Begin typing your search above and press return to search.
कोविड -19

मध्य प्रदेश में 3 करोड़ 19 लाख बच्चों पर मात्र 2,418 बेड, कैसे होगा कोरोना की तीसरी लहर का मुकाबला

Janjwar Desk
22 Jun 2021 11:05 AM GMT
मध्य प्रदेश में 3 करोड़ 19 लाख बच्चों पर मात्र 2,418 बेड, कैसे होगा कोरोना की तीसरी लहर का मुकाबला
x

कोरोना की तीसरी लहर बतायी जा रही है बच्चों के लिए बहुत खतरनाक

MP के कुल 52 में से मात्र 20 जिला अस्पतालों में ही बच्चों के आईसीयू हैं, इन 20 जिला अस्पतालों में बच्चों के लिए सिर्फ 2,418 बेड उपलब्ध हैं, इसमें भी मात्र 1,078 पीडियाट्रिक वार्ड के बेड हैं, इसके मुकाबले मध्य प्रदेश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की करीब 3 करोड़ 19 लाख की आबादी है.....

जावेद अनीस का विश्लेषण

जनज्वार। कोरोना की दूसरी लहर धीमी पड़ रही है, लेकिन इसी के साथ ही तीसरे लहर की आहट भी सुनाई पड़ने लगी है। आशंका जताई जा रही है कि तीसरी लहर सितंबर से अक्टूबर माह के बीच आ सकती है। दूसरी लहर ने हमें तैयारी के लिये करीब एक साल का समय दिया था, लेकिन इसे शेखी बघारने में ही गंवा दिया गया। अब करोना की अगली लहर इतना मौका नहीं देने वाली है ऐसे में इसके लिये युद्धस्तर के तैयारियों की जरूरत है।

कहा जा रहा है कि अगली लहर बच्चों को ज्यादा और गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। हालांकि इसको लेकर मतभेद भी हैं। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का मानना है कि तीसरी लहर के विशेष रूप से बच्चों को प्रभावित करने की संभावना कम है, लेकिन यह वायरस जिस हिसाब से अभी तक अपने स्वरूप और प्रभाव में बदलाव लाया है उसे देखते हुये किसी भी संभावना को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

सामान्य तौर पर भी बच्चों को वयस्‍कों की तरह कोविड से प्रभावित होने का खतरा तो बना ही रहता है, इस लिहाज से भी अगर तीसरी लहर में अधिक लोग प्रभावित होंगे तो उसमें बच्चों की संख्या भी अधिक हो सकती है। भारत में बच्चों की तीस करोड़ से अधिक की आबादी है, जिनमें करीब 14 करोड़ बच्चे 0 से 6 वर्ष के बीच के हैं। इसलिये अगर अगली लहर में बच्चों के लिये अतिरिक्त जोखिम नहीं भी हो तो भी हमें बच्चों को ध्यान में रखते हुये विशेष तैयारी करने की जरूरत है।

बच्चों की स्वास्थ्य सेवायें वयस्कों के मुकाबले थोड़ी अलग होती हैं, मिसाल के तौर पर बच्चों का आईसीयू जिसे पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) कहा जाता है, वयस्कों के आईसीयू से अलग होता है। इसी प्रकार से बच्चों का ऑक्सीजन मास्क भी पूरी तरह अलग होता है, इसलिये अगर बच्चों में बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलता है तो इसके लिये हमारी व्यवस्थायें वयस्कों के मुकाबले और भी खस्ताहाल हैं। इसे हम मध्य प्रदेश के उदाहरण से समझ सकते हैं।

आज हालत यह है कि मध्य प्रदेश के कुल 52 में से मात्र 20 जिला अस्पतालों में ही बच्चों के आईसीयू हैं, इन बीस जिला अस्पतालों में बच्चों के लिए सिर्फ 2,418 बेड उपलब्ध हैं, इसमें भी मात्र 1,078 पीडियाट्रिक वार्ड के बेड हैं। इसके मुकाबले मध्य प्रदेश में बच्चों की आबादी देखें तो यहां 18 साल से कम उम्र के बच्चों की करीब 3 करोड़ 19 लाख की आबादी है। बच्चों के लिहाज से स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में कमोबेश देश के सभी राज्यों के यही हालात हैं। आज की तारीख में देश के चुनिन्दा बड़े शहरों में ही बच्चों के लिये पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) उपलब्ध हैं, छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में इस तरह की सुविधाएं नहीं उपलब्ध हैं।

दूसरी लहर के तूफ़ान ने हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था और सत्ताधारियों के खोखले जुमलों की पोल खोल दी हैं, ऐसे में महामारी विशेषज्ञ तीसरी लहर से बचने का सिर्फ एक ही रास्ता सुझा रहे हैं टीकाकरण, लेकिन बच्चों के लिये टीका अभी उपलब्ध नहीं है और इसको लेकर अभी पक्के तौर पर कुछ कहा भी नहीं जा सकता है कि बच्चों के लिए टीका कब तक बनेगा। ऐसे में बड़ों के मुकाबले बच्चों के अगली लहर से बचाव के लिये विशेष तैयारी और सावधानी की आवश्यकता है।

चूंकि हमारे देश के अधिकतर हिस्सों में बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये बुनियादी ढ़ांचा ही उपलब्ध नहीं है, ऐसे में कम से कम प्रत्येक ब्लाक या जिले स्तर पर बच्चों को ध्यान में रखते हुये बुनियादी हेल्थकेयर ढांचे के निर्माण की पहली और तात्कालिक जरूरत है, जिसके अंतर्गत पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू), आपातकालीन कक्ष, ऑक्सीजन, ऐंबुलेंस, प्रशिक्षित डॉक्टर और कोविड वॉर्ड और बिस्तरों की सुविधा उपलब्ध हो। स्थानीय निकाय स्तर पर भी बच्चों को ध्यान में रखते हुये विशेष तैयारियों की जरूरत है जिसके अंतर्गत पंचायत व वार्ड स्तर पर कोविड के प्रबंधन की योजना बनाने, अभिभावकों में जागरूकता, उनका टीकाकरण जैसे उपाय किये जाने की जरूरत है।

कोविड की वजह से बच्चे अप्रत्यक्ष तौर पर भी प्रभावित हुये हैं, जिसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर बच्चों ने अपने मां-पिता या फिर दोनों को खो दिया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है कि राज्यों की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक़ बीते 29 मई तक 9,346 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। जाहिर है यह आंकड़े अधिक हो सकते हैं और आगे आने वाली लहरों में महामारी के कारण और अधिक बच्चों के अनाथ हो जाने की संभावना है।

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं, लेकिन जैसा कि एनसीपीसीआर ने कहा है इस दिशा में और ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है जिसके तहत सभी राज्यों में कोविड 19 महामारी की वजह से अनाथ हुये बच्चों की जानकारी इकठ्ठा करने के लिये एक मजबूत और विश्वसनीय व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है। साथ ही ऐसे सभी बच्चों के पालन पोषण और शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी सरकार द्वारा उठायी जाये। कोविड 19 की वजह से जो बच्चे एकल माता या पिता के सहारे रह गये हैं, उन्हें भी आवश्यकता अनुसार मदद दिये जाने की जरूरत है।

Next Story

विविध