मिठाई-चाय की दुकानें, रेस्तरां, होटल सब बंद, फिर भी सस्ता क्यों नहीं हुआ दूध, क्या हम पी रहे थे जहर ?
एक बड़ा सवाल है यह है कि अगर होटल, रेस्तरां, चाय की दुकानें और आईसक्रीम पार्लर बंद होने से दूध की मांग में कमी आई है और बाजार में मांग कम है तो बाकी दूध का क्या किया जा रहा है, क्या हम पहले नकली दूध का इस्तेमाल करते थे...
हेमंत कुमार पाण्डेय की रिपोर्ट
जनज्वार। बीती 25 मार्च से कोरोना संकट के बीच जारी लॉकडाउन ने देश में कई क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनमें डेयरी सेक्टर भी शामिल है। मार्च के आखिरी हफ्ते में ही दूध की कीमतों में छह रुपये से लेकर 11 रुपये प्रति लीटर की कमी दर्ज की गई है। इसके चलते किसान अपनी लागत भी वसूल नहीं हो पा रहे हैं।
वहीं पशु आहारों की पर्याप्त आपूर्ति न होने के चलते इनकी कीमतों में भी 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं, कई किसानों का कहना है कि उनकी दूध का भुगतान भी समय से नहीं हो पा रहा है। यानी पशुपालकों पर तिहरी मार पड़ रही है।
उपभोक्ताओं के लिहाज से बात करें तो जो एक बड़ा सवाल है यह है कि अगर होटल, रेस्तरां, चाय की दुकानें और आईसक्रीम पार्लर बंद होने से दूध की मांग में कमी आई है, तो फिर डेयरी कंपनियां पहली की मात्रा में ही खरीदारी कैसे कर रही है? अगर बाजार में मांग कम है तो बाकी दूध का क्या किया जा रहा है? क्या हम पहले नकली (केमिकल) दूध का इस्तेमाल करते थे?
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दूसरी ओर यदि लॉकडाउन में भी डेयरी कंपनियां/ कॉपरेटिव सोसायटीज पहले की तरह कारोबार कर रही है तो पशुपालकों को दूध की इतनी कम कीमत कम क्यों मिल रही है? क्या लॉकडाउन के दौरान मांग कम होने की बात कर किसानों का शोषण किया जा रहा है?
आगे हमने इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है। इसके लिए हमने डेयरी सेक्टर से जुड़े कई लोगों से बात की। इनमें से सभी का कहना था कि लॉकडाउन के चलते मौजूदा परिस्थितियों में किसी पशुपालक के लिए अपने घर का खर्चा चलान के साथ पशुओं को भी पालना मुश्किल हो रहा है। इनमें उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के किसान राम खेलावन भी हैं।
'हमारे गांव (बालामोह) में चार डेयरियां थीं। इस समय केवल एक दूध की खरीदारी कर रही है, वह भी न के बराबर ही। लॉकडाउन के चलते दूध की बिक्री नहीं होती। यदि बिक्री नहीं होगी तो मवेशी को खिलाएंगे क्या!' वे कहते हैं।
राम खेलावन के पास 10 गायें हैं, लेकिन फिलहाल इनमें केवल दो ही दूध देती हैं। वे आगे कहते हैं, 'बाकी आठ को भी खिलाना पड़ता है। ऐसे में इनकम कैसे हो पाएगी? लॉकडाउन के चलते चारे की कीमत में काफी बढ़ोतरी हो गई। अगर हम गायों को मंडी में बेचना भी चाहे तो इनकी काफी कम कीमत मिलती हैं। जिस गाय को हमने 45,000 रुपये में खरीदा था। अब उसे कोई 30,000 रुपये में भी लेने को तैयार नहीं है। इससे कोई इनकम भी नहीं होती है, जिससे लोग इसमें पैसे लगाए।'
हालांकि, समाचार एजेंसी आईएएनएस के ट्वीट की मानें तो राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का दावा है कि उसने लॉकडाउन के दौरान लाखों डेयरी किसानों के हितों की रक्षा की है। बोर्ड के अध्यक्ष दिलीप रथ ने कहा है, '135 करोड़ लोगों की आबादी वाले देश में हमने हर घर में दूध की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की है।'
वहीं बीती 18 अप्रैल को जारी प्रेस रिलीज में एनडीडीबी ने एक से 15 मार्च की अवधि के मुकाबले 16 मार्च से 12 अप्रैल के बीच दूध की बिक्री में 8.8 फीसदी कमी की बात कही है। देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू है।
