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पर्यावरण

वायु प्रदूषण देश में औसत उम्र हो रही 6 साल कम, पर मोदी सरकार कहती है प्रदूषण से नहीं होता कोई बीमार

Janjwar Desk
4 Sep 2021 4:30 AM GMT
वायु प्रदूषण देश में औसत उम्र हो रही 6 साल कम, पर मोदी सरकार कहती है प्रदूषण से नहीं होता कोई बीमार
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आज हो चुके हैं राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के 4 साल पूरे और 6897.06 करोड़ रुपये खर्च, मगर लक्ष्य अब भी आधा-अधूरा

उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु 8 वर्ष कम हो रही है, जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए यह समय 7 वर्ष का है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश के उत्तरी भाग में जो वायु प्रदूषण का स्तर रहता है, वह दुनिया के किसी भी क्षेत्र की तुलना में दस-गुना से भी अधिक है। हमारे देश में केवल वायु प्रदूषण के कारण पूरी आबादी की औसत आयु में 6 वर्ष की कमी हो जाती है। भारत में यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु प्रदूषण के मानकों और दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए तो पूरी आबादी के औसत आयु में 5.9 वर्ष की वृद्धि हो जायेगी – ऐसा यूनिवर्सिटी फ शिकागो के वैज्ञानिक माइकल ग्रीनस्टोन की अगुवाई में हाल में ही प्रकाशित एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स में बताया गया है।

जाहिर है, जल्दी ही मोदी सरकार और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस रिपोर्ट को बकवास करार देगा, और पर्यावरण मंत्री गर्व से बतायेंगे कि हमारे देश में वायु प्रदूषण से मौतों और औसत आयु में कमी का कोई सवाल नहीं उठता, क्योंकि सरकार के अनुसार तो देश में वायु प्रदूषण से कोई बीमार भी नहीं होता।

कुछ दशक पहले तक दुनिया में सबसे अधिक मौतें या फिर मनुष्य की औसत आयु में सर्वाधिक कमी प्रदूषित पानी पीने के कारण होती थी, पर अब वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें होती हैं। यह, एक चौकाने वाला तथ्य है। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार पूरी दुनिया के सन्दर्भ में अकेले वायु प्रदूषण के कारण औसत आयु में 2.2 वर्ष की कमी हो जाती है, और यह प्रभाव धूम्रपान, गंदे पानी और यहाँ तक कि एचआईवी/एड्स जैसे कारणों की तुलना में बहुत अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बाहर के कारणों में सबसे अधिक मातें वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं।

हमारे देश समेत पूरी दुनिया के देशों में बजट का सबसे बड़ा हिस्सा सैन्य साजो-सामान और आतंकवाद से निपटने के नाम पर खर्च किया जाता है, पर पूरी दुनिया की आबादी की औसत आयु में युद्ध और आतंकवाद के कारण महज 0.02 वर्ष की कमी आती है, जबकि वायु प्रदूषण के कारण आयु में 2.2 वर्षों की कमी आती है। गंदे पानी और स्वच्छता के अभाव में आयु में महज 0.59 वर्ष की कमी ही होती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि दुनिया के सभी देश वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों का पालन करें तो औसत आयु में बढ़ोत्तरी हो जायेगी, और इसका सबसे अधिक फायदा दक्षिण एशिया में देखा जाएगा। भारत में औसत आयु में 5.9 वर्षों की वृद्धि होगी, जबकि बांग्लादेश के लिए यह समय 5.4 वर्षों का और पाकिस्तान के लिए 3.9 वर्षों का है।

वर्ष 2013 तक वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में चीन की हालत बहुत बुरी थी, पर इसके बाद वहां लगातार सख्त कदम उठाये गए और अब वायु प्रदूषण के स्तर में 27 प्रतिशत की कमी आ चुकी है और वहां इसके कारण आयु में महज 2.6 वर्षों की कमी आ रही है। चीन यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन करे तब औसत आयु में 1.5 वर्ष की बढ़ोत्तरी होगी। रिपोर्ट के अनुसार भारत समेत एशियाई देशों में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण कोयले का उपयोग है।

