12 हजार सालों में पक्षियों की 1430 प्रजातियां विलुप्त और अब अगले 10 सालों में 669 से 738 और हो जायेंगे खत्म : वैज्ञानिकों का दावा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A new study warns that rate of extinction of birds species is more than double than previous estimates. एक नए विस्तृत अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने बताया है कि अब तक ज्ञात जानकारी की तुलना में पक्षियों का विलुप्तीकरण दुगुनी तेजी से हो रहा है। इस अध्ययन के अनुसार पक्षियों की 12 प्रतिशत प्रजातियाँ पिछले कुछ दशकों के दौरान विलुप्त हो चुकी हैं। बहुत सारी प्रजातियाँ, विशेष तौर पर द्वीपों पर पक्षियों की प्रजातियों के विलुप्तीकरण का कोई रिकॉर्ड आसानी से उपलब्ध नहीं रहता, इसीलिए लगभग सभी अध्ययनों में पक्षियों की विलुप्त प्रजातियों की संख्या वास्तविक से कम रहती है और इससे मानव-जनित खतरों का पक्षियों पर पड़ने वाले प्रभावों का सही आकलन नहीं हो पाता है।
नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में रॉब कुक की अगुवाई में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पिछले लगभग 12,000 वर्षों के दौरान पक्षियों की 1430 प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी हैं, जबकि पहले के अध्ययनों में यह संख्या 640 है (Cooke,R., Sayol,F., Andermann,T. et al, NatCommun14, 8116 (2023). https://doi.org/10.1038/s41467-023-43445-2)। डोडो जैसे पक्षी के विलुप्त होने पर खूब चर्चा की जा जाती है, पर अनेक प्रजातियों के विलुप्तीकरण की खबर वैज्ञानिक जगत को बहुत बाद में लगती है। भूमि पर या आबादी के पास के क्षेत्रों में जब कोई पक्षी विलुप्त होता है, तब उसका पता आसानी से चलता है, पर सुदूर द्वीपों पर विलुप्तीकरण के बारे में हमें पता नहीं चलता। ऐसे विलुप्तीकरण को “डार्क एक्सटिंक्शन” कहते हैं।
डॉ रॉब कुक, जो यूनाइटेड किंगडम सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी में एकोलोजिस्ट हैं, के अनुसार पक्षियों के विलुप्तीकरण की चर्चा में डोडो की खूब चर्चा की जाती है, पर ऐसी ही परिणति वाले अन्य पक्षियों पर कोई बात नहीं करता। उनके दल ने अपना पूरा अध्ययन न्यूज़ीलैण्ड के एक छोटे द्वीप पर केन्द्रित किया है। न्यूज़ीलैण्ड में भूमि और छोटे द्वीपों पर भी पक्षियों के बारे में विस्तृत रिकॉर्ड लम्बे समयकाल का उपलब्ध है।
इस अध्ययन के दौरान इन द्वीपों पर पक्षियों के विलुप्तीकरण की वैज्ञानिकों को जानकारी और वास्तविक विलुप्त हो चुकी प्रजातियों की सख्या में अंतर देखा गया, फिर इस अंतर के आधार पर वैश्विक स्तर पर पक्षियों के विलुप्तीकरण के संदर्भ में वास्तविक संख्या और वैज्ञानिकों को ज्ञात संख्या का आकलन किया गया, जिससे स्पष्ट है कि प्रजातियों के विलुप्तीकरण की संख्या अब तक ज्ञात संख्या से दुगुनी से भी अधिक है।
पक्षियों के विलुप्तीकरण का कारण जंगलों को मानव उपयोग के आधार पर बड़े पैमाने पर काटना, तापमान वृद्धि, अत्यधिक शिकार, जंगलों में बढ़ती आग की तीव्रता और दायरा और बाहर की प्रजातियों (invasive species) की संख्या में वृद्धि है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 10 वर्षों के भीतर पक्षियों की 669 से 738 और प्रजातियाँ विलुप्त हो जायेंगीं। इस विलुप्तीकरण की तुलना 14वीं शताब्दी में रीढ़धारी जंतुओं के विलुप्तीकरण से की जा रही है। 14वीं शताब्दी के दौरान पूरी दुनिया में गाँव और शहरों का विकास इतने बड़े पैमाने पर शुरू किया गया था कि इस क्रम में अनेक रीढ़धारी जंतुओं का पृथ्वी से अस्तित्व ही समाप्त हो गया था।
नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में ही अमेरिका के ऑबर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक क्रिस्टोफर लेपजिक के नेतृत्व में बिल्लियों के खाने की आदतों पर एक विस्तृत अध्ययन प्रकाशित किया गया है (Lepczyk,C.A., Fantle-Lepczyk, J.E., Dunham,K.D. et al. A global synthesis and assessment of free-ranging domestic cat diet. NatCommun14, 7809(2023), https://doi-org/10.1038/s41467-023-42766-6)।