उधर, देश की अधिकांश मिल्क फेडरेशन और डेयरी कॉपरेटिवों का कहना है कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान दूध खरीदने में कोई कमी नहीं की है। लेकिन पशुपालकों की मानें तो कम बिक्री की बात करके डेयरी कंपनियों ने दूध की कीमत में भारी कमी कर दी है। वहीं, उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं दी गई है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ के पशुपालक मनीष भारती इसे पशुपालक किसानों के साथ लूट बताते हैं। उनका कहना है, 'आज समितियां (डेयरी) प्राइवेट डीलर बन चुकी हैं, जो मुनाफा हासिल कर अपने घाटों को पूरा करना चाहती हैं। सरकार भी चुप बैठी हुई है।' मनीष की मानें तो कई दूध समितियों ने 15 मार्च से लेकर अब तक का भुगतान नहीं किया है। इसके चलते पशुपालकों की हालत और भी बदतर हो चुकी है।'
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वहीं, महाराष्ट्र में भी स्थितियां इससे कुछ अलग नहीं दिखती हैं। किसान नेता अजीत नावले पशुपालकों की इस हालत के लिए डेयरी कॉपरेटिवों की राजनीतिक दलों से जुड़ाव को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। वे हमें बताते हैं, 'अभी सरकार में जो लोग बैठे हुए हैं, उनकी बहुत बड़ी दखल मिल्क इंस्ट्रीज पर है। उनका ही संघ है और उनकी ही प्राइवेट डेयरियां हैं। उनका ही निवेश है। इसके चलते आने वाले दिनों में संकट का हवाला देकर इन्हें सरकार से अन्य सुविधाएं भी मिल सकती हैं। जब भी आफत आती है किसानों को नुकसान होता है और कॉरपोरेटिव और प्राइवेट डेरी वाले इसका मुनाफा कमाते हैं।'
मार्केट में दूध की मांग कम होने की स्थिति में भी डेयरी कंपनियां किस तरह मुनाफा कमाती हैं, इसे मनीष भारती समझाते हैं। वे कहते हैं, 'इनकी पॉलिसी कभी भी ताजे दूध को बेचना होता ही नहीं है। ये जो दूध आज खरीद रहे हैं, वह पूरा का पूरा प्रॉसेस में जाएगा उसका फैट अलग निकाला जाएगा। क्रीम अलग निकाली जाएगी। बाद के दिनों में डिमांड के अनुरूप जब इन्हें कभी जरूरत होती है, उस वक्त ये दूध को रिकंस्टीट्यूट करके बेचते हैं। अगर आज डिमांड नहीं है तो इससे इनको फर्क नहीं पड़ रहा है।'
मनीष की मानें तो दूध का अधिकांश स्टॉक मिल्क पाउडर के रूप में किया जाता है। पशुपालन और डेयरी विभाग के ताजा आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। इसके मुताबिक पिछले डेढ़ महीने में मिल्क पाउडर का उत्पान दोगुना होकर 1.34 लाख मीट्रिक टन हो चुका है।
इसके अलावा होटल और आईसक्रीम पार्लर जैसे व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बंद होने के बावजूद भी दूध के कई उत्पादों की मांग में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अमूल (जीसीएमएमएफ- लिमिटेड) के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने इकनॉमिक्स टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने पहले के मुकाबले दोगुनी मात्रा में पनीर की बिक्री की है। टेट्रा पैक मिल्क में 50 फीसदी के साथ दूध पाउडर, डेयरी वाइटनर, बटर और घी में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आरएस सोढ़ी की मानें तो लॉकडाउन के दौरान दूध और इसके प्रोडक्ट की घरेलू खपत में बढ़ोतरी हुई है। देश में कुल दूध खपत में इसकी हिस्सेदारी एक-चौथाई (25 फीसदी) है।
बीते अप्रैल में अमूल ने किसानों से 15 फीसदी अधिक दूध की खरीदारी की है। ये आंकड़े बताते हैं कि मांग कम होने को वजह बताकर पशुपालकों से कम कीमत में दूध की खरीदारी आपदा को मुनाफा कमाने के अवसर में बदला जा रहा है। वहीं, प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक मदर डेयरी ने लॉकडाउन के दौरान अधिक से अधिक लोगों तक दूध की आपूर्ति जारी रखने के लिए अपने सप्लाई चेन को मजबूत किया है।
