ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया 2020 से कोयले से बनी बिजली से होने वाले प्रदूषण के मामले में बने हुए हैं टॉप पर
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Coal pollution : वैश्विक एनर्जी थिंक टैंक एम्बर जी-20 देशों में प्रति व्यक्ति थर्मल पॉवर यानी कोयला जलाकर बनी बिजली से हो रहे उत्सर्जन का जायज़ा लेते हुए अपनी तीसरी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया प्रति व्यक्ति थर्मल पॉवर यानी कोयला से बनी बिजली से होने वाले प्रदूषण के मामले में टॉप दो प्रदूषकों के रूप में उभर कर सामने आए। इनकी यह जगह 2020 से अपरिवर्तित है।
2015 के बाद से 20 जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में से 12 में प्रति व्यक्ति कोयला से बनी बिजली के उत्सर्जन में गिरावट देखी गई। हालाँकि, प्रति व्यक्ति जी-20 कोयला से बनी बिजली से होने वाले उत्सर्जन में 2015 में 1.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 9% बढ़कर 2022 में 1.6 टन कार्बन डाइऑक्साइड हो गया। अगर बात भारत की करें तो 2015 की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति 2015 की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति कोयला से बनी बिजली से होने वाले उत्सर्जन में सात वर्षों में 29% की वृद्धि देखी गई।
हालाँकि 2015 के बाद से, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया अपने प्रति व्यक्ति कोयला से बनी बिजली से होने वाले उत्सर्जन में क्रमशः 26% और 10% की कमी लाये हैं, लेकिन चूंकि उन्होंने शुरू में बहुत अधित कोयले से बनी बिजली का इस्तेमाल किया था इसलिए यह कटौती बहुत कारगर नहीं साबित हुई। वे फिर भी औसतन दुनिया से तीन गुना से ज़्यादा ही कोयला से बनी बिजली के इस्तेमाल के वजह से प्रदूषकों की सूची में आगे हैं।
तापमान बढ़ोतरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने को अपनी पहुंच के भीतर रखने के लिए 2030 तक रिन्यूएबल क्षमताओं को तीन गुना बढ़ाना आवश्यक है और यह तभी संभव है जब मजबूत नीतिगत उपायों, सुरक्षित प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं, सौर और पवन के प्रभावी एकीकरण और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तैनाती में वृद्धि के साथ इस का समर्थन किया जाए। यह आगे कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने में मदद करेगा।
ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया दोनों ही वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक और जी20 औसत से दोगुने से अधिक उत्सर्जन करते हैं। ये चीन, अमेरिका और जापान से भी आगे हैं। यह जी-20 अर्थव्यवस्थाओं के आधे से अधिक देशों में प्रति व्यक्ति कोयला से बनी बिजली के इस्तेमाल से होने वाले उत्सर्जन में गिरावट के बावजूद है।
साफ़ ऊर्जा की ओर बदलाव पर्याप्त तेज़ी से नहीं हो रहा है और कोयला के धन से थर्मल पॉवर द्वारा बनायी और इस्तेमाल की जा रही एनर्जी अभी भी एक मुद्दा बना हुआ है। 2022 में वैश्विक बिजली का 36% हिस्सा कोयले से संचालित हुआ और इससे 8.4 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (tCO2) हुआ, जो कि दुनिया भर में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा 1.1 टन CO2 उत्सर्जित होने के बराबर है।
बढ़ती पवन और सौर क्षमता / ऊर्जा कई जी20 देशों में प्रति व्यक्ति कोयला बिजली उत्सर्जन को कम करने में मदद कर रही है। यूनाइटेड किंगडम में पिछले सात वर्षों में प्रति व्यक्ति कोयला दहन से बनी बिजली से हो रहे उत्सर्जन में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई। यहाँ 93% की गिरावट आई और इससे यह वैश्विक औसत से काफी नीचे आ गया। इसके बाद फ्रांस (-63%), इटली (-50%), और ब्राजील (-42%) में महत्वपूर्ण गिरावट आयी है।
2015 के बाद से शीर्ष दो प्रदूषकों, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया में भी बढ़ते हुए क्लीन पावर / साफ़ ऊर्जा उत्पादन की वजह से प्रति व्यक्ति कोयला संचालित उत्सर्जन में क्रमशः 26% और 10% की गिरावट आई है। लेकिन यह अभी भी उन्हें रैंक में नीचे धकेलने और वैश्विक औसत के करीब लाने के लिए काफी नहीं है।
कोयला की बिजली पर लगातार निर्भरता की वजह से 2022 में ऑस्ट्रेलिया में प्रति व्यक्ति 4 tCO2 से अधिक और दक्षिण कोरिया में प्रति व्यक्ति 3 tCO2 से अधिक का उत्सर्जन हुआ। यह 1.1 टन कार्बन डाइऑक्साइड के वैश्विक औसत का लगभग तीन गुना है। बावजूद इस के कि अंतर्राष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी (आईईए) के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया जैसी परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं को 2030 तक कोयला संचालित बिजली को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