सरकारों को वायु प्रदूषण का कोई प्रभाव नहीं दिखता है, केंद्र में पर्यावरण मंत्रालय में बैठा हरेक मंत्री संसद को रहस्यमय तरीके से बताता है कि वायु प्रदूषण से कोई मरता नहीं, किसी की आयु कम नहीं होती और कोई बीमार भी नहीं पड़ता। फिर भी, लगातार अंतराल पर वायु प्रदूषण के भयानक प्रभाव से सम्बंधित रिपोर्ट प्रकाशित होती रहती हैं, और भारत सरकार के मंत्री ऐसी रिपोर्टों को बिना देखे और बिना पढ़े सिरे से नकार देते हैं। जाहिर है, ये सभी रिपोर्टें विदेशी संस्थानों द्वारा प्रकाशित होतीं हैं, क्योंकि अपने देश में सरकार के विरुद्ध जाकर किसी रिपोर्ट को प्रकाशित करने की हिम्मत न तो यहाँ के वैज्ञानिकों में है और न ही यहाँ के किसी संस्थान में। प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्था, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केवल वही बता सकता है जैसा मंत्री जी या प्रधानमंत्री जी चाहते हैं। प्रधानमंत्री जी तो पर्यावरण के नाम पर पांच हजार वर्षों की परंपरा याद करते हैं।

वर्ष 2020 में एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार भारत में पिछले दो दशक के दौरान वायु प्रदूषण में 42 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। कोविड 19 के दौर के पहले भी यह समाज को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख कारण था और यदि तेजी से इसे रोकने के प्रयास नहीं किये गए तब कोविड 19 के दौर के बाद भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला यही सबसे बड़ा कारण रहेगा। भारत की एक-चौथाई से अधिक आबादी जिस वायु प्रदूषण के स्तर में रहती है, वह स्तर दुनिया में कहीं नहीं मिलता।

भारत की पूरी आबादी जिस वायु प्रदूषण के स्तर में रहती है, वह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए मानकों से बहुत अधिक है, और देश की 84 प्रतिशत से अधिक आबादी ऐसे माहौल में रहती हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों से अधिक है।

पिछली रिपोर्ट के अनुसार भारत में हरेक व्यक्ति की आयु वायु प्रदूषण के कारण औसतन 5।2 वर्ष कम हो जाती है। दिल्ली के वायु प्रदूषण की खूब चर्चा की जाती है, पर इससे आगे कुछ नहीं होता। दिल्ली के बारे में रिपोर्ट बताता है कि यदि यहाँ वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुरूप हो तब यहाँ के निवासियों की आयु में 9.4 वर्षों की बृद्धि हो जायेगी, और यदि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वायु प्रदूषण मानकों के अनुरूप प्रदूषण का स्तर हो तब भी औसत आयु में 6.5 वर्षों की वृद्धि हो जायेगी।

उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु 8 वर्ष कम हो रही है, जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए यह समय 7 वर्ष का है। रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में औसत वायु प्रदूषण में 25 प्रतिशत की भी कमी की जा सके तब भी भारतीयों का जीवन 1.6 वर्ष बढ़ जाएगा, जबकि दिल्ली के लोगों का जीवन 3.1 वर्ष बढ़ जाएगा। पूरे उत्तर प्रदेश में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है, पर राजधानी लखनऊ सबसे प्रदूषित है। यहाँ के निवासियों का जीवन 10।3 वर्ष केवल वायु प्रदूषण के कारण कम हो रहा है।

दुनिया में वायु प्रदूषण लगभग हरेक जगह है और दुनिया में लोगों की औसत आयु 2 वर्ष केवल वायु प्रदूषण के कारण कम हो रही है। सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र दक्षिण एशिया है और इसके बाद दक्षिण पूर्व एशिया का स्थान है। दक्षिण एशिया में भारत से भी अधिक प्रदूषित बांग्लादेश है, जहां लोगों की आयु 6.2 वर्ष कम हो रही है, राजधानी ढाका के लिए तो यह समय 7.2 वर्ष का है। नेपाल में लोगों की आयु में 4.7 वर्ष और पाकिस्तान में 2.7 वर्ष की कमी आ रही है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि भारत में शीघ्र ही प्रभावी कदम उठाये जाते हैं तो करोड़ों लोगों का जीवन स्तर सुधार जा सकता है। पर, हमारी सरकार तो ऐसी रिपोर्टों को बिना पढ़े ही खारिज करने में माहिर है, और उम्मीद तो यही है कि इस रिपोर्ट के साथ भी ऐसा ही कुछ होगा।

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