Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

भागीरथी और अलकनंदा नदियों में पिछले 3 दशक में अचानक बाढ़ की घटनाओं में हुई बढ़ोत्तरी के लिए बांध जिम्मेदार

Janjwar Desk
16 Sep 2022 6:00 AM GMT
भागीरथी और अलकनंदा नदियों में पिछले 3 दशक में अचानक बाढ़ की घटनाओं में हुई बढ़ोत्तरी के लिए बांध जिम्मेदार
x

वैज्ञानिक दे चुके हैं चेतावनी कि बड़ी परियोजनाओं पर नहीं लगी लगाम तो आती रहेंगी भयानक तबाहियां (file photo)

भागीरथी नदी पर 11 नए बड़े बाँध निर्माणाधीन हैं या प्रस्तावित हैं, जबकि स्वच्छंद बहने वाली अलकनंदा पर भी 26 नए बाँध निर्माणाधीन हैं या फिर प्रस्तावित हैं। इन बांधों से निश्चित तौर पर नदियों नदियों में पानी के बहाव के साथ ही गंगा में सेडीमेंट की मात्रा भी प्रभावित होगी....

मनुष्य की गतिविधियों के कारण नदियों का कैसे बदल रहा है स्वरूप बता रहे हैं महेंद्र पाण्डेय

Climate change and anthropogenic activities are killing the rivers and impaction the lives of millions of people worldwide. दुनियाभर की नदियों का स्वरुप बदलता जा रहा है और इसका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है – पर अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि दुनियाभर में नदियों को सबसे अधिक खतरा मनुष्यों की गतिविधियों, विशेष तौर पर भूमि उपयोग में बेतरतीब परिवर्तन के कारण है। नदियाँ एक प्राकृतिक भौगोलिक संरचना होती हैं जिसका पारिस्थितिकी तंत्र में विशेष महत्व है, पर समस्या यह है कि इसका उपयोग स्थानीय प्रशासन की जागीर के तौर पर किया जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की दृष्टि से नदियों में पानी का जितना महत्व है, लगभग उतना ही महत्व इसमें जमा होने वाले सेडीमेंट (तलछट) का भी है। यह अधिकतर जलीय जीवन का आवास है। इसके कारण नदियों के बाढ़ क्षेत्र, मुहाना और डेल्टा का निर्माण होता है। नदियाँ जहां समुद्र में मिलती हैं, उस क्षेत्र में सेडीमेंट जमा होता जाता है और पूरे क्षेत्र को ज्वारभाटा और बाढ़ से बचाता है। नदियों में सेडीमेंट के बहाव के कारण बाढ़ क्षेत्र में पोषक तत्वों का नावेनीकरण होता रहता है, जो कृषि के लिए आवश्यक है।

हाल में ही वैज्ञानिक पत्रिका, साइंस, में डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र में बताया गया है कि नदियों में सेडीमेंट के बहाव और इसके जमा होने की दर पहले केवल प्राकृतिक कारणों से तय होती थी, पर वर्तमान में मनुष्य की गतिविधियों का प्रभाव प्राकृतिक कारणों से भी अधिक हो गया है। इस अध्ययन के लिए दुनियाभर की सबसे बड़ी 414 मदियों का चयन किया गया और इनमें वर्ष 1984 से 2020 तक उपग्रह द्वारा प्राप्त चित्रों द्वारा सेडीमेंट के बहाव का गहन अध्ययन किया गया। अध्ययन के लिए इन नदियों के बेसिन क्षेत्र (जलग्रहण क्षेत्र) को वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण में विभाजित किया गया। वैश्विक उत्तर में उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया सम्मिलित हैं जबकि वैश्विक दक्षिण में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और ओशिनिया शामिल हैं।

इस अध्ययन के अनुसार वैश्विक उत्तर की नदियों द्वारा महासागरों तक सेडीमेंट के बहाव में पिछले 40 वर्षों के दौरान 49 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि वैश्विक दक्षिण की नदियों द्वारा महासागरों तक पहुँचने वाले सेडीमेंट की मात्रा में इसी अवधि के दौरान 36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी है। दरअसल वैश्विक उत्तर की अधिकतर नदियाँ अनेकों बांधों से अवरुद्ध हैं, इसलिए सेडीमेंट नदी के निचले हिस्सों में कम पहुंचता है। दूसरी तरफ वैशिक दक्षिण की नदियों में बाँध की समस्या नहीं है, पर इन क्षेत्रों में जंगल तेजी से काटे जा रहे हैं, इसलिए सेडीमेंट की मात्रा बढ़ती जा रही है। पर, वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक दक्षिण की नदियों में भी तेजी से बदलाव आने वाला है, क्योंकि दक्षिण अमेरिका और ओशिनिया में नदियों पर 300 से अधिक बांधों पर काम चल रहा है, या फिर बाँध प्रस्तावित हैं। जाहिर है, बांधों का जाल बिछने के बाद दक्षिण की नदियों में भी निचले हिस्सों में सेडीमेंट का बहाव कम होने लगेगा। बाँध दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी नदी अमेज़न पर भी प्रस्तावित हैं, इस नदी से वर्तमान में दुनिया की किसी भी नदी की अपेक्षा अधिक सेडीमेंट महासागरों तक पहुंचता है।

