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कोविड -19

पहले मां के पास रखे जाते थे 85% नवजात बच्चे, कोरोना के डर से गिरकर यह संख्या पहुंच गई 55 प्रतिशत

Janjwar Desk
20 March 2021 8:11 AM GMT
पहले मां के पास रखे जाते थे 85% नवजात बच्चे, कोरोना के डर से गिरकर यह संख्या पहुंच गई 55 प्रतिशत
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इस अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन और लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है।

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

कोरोना काल में समय से पहले पैदा हुए या फिर कम वजन वाले बच्चों की मौत अधिक दर्ज की गयी है। इसका कारण है, अधिकतर कोरोना पॉजिटिव महिलाओं या फिर जिनका कोरोना टेस्ट नहीं हुआ था, वैसी गर्भवती महिलाओं ने जब इस कोरोना काल में शिशुओं को जन्म दिया तब शिशुओं को तुरंत मां के पास से हटाकर इन्क्युबेटर में परवरिश की गयी, जबकि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार शिशुओं की बेहतर परवरिश और जिन्दा रहने के संभावनाएं मां की गोद में और मां के दूध से बढ़ जाती हैं।

'ग्लोबल हेल्थ जर्नल' में प्रकाशित एक शोधपत्र का निष्कर्ष है कि कोरोना काल में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर बढ़ गयी थी। इस अध्ययन को दुनिया के 62 देशों के 1100 स्वास्थ्य कर्मचारियों के वर्ष 2020 के जुलाई से दिसम्बर तक के अनुभवों के आधार पर किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में जितने नवजात का जन्म होता है, उसमे से 10 प्रतिशत से अधिक नवजात समय से पहले पैदा होते हैं। हरेक वर्ष जितने नवजात पैदा होते हैं, उसमें से 28 लाख नवजात पैदा होने के 28 दिनों के भीतर ही मर जाते हैं, इसमें से 80 प्रतिशत का वजन पैदा होने के समय सामान्य से कम रहता है।

इस अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन और लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है। कोरोना काल के पहले लगभग 85 प्रतिशत बच्चों को पैदा होते ही मां के पास रखा जाता था, पर कोरोना के डर से यह संख्या गिर कर 55 प्रतिशत तक पहुँच गयी। हालांकि इस अध्ययन में नवजात की मृत्यु दर का आंकलन नहीं किया गया है, फिर भी निष्कर्ष है कि नवजातों की मृत्यु दर अधिक रही होगी।

अनेक अध्ययन बताते हैं की समय से पहले पैदा होने वाले और कम वजन वाले नवजातों के जीने की संभावना मां की गोद में या मां से चिपके रहने और मां का दूध पीने से बढ़ जाती है। चिकित्सा विज्ञान में इसे कंगारू केयर के नाम से जाना जाता है, दरअसल नवजातों के लिए सबसे जरूरी होता है, उनके शरीर का तापमान जल्दी स्थिर होना, और यह काम मां के स्पर्श से जल्दी और बेहतर होता है। दूसरा तरीका इन्क्युबेटर का है, जिसे कोरोना काल में खूब आजमाया गया।

लांसेट के ई-क्लिनिकल मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार यदि कंगारू केयर को हरेक नवजात पर आजमाया जाए तो हरेक वर्ष 1,25,000 नवजातों की मौत को रोका जा सकता है। इस अध्ययन को विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलोफोर्निया और लन्दन स्कूल ओग हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने 2 किलोग्राम से कम वजन वाले नवजातों पर किया था।

इसके अनुसार कोरोना से दुनियाभर में महज 2000 नवजातों की मौत दर्ज की गयी है, पर इसके भय से कोरोना से संक्रमित या फिर बिना परीक्षण वाली माताओं के लगभग सभी नवजातों को पैदा होते ही मां से अलग कर इन्क्युबेटर में रख दिया गया।

वर्ष 2017 में पीडियाट्रिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार कंगारू केयर वाले नवजात भविष्य में बेहतर और सफल इंसान बनते हैं और उनके मस्तिष्क का विकास इन्क्युबेटर के सहारे पालने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर होता है। इसके अनुसार कंगारू केयर वाले नवजातों की मृत्यु दर 3।5 प्रतिशत होती है, जबकि इन्क्युबेटर में नवजातों की मृत्यु दर इससे दुगुनी से अधिक, 7।7 प्रतिशत रहती है। इस अध्ययन को कोलंबिया में किया गया था। जाहिर है, मां का स्पर्श नवजातों के जीवन की सम्भावनाओं को बढाता है, और उन्हें बेहतर इंसान भी बनाता है।

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