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पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन की माला जपती भारत सरकार, मगर नियंत्रित करने के उपायों में फिसड्डी

Janjwar Desk
30 July 2021 11:04 AM IST
जलवायु परिवर्तन की माला जपती भारत सरकार, मगर नियंत्रित करने के उपायों में फिसड्डी
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जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाओं में हर साल सैकड़ों लोग गंवाते हैं जान (प्रतीकात्मक फोटो)

जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभाव से चरम प्राकृतिक आपदाएं साल-दर-साल बढ़ रही हैं और भारत ऐसे देशों में शीर्ष पर है जहां सबसे अधिक असर होगा...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। इस वर्ष के पहले सात महीनों में ही देश ने दो चक्रवात, एक जानलेवा हिमस्खलन, चरम गर्मी, भयानक बाढ़, अनेक भूस्खलन की घटनाएं, बादलों का फटना और आकाशीय बिजली गिरने से मौतें देख ली हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक पिछले अनेक वर्षों से चेतावनी दे रहे है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभाव से चरम प्राकृतिक आपदाएं साल-दर-साल बढ़ रही हैं और भारत ऐसे देशों में शीर्ष पर है जहां सबसे अधिक असर होगा। पर हमारी सरकार जलवायु परिवर्तन की माला तो बहुत जपती है, पर इसे नियंत्रित करने के उपायों में फिसड्डी है।

हमारे देश की तुलना में इस क्षेत्र में बेहतर काम एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अनेक छोटे देश कर रहे हैं। हमारी सरकार के पास जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के उपाय हैं – अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना और सौर ऊर्जा में कहीं न दिखने वाली उपलब्धियों का डंका पीटना। सौर ऊर्जा के नशे में चूर सरकार कोयले के उपयोग को लगातार बढ़ावा देती जा रही है।

हमारा देश इस समय भयानक बाढ़, बादलों के फटने, चट्टानों के दरकने और भूस्खलन की चपेट में है। इसी दौरान आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में 80 से अधिक लोगों के साथ ही असम में लगभग 20 हाथियों की मौत हो चुकी है। देश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही बिजली गिरने की घटनाओं में 35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। जून के अंत से जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरा उत्तर भारत और मध्य भारत अत्यधिक गर्मी से घिरा था और तापमान के नए रिकॉर्ड बन रहे थे।

इस दौरान दिल्ली में पिछले 9 वर्षों का रिकॉर्ड ध्वस्त हो गया और अनेक जगहों पर तापमान औसत तापमान से 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुँच गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 के बाद से देश में अत्यधिक गर्मी के कारण 6500 से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु हो चुकी है, इसमें से अकेले वर्ष 2015 के दौरान 2500 से अधिक लोगों की मृत्यु दर्ज की गयी थी।

दिल्ली समेत उत्तर भारत में अत्यधिक गर्मी का कारण मानसून का देर से पहुँचना बताया गया था। इस वर्ष दिल्ली में मानसून की देरी वर्ष 2006 के बाद सबसे अधिक थी। पिछले 50 वर्षों (1971 से 2019) के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश में कुल 141308 मृत्यु दर्ज की गयी है, जिसका 12 प्रतिशत यानि 17362 मौतें, अत्यधिक गर्मी के कारण हुईं। जनवरी 2020 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने लोकसभा को बताया था कि साल-दर-साल गर्मी की तीव्रता बढ़ती जा रही है और इससे प्रभावित होने वाली जनसंख्या भी बढ़ रही है। डॉ हर्षवर्धन ने इसका बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि को बताया था, यानि सरकार को यह खबर तो है कि जलवायु परिवर्तन से देश में चरम प्राकृतिक आपदाएं बढ़ती जा रही हैं।

इससे पहले मई के महीने में देश के पश्चिमी सागर तट पर तौकते और पूर्वी क्षेत्र में यास चक्रवात ने अपना रौद्र रूप दिखाया था। दोनों चक्रवातों की तीव्रता मौसम वैज्ञानिकों के अनुमान से अधिक थी। तौकते के कारण लगभग 155 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और इसे पिछले कुछ दशकों के दौरान आये सबसे तीव्र चक्रवात कहा गया। तैयारियों का आलम यह था कि मुंबई के सागर तट पर आयल एंड नेचुरल गैस के तेल कुँए में काम कर रहे श्रमिकों को सचेत नहीं किया गया और सभी श्रमिक एक शिप पर फंसे रहे। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तबाही मचाने वाले यास चक्रवात के कारण लगभग 15 लाख लोगों को अपने घर से दूर जाना पड़ा और 10 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी।

साल के शुरू में ही उत्तराखंड में ऋषिगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में ग्लेशियर टूट कर गिरा था, जिसके असर से दो हाइड्रोपावर प्लांट बह गए और काम कर रहे श्रमिक बह गए, जिसमें से अधिकतर का कुछ पता नहीं चला। 7 फरवरी को सुबह 10 बजे के आसपास उत्तराखंड के चमोली जिले में ऋषिगंगा नदी में अचानक चट्टानों और पानी का सैलाब आया, दो पनबिजली परियोजनाएं ध्वस्त हो गईं और इनमें काम करने वाले 200 से अधिक मजदूर लापता हो गए, या सुरंगों में फंस गए।

वैज्ञानिकों के अनुसार 7 फरवरी को लगभग सूर्योदय के समय समुद्रतल से लगभग 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हिमालय की रोंती चोटी के पास से ग्लेशियर और चट्टानों का बहुत बड़ा हिस्सा टूटकर लगभग 3.7 किलोमीटर नीचे गिरा, जिससे ऋषिगंगा नदी में चट्टानों और पानी का सैलाब आ गया। गिरने वाले चट्टानों और ग्लेशियर के हिस्से का आयतन लगभग 2.7 करोड़ घनमीटर था और वजन लगभग 6 करोड़ टन था। टूटकर नीचे गिरे ग्लेशियर के आकार का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसकी लम्बाई फुटबाल के 15 मैदानों की सम्मिलित लम्बाई से अधिक और चौड़ाई 5 फुटबॉल मैदानों से अधिक थी।

बीसवीं सदी के आरम्भ से वर्ष 2018 के बीच देश का औसत तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, और सरकारी अनुमानों के अनुसार वर्ष 2100 तक यह वृद्धि 4.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जायेगी। पर क्या हमारा देश और सरकार इसके लिए तैयार है?

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