Sedition Law : एक ओर 124A कानून की केंद्र कर रहा है समीक्षा दूसरी ओर दर्ज हो रहे मुकदमें, ऐसा क्यों : Supreme Court

Sedition Law : राजद्रोह कानून को लेकर बहस के बीच अहम सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार ने अपने पहले के स्टैंड के उलट गंभीरता से इस पर विचार करने का मन बनाया है तो फिर वो इस मामले में अंतिम फैसला दर्ज होने तक नये केस दर्ज होने पर रोक क्यों नहीं लगा देती?

Update: 2022-05-11 03:27 GMT

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Sedition Law : भारत में राजद्रोह कानून ( Sedition Law ) को लेकर वर्तमान में असमंजस की स्थिति है। एक तरफ केंद्र सरकार राजद्रोह कानून को निरस्त पर विचार कर रहे हैं, दूसरी तरफ राजद्रोह के मुकदमें भी दायर हो रहे हैं। यहां पर सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार ( Modi Government ) ने इस मुद्दे पर पहले के उलट गंभीरता से विचार करने का मन बनाया है तो फिर वो इस मामले में अंतिम फैसला दर्ज होने तक नये केस दर्ज होने पर सरकार रोक क्यों नहीं लगा देती।

केंद्र, राज्य से क्यों नहीं कहती कि राजद्रोह का केस दर्ज न करे

10 मई को सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में सुनवाई के दौरान भी यही सवाल उठे थे। खुद सीजेआई एनवी रमना सहित पीठ के अन्य दो जज व विरोधी पक्ष के वकील भी यही सवाल उठा रहे थे। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब तक केंद्र सरकार इस कानून पर दोबारा विचार कर रही है तब तक क्यों नहीं राज्यों को निर्देश जारी करती है कि वह राजद्रोह यानी आईपीसी की धारा-124 ए के तहत केस दर्ज न करे। इससे पहले केंद्र ने कहा था कि केस राज्यों द्वारा दर्ज किया जा रहा है और केंद्र सरकार का उससे लेना देना नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट (upreme Court ) ने कहा है कि अगर राजद्रोह कानून ( Sedition Law ) पर में केंद्र ने दोबारा विचार करने का फैसला किया है तोऐसे में सुनवाई टाली जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सुनवाई टाल सकते हैं लेकिन हमारी चिंता है कि कानून का लगातार दुरुपयोग हो रहा है। अटॉर्नी जनरल भी इस बात को स्वीकार करते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केस राज्यों द्वारा दर्ज किया जा रहा है। इसमें केंद्र का कोई रोल नहीं है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप राज्यों को क्यों नहीं कहते हैं कि जब तक केंद्र सरकार कानून का दोबारा परीक्षण कर रही है तब तक मामले में केस दर्ज न किया जाए।

केंद्र की ओर से SC में हलफनामा दायर

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ( CJI NV Raman), जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हीमा कोहली की बेंच के सामने मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और गोपाल शंकरनारायण भी पेश हुए। दरअसल, देशद्रोह या राजद्रोह ( Sedition Law ) को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124A की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में अब तक सरकार इस कानून का बचाव कर रही थी, लेकिन अब सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा है कि वो इस कानून पर विचार करने को तैयार है। इस मुद्दे पर मंगलवार को सुनवाई भी हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में इस कानून का बचाव करती रही सरकार का अब कहना है कि उसने इस कानून के प्रावधानों पर विचार करने का फैसला लिया है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी से मिले निर्देश के बाद मंत्रालय ने इस कानून के प्रावधानों पर विचार और जांच करने का फैसला लिया है। केंद्र ने अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दे दिया है। इससे पहले मोदी सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था कि इस कानून पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है।लेकिन अब केंद्र का स्टैंड बदल गया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 1962 में संविधान बेंच के फैसले के मुताबिक इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। सरकार ने इसके लिए 1962 केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले का जिक्र किया था।

CJI ने भी एक साल पहले उठाये थे सवाल

जुलाई 2021 में चीफ जस्टिस रमणा ने कहा था कि 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत क्यों है? उस वक्त सीजेआई रमणा ने कहा था कि ये अंग्रेजों का बनाया कानून है, जिसे स्वतंत्रता की लड़ाई को दबाने के लिए लाया गया था। तब अटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि इस कानून को निरस्त करने की बजाय गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए, ताकि इसका कानूनी मकसद पूरा हो सके। अब इसी मुद्दे को लेकर बहस जारी है लेकिन चिंता की बात यह है कि आज भी राजद्रोह के आरोप में मुकदमें दर्ज क्यों हो रहे हैं? 

