SC हुआ सख्त, अधिकारियों पूछा हाशिए पर रह रही SC, ST आबादी को क्या निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ दें?
जनज्वार डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर को राष्ट्रीय संकट करार दिया है। कोर्ट ने इसके साथ अधिकारियों को फटकार लगाते हुए पूछा है कि हाशिए पर रहे लोगों और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की आबादी का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?
कोर्ट ने कहा कि सत्तर सालों में हमें जो स्वास्थ्य सेक्टर मिला है, वह अपर्याप्त है और स्थिति खराब है। कोर्ट ने कहा कि छात्रावास, मंदिर, गिरिजाघरों और अन्य स्थानों को कोविड मरीज देखभाल केंद्र बनाने के लिए खोलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल को अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीके के लिए भुगतान करने में सक्षन नहीं होगा।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि सूचना का निर्बाध प्रवाह होना चाहिए, हमें नागरिकों की आवाज सुननी चाहिए। यह राष्ट्रीय संकट है। कोई इस तरह की सोच नहीं होनी चाहिए कि इंटरनेट पर की जाने वाली शिकायतें हमेशा गलत होती हैं। सभी पुलिस महानिदेशकों को कड़ा संदेश जाना चाहिए कि किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित न करने को लेकर लेकर भी कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार की खिंचाई की। कोर्ट ने कहा -आप हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकते। मेरी अंतरात्मा हिल गई है। हम आपके हाथों 500 लोगों की मौत नहीं देख सकते। आपको तत्काल कुछ करना होगा और दिल्ली को 200 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जो कमी हो रही है, उसकी आपूर्ति करें।
न्यायालय ने कोविड-19 के दौरान आवश्यक आपूर्ति और सेवा सुनिश्चित करने के लिए स्वत: संज्ञान सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।