वहीं आने वाले दिनों में भी पशुपालकों को दूध की लॉकडाउन से पहले वाली कीमत मिल पाएगी, इसकी उम्मीद कम ही दिखती है। इसकी वजह कंपनियों द्वारा दूध को मिल्क पाउडर के रूप में स्टॉक करना है। अजित नावले कहते हैं, 'लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी दूध उत्पादकों को पहले की तरह कीमत नहीं मिलेगी। जो अभी पाउडर बन रहा है, इसके चलते खरीदार कम कीमत या मात्रा में ही दूध लेंगे और पाउडर को लिक्विड में बदलकर इसका सप्लाई चालू रखेंगे।' इसके आगे वे कहते हैं कि एक सोची-समझी साजिश के तहत दूध का रेट डाउन किया जाता है।
अजीत की इस बात को मनीष भारती आगे बढ़ाते हैं। वे कहते हैं, 'पिछले तीन वर्षों में जो दूध की कीमत रही है, इस बारे सभी कंपनियों का एकमात्र तर्क था कि उनके पास मिल्क पाउडर का काफी स्टॉक हो गया है और इसे आगे रखने के लिए उनके पास जगह नहीं है। इस स्थिति में वे किसानों से महंगा दूध क्यों खरीदेंगे?
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वहीं, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर स्थित बुढ़वां गांव में पशुपालकों से दूध की खरीदारी करने वाले डेयरी कंपनियों- पराग, मदर डेयरी, आनंदा के सचिवों ने माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र गौरव तिवारी को बताया कि कंपनियों का जो रूख है, उसे देखते हुए लग रहा है कि दूध की कीमत पुराने स्तर पर नहीं जा पाएगी।
पारस डेयरी के प्रतिनिधि हिमांशु सैनी गांव में प्रतिदिन 250 लीटर दूध की खरीदारी करते हैं। वे बताते हैं, '26 से 31 मार्च के बीच दूध की कीमत में 10 रुपये की कमी हो गई। कंपनी कह रही कि दूध की सप्लाई नहीं हो रही है। इसके अलावा किसानों को भुगतान करने में भी दो हफ्ते से अधिक की देरी हो रही है।'
वहीं मदर डेयरी के कर्मचारी मनीष यादव का कहना है, 'किसान कम कीमत की शिकायत करते हैं। इस पर हम कहते हैं कि यदि तुम्हें न बेचना हो तो मत लाओ। जो कंपनी ने रेट तय किया है, उसी पर हम दूध लेंगे। अभी का जो वक्त है उस हिसाब से 43 रुपये वाले दूध कीमत कम से कम 45 रुपये होने चाहिए थे।' डेयरी से जुड़े किसानों और जानकारों का कहना है कि गर्मी के दिनों में कम दूध उत्पादन होने से इसकी कीमत बढ़ जाती है।
इससे पहले जब दूध की कीमत कम होती थी तो किसान सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करते थे। इसके अलावा दूध को नालियों में भी बहा देने के दृश्य दिखते थे। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में किसान या उनके संगठनों की ओर से इस तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दिख रही है। वहीं, बीते गुरुवार और शुक्रवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पशुपालकों के लिए जिन राहतों का एलान किया है, उनसे भी पशुपालकों को तत्काल कोई राहत मिलती हुई नहीं दिख रही है।
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साथ ही कोरोना महामारी के चलते देश में जो स्थिति है, उसके चलते किसान दूध की कम कीमत के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा पा रहा हैं। अभिमन्यु कोहाड़ कहते हैं, 'किसान अपनी आवाज उठाने के लिए विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। पहले विरोध के रूप में गांव से सब्जी, फल या दूध बाजार नहीं भेजा जाता था। लेकिन ये रास्ता भी अभी नहीं अपना सकते हैं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान अगर हम कहते हैं कि गांव से ये चीजें मार्केट में नहीं जाएंगी, तो इसका एक निगेटिव असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के ऊपर पड़ेगा। इस समय पूरी मानवता का सवाल है। इसलिए संवाद का ही रास्ता अपनाना पड़ रहा है।'
वहीं अजित नावले का कहना है, 'अभी लोगों को इकट्ठा नहीं किया जा सकता है लेकिन आगे लॉकडाउन खत्म होने और स्थिति सामान्य होने पर हम विरोध के लिए रास्ते पर भी उतरेंगे।'