निर्भया के दोषी मुकेश की दया याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
जेल में हुए दुर्व्यवहार राहत का अधिकार नहीं देता है। तेजी से दया याचिका पर फैसला लेने का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति ने याचिका में रखे गए तथ्यों पर ठीक से विचार नहीं किया...
जनज्वार। निर्भया गैंगरेप के दोषी मुकेश सिंह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मुकेश सिंह की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सबूत नहीं होने के कारण आरोपियों के दस्तावेजों को राष्ट्रपति के सामने नहीं रखा गया था।
फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस भानुमति ने कहा कि सभी जरूरी दस्तावेज राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे। इसलिए याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील में दम नहीं है कि राष्ट्रपति के साने पूरे रिकॉर्ड को नहीं रखा गया। राष्ट्रपति ने सारे दस्तावेजों को देखने के बाद ही दया याचिका खारिज की थी। जस्टिस भानुमति ने कहा, जेल में हुए दुर्व्यवहार राहत का अधिकार नहीं देता है। तेजी से दया याचिका पर फैसला लेने का मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति ने याचिका में रखे गए तथ्यों पर ठीक से विचार नहीं किया।
संबंधित खबर: क्या इंदिरा जयसिंह के कहने पर कर दी जाये निर्भया के बलात्कारियों की फांसी की सजा माफ?
निर्भया के दोषी मुकेश सिंह ने राष्ट्रपति के द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के बाद फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मुकेश ने आरोप लगायया था कि दया याचिका का फैसला मनमाने ढंग से तथ्यों की अनदेखी करते हुए दिया गया है। दया याचिका की सुनवाई में उचित निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।
पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने मुकेश की तरफ से दलील देते हुए कहा कि दया याचिका 14 जनवरी को दायर हुई थी और 17 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा याचिका को खारिज कर दिया गया।
अंजना प्रकाश ने दलील दी कि इस मसले पर जेल सुपरिटेंडेंट की सिफारिश को राष्ट्रपति के सामने नहीं रखी गई है। मुकेश जेल के अंदर यौन शोषण का शिकार हुआ उसकी पिटाई हुई। इस मसले में आरोपी राम सिंह की हत्या हो गई लेकिन इस आत्महत्या बताकर केस को बंद कर दिया गया।
साथ ही अंजना प्रकाश ने दलील दी है कि दया याचिका के बिना खारिज हुए फांसी की सजा पाए अपराधियों को कारावास में रखना असंवैधानिक है। जबकि निर्भया के हत्यारों को कारवास में रखा गया। मुकेश की वकील ने भवनात्मक दलील देते हुए कहा कि यह किसी की जिंदगी का सवाल है और फैसला आपके हाथ में है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दया याचिका जल्दबाजी में खारिज किये जाने के आरोपों को खारिज करते दलील दी, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में खुद ही कहा था कि दया याचिका को लंबित रखना अमानवीय है। सरकार ने कोर्ट की इस भावना का सम्मान भी किया है। राष्ट्रपति ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर बिना विलंब के याचिका पर फैसला किया है। यह आरोप कहीं से सहीं नहीं है कि मनमाने ढ़ग से दया याचिका को खारिज किया गया है। तुषार मेहता ने दलील दी कि दया याचिका के निपटारे में विलंब को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। लेकिन निपटारे में शीघ्रता को आधार बनाकर चुनौती नहीं दी जा सकती है।