इस अध्ययन के अनुसार बिल्लियों को पालतू बनाने का काम लगभग 9000 वर्ष पहले शुरू किया गया था, और आज स्थिति यह है कि बिल्लियाँ अंटाकर्टिका को छोड़कर पूरी पृथ्वी पर फ़ैल गयी हैं। इन्हें सबसे घातक बाहर की प्रजाति, अस्थानिक प्रजाति, का दर्जा दिया गया है। बिल्लियाँ एक कुशल शिकारी होती हैं और पक्षियों, स्तनधारी, कीटों और सरीसृप की सैकड़ों प्रजातियों को अपना आहार बना लेती हैं, इनमें से 17 प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ संकट में हैं, विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रही हैं।
इस अध्ययन के अनुसार बिल्लियाँ सबसे अधिक पक्षियों की 981 प्रजातियों का शिकार करती हैं, इसके बाद सरीसृप की 463 प्रजातियाँ, स्तनधारियों की 431 प्रजातियाँ, कीटों की 119 प्रजातियों और उभयचर की 57 प्रजातियों का शिकार करती हैं। एक दुखद तथ्य यह है कि द्वीपों पर बिल्लियाँ भूमि की तुलना में तीनगुना अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों का शिकार करती हैं। न्यूज़ीलैण्ड में पक्षियों की दो प्रजातियाँ केवल बिल्लियों के शिकार के कारण विलुप्त हो गईं। ऑस्ट्रेलिया में घरों में पलने वाली बिल्लियाँ हरेक वर्ष लगभग 30 करोड़ जंतुओं और पक्षियों का शिकार करती हैं। जर्मनी के वाल्ल्दोर्फ़ शहर में बसंत के तीन महीनों के दौरान घरेलु बिल्लियों का घर से बाहर निकलना इन्हें पालने वालों के लिए अपराध घोषित किया गया है, क्योंकि उस समय शहर में पार्कों में क्रेस्टेड लार्क नामक पक्षियों के प्रजनन का समय होता है।
बिल्लियों से सबसे अधिक खतरा उन पक्षियों को रहता है जो जमीन पर या फिर कम ऊंचाई के बृक्षों पर रहते हैं और अपना घोंसला बनाते हैं। इस अध्ययन के अनुसार केवल बिल्लियों के कारण पक्षियों की 9 प्रतिशत, स्तनधारियों की 6 प्रतिशत और सरीसृप की 4 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्तीकरण की तरफ जा रही हैं।
तापमान बृद्धि के कारण पक्षियों के विलुप्तीकरण के साथ ही उनके आकार बदलने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। अत्यधिक ठंढक के माहौल में पक्षी शरीर की गर्मी को अपने पंखों से बाहर नहीं जाने देते, पर चोंच और पैरों में रक्त वाहिकाओ का सघन जाल रहता है और इस कारण उससे शरीर की गर्मीं बाहर जाती है। इसीलिए, अत्यधिक ठंढक के समय पक्षी अपने पैरो और चोंच को भी पंखों से ढक लेते हैं। अत्यधिक गर्मीं के समय पक्षी सीधे खड़े रहते हैं जिससे शरीर की गर्मी चोंच और पैरों से बाहर निकलती रहे। यह एक सीधा सा तथ्य है कि शरीर के सतह के अनुपात में शरीर में गर्मी उत्पन्न होगी और चोच और पैरों की सतह का क्षेत्र यह निर्धारित करेगा कि शरीर की गर्मीं कितनी तेजी से शरीर से बाहर जायेगी।
हाल में ही द रॉयल सोसाइटी पब्लिशिंग में प्रकाशित एक अध्ययन (Alexandra McQueen, R. Barnaby, Mathew R et al. Birds are better at regulating heat loss through their legs than their bills: implications for body shape evolution in response to climate. The Royal Society Publishing (Nov 2023): https://doi.org/10.1098/rsbl.2023.0373) के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण पक्षियों को शरीर की गर्मी को सामान्य से अधिक मात्रा में और तेजी से निकालने की जरूरत पड़ेगी, इसलिए संभव है पक्षियों के विकास के क्रम में इनके पैर पहले से अधिक लम्बे और चोंच पहले से अधिक लम्बी होती जाए। यह अध्ययन पक्षियों की 14 प्रजातियों पर किया गया, इस दौरान थर्मल इमेजिंग तकनीक से उनके पैरों और चोंच से निकलने वाली गर्मी का अध्ययन किया गया।
इसी अध्ययन को आगे बढाते हुए, साइंस इन पोलैंड नामक वेबसाइट पर (ScinPoland.pl/en/news-22.9.23) एक लेख में बताया गया है कि तापमान वृद्धि से पक्षियों के केवल चोंच और पैर ही लम्बे और बड़े नहीं होंगे, बल्कि उनके मुख्य शरीर का आकार भी छोटा होता जाएगा, जिससे उन पर गर्मीं का असर कम हो सके।
इतना तो स्पष्ट है कि दुनियाभर के पक्षियों की प्रजातियाँ संकट में हैं और बेतरतीब विकास, तापमान वृद्धि, जंगलों का काटना, शिकार, निर्जन द्वीपों पर आबादी का बसना, शिकारी जंतुओं और पक्षियों का बढ़ता दायरा – इस खतरे को और बढ़ा रहे हैं।