20 साल में एक भी दिन नहीं रहे साथ, पत्नी की हरकतों को क्रूरता बता सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर किया तलाक
पीठ ने कहा कि तलाक अपरिहार्य था, वैवाहिक बंधन किसी भी परिस्थिति में काम नहीं कर रहा था, महिला ने एक के बाद एक मामले दर्ज किये, उसने पति पर क्रूरता जारी रखी, उसने पूरी कोशिश की कि पति की नौकरी चली जाए..
जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को करीब 20 साल पुरानी शादी को यह कहते हुए खत्म कर दिया कि युगल (couple) एक भी दिन साथ नहीं रहे और ऐसा लगता है कि उड़ान भरते ही क्रैश लैंडिंग (crash landing) हो गई थी। शीर्ष अदालत ने न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान महिला के आचरण के मद्देनजर हिंदू विवाह अधिनियम के प्रविधानों के तहत क्रूरता के आधार पर भी शादी को खत्म करते हुए तलाक को मंजूरी प्रदान कर दी।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ (Bench) ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता के जरिये समाधान या किसी अन्य स्वीकार्य समाधान की कोशिश सफल नहीं हो सकी। शीर्ष अदालत ने असिस्टेंट प्रोफेसर (Assistant professor) के तौर पर कार्य करने वाले एक व्यक्ति की याचिका पर यह आदेश दिया।
दोनों की शादी फरवरी, 2002 में हुई थी। अदालत में उस व्यक्ति ने कहा, महिला (lady) ने बताया था कि उसकी सहमति के बिना उसे शादी के लिए मजबूर किया गया था। वह शादी की रात ही मैरिज हाल छोड़कर चली गई थी।
देश की शीर्ष अदालत ने अपनी संवैधानिक शक्तियों (Constitutional powers) का इस्तेमाल करते हुए जोड़े को शादी के बंधन से मुक्त किया, हालांकि महिला इसका विरोध करती नजर आई। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता में पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि तलाक अपरिहार्य था। वैवाहिक बंधन किसी भी परिस्थिति में काम नहीं कर रहा था। महिला ने एक के बाद एक मामले दर्ज किये। उसने पति पर क्रूरता (cruelty) जारी रखी। उसने पूरी कोशिश की कि पति की नौकरी चली जाए।
पीठ की ओर से कहा गया कि पति या पत्नी को नौकरी से हटाने के लिए ऐसी शिकायत करना ठीक नहीं। यह मानसिक क्रूरता (mental cruelty) को दर्शाता है। ऐसा आचरण विवाह के विघटन को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि दंपती फरवरी 2002 में शादी की। इस शादी के बाद वो एक दिन भी साथ नहीं रहा।
वर्ष 2008 में तमिलनाडु (Tamilnadu) में एक ट्रायल कोर्ट द्वारा तलाक मिल गया था। इसके बाद पुरुष ने दूसरी महिला से शादी कर ली। हालांकि फरवरी 2019 में हाईकोर्ट द्वारा तलाक के आदेश को दरकिनार किया गया।
इसके बाद अपनी दूसरी शादी को बचाने की चिंता पुरुष को हुई। उसने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने पहले मध्यस्थता का सुझाव दिया। ऐसा इसलिए ताकि वे पहले से ही दो दशकों (Two decades) से अलग रह रहे हैं। लेकिन महिला अड़ी थी। वो कह रही थी कि उसके द्वारा शादी को खत्म करने के लिए मंजूरी नहीं दी जाएगी।
महिला का यह मत था कि वैवाहिक संबंधों में सुधार की संभावना न होना, तलाक (Divorce) का आधार नहीं हो सकता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-142 का हावाला दिया। कोर्ट ने अपने विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए तलाक के जरिये पति-पत्नी को अलग कर दिया।