JNU का नया विवादास्पद पाठ्यक्रम, मुस्लिमों और कम्युनिस्टों को बताएगा 'जिहादी आतंकवादी'
जनज्वार। राजधानी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय हमेशा सुर्खियों में रहता है। अब खबर है कि जेएनयू अकादमिक परिषद द्वारा अप्रूव्ड (अनुमोदित) एक नए पाठ्यक्रम में कहा गया है कि जिहादी आतंकवाद, कट्टरपंथी धार्मिक आंतकवाद का एकमात्र रूप है। इस नए विवादित पाठ्यक्रम में कहा गया है कि तत्कालीन सोवियत संघ और चीन में कम्युनिस्ट शासन "आतंकवाद के प्रमुख राज्य-प्रायोजक" थे जिन्होंने "कट्टरपंथी इस्लामी राज्यों" को प्रभावित किया।
खबरों के मुताबिक इंजीनियरिंग से बीटेक करने के बाद इंटरनेशनल रिलेशंस में विशेषज्ञता के साथ एमएस करने वाले छात्रों 'काउंटर टेररिज्म, एसिमेट्रिक कनफ्लिक्ट्स एंड स्ट्रैटेजीज फॉर कोऑपरेशन अमंग मेजर पावर्स' कोर्स की पेशकश की जाएगी।
द इंडियन एक्सप्रेस ने इस कोर्स का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, पाठ्यक्रम में बताया गया है कि कट्टरपंथी इस्लामी धार्मिक मौलवियों द्वारा साइबर स्पेस के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप दुनियाभर में जिहादी आतंकवाद का इलेक्ट्रॉनिक प्रसार हुआ है। जिहादी आतंकवाद के ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक प्रसार के परिणाम स्वरूप गैर इस्लामी समाजों में हिंसा में तेजी आई है। जो धर्मनिरपेक्ष हैं वह अब हिंसा की चपेट में आ रहे हैं।
इस पाठ्यक्रम को डिजाइन करने वाले सेंटर फॉर कैनेडियन, यूएस एंड लैटिन अमेरिकन स्टडीज के अध्यक्ष अरविंद कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस कहा, इस्लामिक आतंकवाद एक विश्व स्वीकृत (World Accepted) चीज है। तालिबान के बाद अब इसने गति पकड़ ली है।
इसी पाठ्यक्रम में एक अन्य शीर्षक राज्य प्रायोजित आतंकवाद : इसके प्रभाव' है जिसके तहत तत्कालीन सोवियत संघ और चीन को आतंकवाद का प्रमुख राज्य प्रायोजक बताया गया है।
विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की 17 अगस्त को हुई बैठक के दौरान 'काउंटर टेररिज्म, एसिमेट्रिक कॉन्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रेटेजीज फॉर कोऑपरेशन अमंग मेजर पॉवर्स' शीर्षक वाले वैकल्पिक पाठ्यक्रम को मंजूरी दी गई थी। जेएनयू शिक्षक संघ ने आरोप लगाया है कि जिस बैठक में पाठ्यक्रम पारित किया गया, उसमें चर्चा की अनुमति नहीं दी गई।
इंजीनियरिंग में बीटेक के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता के साथ एमएस करने वाले छात्रों को पाठ्यक्रम की पेशकश की जाएगी - मानसून सेमेस्टर के लिए ऑनलाइन कक्षाएं 20 सितंबर से शुरू होंगी।
अकादमिक परिषद शैक्षणिक कार्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालय का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। पाठ्यक्रम के लिए इसकी मंजूरी को कार्यकारी परिषद द्वारा अनुमोदित करना होगा, जो प्रक्रिया के हिस्से के रूप में प्रबंधन और प्रशासनिक मुद्दों पर निर्णय लेती है।
नए पाठ्यक्रम के मॉड्यूल में से एक, 'कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद और उसके प्रभाव' शीर्षक से कहा गया है: "कट्टरपंथी - धार्मिक प्रेरित आतंकवाद ने 21 वीं सदी की शुरुआत में आतंकवादी हिंसा को जन्म देने में एक त ही महत्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभाई है। कुरान की विकृत व्याख्या के परिणामस्वरूप जिहादी पंथवादी हिंसा का तेजी से प्रसार हुआ है जो आतंक द्वारा मौत का महिमामंडन करती है।"