी जानी चाहिए।

Full View कोर्ट ने पिछले महीने 7 जनवरी को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में सभी चार दोषियों को फांसी देने के लिए ब्लैक वारंट जारी किया था। हालांकि, एक दोषी की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित रहने की वजह से उन्हें फांसी नहीं दी जा सकी। बाद में ट्रायल कोर्ट ने 17 जनवरी को दोषियों की फांसी की तारीख 1 फरवरी तय की। लेकिन 31 जनवरी को फिर से पटियाला हाउस कोर्ट ने यह कहते हुए कि तीन दोषियों पवन, विनय और अक्षय की फांसी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी कि अभी भी इनके कानूनी विकल्प पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं।

दुष्कर्मी मुकेश सिंह और विनय शर्मा के दोनों विकल्प (क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका) खत्म हो चुके हैं। अक्षय ठाकुर की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो चुकी है। अक्षय की दया याचिका 1 फरवरी को दाखिल हुई थी और अभी लंबित है। पवन गुप्ता ने न तो क्यूरेटिव पिटीशन दायर की है और न ही राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी है। दोषी पवन के पास अभी ये दोनों याचिकाएं दायर करने का विकल्प है।

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