अमेरिका और पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में नदियों पर बहुत सारे बड़े बाँध हैं, जो नदी के वास्तविक बहाव को रोक देते हैं। बांधों के कारण सेडीमेंट का बहाव भी नियंत्रित और अवरुद्ध हो जाता है। पर, बांधों के सन्दर्भ में एरिका और दूसरे देशों में एक बड़ा अंतर है। अमेरिका में अधिकतर बाँध 50 वर्ष या इससे भी अधिक पुराने हैं, और अब नए बाँध बहुत कम बनाए जा रहे हैं, जबकि यूरेशिया और एशिया में पिछले 30 वर्षों के भीतर ही अधिकतर नये बाँध खड़े किये गए हैं और अनेक अभी निर्माणाधीन हैं।

अमेरिका की नदियों में सेडीमेंट का बहाव पिछले 50 वर्षों से एक जैसा है, पर यूरेशिया और एशिया के देशों की नदियों में नए बांधों के कारण सेडीमेंट का बहाव साल-दर-साल कम होता जा रहा है। इससे सागर तल के सन्दर्भ में निचले देश बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। वियतनाम में मेकोंग नदी पर बड़े बांधों को खड़ा कर उसमे सेडीमेंट के बहाव को प्रभावित किया गया, जिसका नतीजा यह है कि बढ़ते सागर तल के कारण वियतनाम का एक बड़ा हिस्सा खतरे में हैं। ऐसे क्षेत्रों में खतरा दुगुना होता जा रहा है – तापमान बृद्धि के कारण बढ़ते सागर तल से बड़ा क्षेत्र डूबने के कगार पर है और प्राकृतिक तौर पर सागर के किनारों पर जो सेडीमेंट जमा होकर तटीय क्षेत्रों को डूबने से बचाता था, उसके बहाव को नदियों पर बड़े बाँध बनाकर अवरुद्ध कर दिया गया है।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने गंगा को बनाने वाली नदियों – भागीरथी और अलकनंदा – में पानी के बहाव पर विस्तृत अध्ययन किया है और इसे साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। उत्तराखंड के देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदियों का संगम होता है, और यहीं से गंगा का नाम शुरू होता है। इस अध्ययन के लिए वर्ष 1971 से 2010 तक के इन दोनों नदियों के क्षेत्र में बारिश की वार्षिक मात्रा, पानी का बहाव और सेडीमेंट के बहाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। पूरी अवधि को वर्ष 1995 से पहले और बाद के कालखंड में विभाजित किया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि वर्ष 1995 के बाद से दोनों नदियों में बाढ़, विशेष तौर पर अचानक बाढ़ की घटनाएं बढीं हैं।

भागीरथी के रास्ते में तीन बड़े बाँध – मनेरी, टेहरी और कोटेश्वर – हैं, इसलिए इसमें पानी का बहाव कम या मध्यम रहता है, दूसरी तरफ वर्ष 1995 से 2010 के बीच जोशीमठ में स्थित बहाव आकलन केंद्र के अनुसार अलकनंदा में पानी का बहाव दुगुना हो गया है। अलकनंदा में पानी का आकस्मिक तेज बहाव भी बहुत सामान्य है, और इसके जलग्रहण क्षेत्र में वार्षिक बारिश की मात्रा भी बढ़ गयी है। पर, वर्ष 2010 के बाद से नदियों का स्वरुप तेजी से बदल रहा है। भागीरथी नदी पर 11 नए बड़े बाँध निर्माणाधीन हैं या प्रस्तावित हैं, जबकि स्वच्छंद बहने वाली अलकनंदा पर भी 26 नए बाँध निर्माणाधीन हैं या फिर प्रस्तावित हैं। इन बांधों से निश्चित तौर पर नदियों नदियों में पानी के बहाव के साथ ही गंगा में सेडीमेंट की मात्रा भी प्रभावित होगी।

नदियाँ एक थर्मामीटर की तरह हैं जो पृथ्वी की सतह की स्थिति से अवगत कराती हैं। मनुष्य जो भी गतिविधि पृथ्वी की सतह पर करता है उसका संवेदनशील सूचक नदियाँ हैं। नदियाँ कृषि, उद्योग, मनोरंजन, पर्यटन और यातायात का आधार हैं, फिर भी सरकारें और नागरिक इनकी लगातार उपेक्षा करते जा रहे हैं।

Next Story

विविध