राजद्रोह कानून है क्या?

भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में राजद्रोह या देशद्रोह ( Sedition Law ) का जिक्र है। इसके अन्तर्गत अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर या इशारों से या फिर चिह्नों के जरिए या किसी और तरीके से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने की कोशिश करता है या असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो उसे राजद्रोह का आरोपी माना जाएगा। ये एक गैर-जमानती अपराध है और इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

राजद्रोह कानून का इतिहास

राजद्रोह या देशद्रोह कानून ( Sedition Law ) सबसे पहले कानून इंग्लैंड में अस्तित्व में आया। 17वीं सदी में जब इंग्लैंड में सरकार के खिलाफ आवाजें उठने लगीं तो अपनी सत्ता बचाने के लिए राजद्रोह का कानून लाया गया। बाद में इसे ब्रिटिश सरकार ने भारत में भी लागू किया। भारत में ब्रिटेन के कब्जा करने के बाद थॉमस मैकॉले को इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी मिली। 1860 में आईपीसी को लागू किया गया। उस वक्त इसमें देशद्रोह का कानून नहीं था। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में इसे लागू करने का मकसद यह था कि भारतीय क्रांतिकारियों को काबू में रखा जाए। इस मकसद से आईपीसी में संशोधन किया और इसमें धारा 124A को जोड़ा दिया गया। आईपीसी में ये धारा 1870 में जोड़ी गई। उस समय इस धारा का इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने और सेनानियों को गिरफ्तार करने के लिए किया जाने लगा। इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी, भगत सिंह और बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ हुआ।

इंदिरा सरकार ने किया था बड़ा बदलाव

देश को आजादी मिलने के बाद 1947 में तत्कालीन नेताओं ने देशद्रोह के कानून को हटाने की बात कही थी लेकिन जब भारत का अपना संविधान लागू हुआ तो उसमें भी धारा 124A को जोड़ा गया। 1951 में जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत बोलने की आजादी को सीमित करने के लिए संविधान संशोधन लाया, जिसमें अधिकार दिया गया कि बोलने की आजादी पर तर्कपूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है। 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने देशद्रोह को 'संज्ञेय अपराध' बना दिया। इस कानून ने पुलिस को किसी को भी बिना वारंट के पकड़ने का अधिकार दे दिया। गया।

राजद्रोह कानून का विरोध क्यों?

राजद्रोह कानून ( Sedition Law ) का विरोध करने वालों का तर्क है कि सरकार इसका गलत इस्तेमाल कर रही है। अपने विरोधियों पर इस कानून का इस्तेमाल कर रही है। जो भी सरकार के खिलाफ कुछ बोलता है तो उस पर देशद्रोह का केस लगा दिया जाता है। साल 2014 से केंद्र सरकार की एजेंसी NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो धारा 124A के तहत दर्ज केस का रिकॉर्ड रख रही है। NCRB के मुताबिक 2014 से लेकर 2020 तक राजद्रोह के 399 मामले दर्ज किए गए हैं। इन मामलों में 603 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से केवल 13 लोगों पर ही दोष साबित हुए। जब अधिकांश लोग इस आरोप से मुक्त हो रहे है। तो इसका मतलब है कि मुकदमे गलत दायर हो रहे हैं। 

इस फैसले को माना जाता है मिसाल

देश आजाद होने के बाद पहली बार 1951 में तारा सिंह गोपी चंद मामले में किसी ने अदालत में इस कानून पर सवाल उठाए। तब पंजाब हाईकोर्ट ने धारा 124A को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध माना था। बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर भाषण देने पर राज्य सरकार ने राजद्रोह ( Sedition Law ) का केस दर्ज किया। इस मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की आलोचना कर देने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। इस मामले में तभी दंडित किया जा सकता है जब उससे हिंसा भड़कती हो। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को आज भी धारा 124A से जुड़े मामलों के लिए मिसाल के तौर पर लिया जाता है। अब इस दुनिया में नहीं रहे पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में देशद्रोह का केस दर्ज किया गया था। जून 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को निरस्त कर दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि हर नागरिक को सरकार की आलोचना करने का हक है। बशर्ते उससे कोई हिंसा न भड़के।

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