पिछले सात वर्षों में अन्य कोयला-निर्भर जी-20 देशों ने भी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया है। इसमें इंडोनेशिया (+56%), तुर्किये (+41%), चीन (+30%) और भारत (+29%) शामिल हैं। यह स्वच्छ उत्पादन में वृद्धि से ज़्यादातेजी से बढ़ती हुई मांग का परिणाम है। कुल मिलाकर, प्रति व्यक्ति जी-20 उत्सर्जन में 2015 के बाद से बहुत ही कम बदलाव देखा गया है।
एंबर के ग्लोबल इनसाइट् के लीड डेव जोन्स ने कहा, “चीन और भारत को अक्सर दुनिया के बड़े कोयला बिजली प्रदूषकों के रूप में दोषी ठहराया जाता है, लेकिन जब आप जनसंख्या को ध्यान में रखते हैं, तो दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया 2022 में भी सबसे बुरे प्रदूषक थे। परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, उन्हें रिन्यूएबल बिजली को महत्वाकांक्षी रूप से बढ़ाना चाहिए ताकि 2030 तक कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा सके।”
ऑस्ट्रेलिया इंस्टीट्यूट के क्लाइमेट एंड एनर्जी प्रोग्राम के डायरेक्टर / जलवायु और ऊर्जा कार्यक्रम के निदेशक पोली हेमिंग ने कहा: “ऑस्ट्रेलिया सभी गलत कारणों की वजह से विश्व चैंपियन है। हम न केवल दुनिया के तीसरे सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन निर्यातक हैं, बल्कि जब प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन की बात आती है तो हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं, और कोयले पर अपनी निर्भरता में हम विश्व स्तर पर अलग-थलग होते जा रहे हैं।
जबकि ऑस्ट्रेलिया के नवीनतम उत्सर्जन डाटा से पता चलता है कि हमारे जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कितना काम करना बाकी है, फिर भी बातचीत कोयले से चलने वाली बिजली से तेजी से दूर होने के बारे में नहीं है, बल्कि यह इस बारे में है कि हमारे कोयला बिजली स्टेशनों को बंद करने में और विलम्ब कैसे किया जाए।
प्लान 1.5 के प्रोग्राम डायरेक्टर / कार्यक्रम निदेशक, जेहये पार्क ने कहा: “2021 में सीओपी-26 में ग्लोबल कोल टू क्लीन पावर ट्रांज़िशन स्टेटमेंट पर दक्षिण कोरिया ने हस्ताक्षर किए हैं और हाल ही में इस साल के जी-7 में क्लाइमेट क्लब में शामिल हो कर इस ने जलवायु नीति को लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। लेकिन आज आए नतीजों से साफ़ पता चलता है कि कोरिया की प्रतिबद्धता ख़तरे में है।
कोरियाई सरकार को कोयला संचालित बिजली उत्पादन को कम करने के लिए कार्बन क्रेडिट के भुगतान आवंटन का अनुपात बढ़ाने, जो वर्तमान में केवल 10 प्रतिशत है, और पावर मार्किट / बिजली बाजार में पर्यावरण प्रेषण को मजबूत करने जैसे कदम तुरंत उठाने चाहिए।”
जी20 स्वच्छ ऊर्जा में तेजी लाने के वैश्विक प्रयासों को बना या बिगाड़ सकता है। जी20 देश नेतृत्व दिखाने और जीवाश्म ईंधन को समाप्त कर के क्लीन पावर / के युग की शुरुआत करने के लिए वैश्विक कार्रवाई करने के महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, जी-20 के पास जी-20 शिखर सम्मेलन में परिदृश्य तैयार करने और यह दिखाने का अवसर है कि कोयले पर निर्भरता बनाए रखने के बजाय रिन्यूएबिल ऊर्जा में निवेश करने से कई लाभ मिलते हैं।
2030 तक रिन्यूएबल क्षमताओं को तीन गुना करना डेढ़ डिग्री सेल्सियस को पहुंच के भीतर बनाए रखने के लिए आवश्यक है और यह तभी संभव है जब मजबूत नीति उपायों, सुरक्षित प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं, सौर और पवन के प्रभावी एकीकरण और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तैनाती में वृद्धि के साथ पूरक हो। यह बदले में कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से फेजडाउन करने में मदद करेगा।
एम्बर के एशिया प्रोग्राम लीड, आदित्य लोल्ला ने कहा: “जी20 शिखर सम्मेलन के मेजबान के रूप में भारत के पास जी20 में क्लाइमेट नेतृत्व करने और ब्लॉक् / समूह को जवाबदेह बनाए रखने का अवसर है। रिन्यूएबल ऊर्जा को बढ़ाने की भारत की योजना सीओपी-28 के अध्यक्ष के 2030 तक रिन्यूएबल ऊर्जा को तीन गुना करने के आह्वान के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है। भारत का इस आह्वान का शीघ्र समर्थन न केवल जी20 को कार्रवाई करने के लिए प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि विकसित देश अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को कम करें।”