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पर्यावरण

प्रकृति और पर्यावरण के लिए विनाशकारी बड़े बांध नदियों की धारा और बहाव बदलकर पानी के जीवों को भी पहुंचाते हैं नुकसान

Janjwar Desk
16 Jan 2023 7:54 AM GMT
प्रकृति और पर्यावरण के लिए विनाशकारी बड़े बांध नदियों की धारा और बहाव बदलकर पानी के जीवों को भी पहुंचाते हैं नुकसान
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file photo

यूरोप के 6651 बड़े बांधों और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के 10358 बड़े बांधों में वर्ष 2050 तक गाद या सेडीमेंट की औसत मात्रा 28 प्रतिशत रहने का अनुमान है, अफ्रीका के 2349 बड़े बांधों में वर्ष 2050 तक गाद की मात्रा 24 प्रतिशत तक रहेगी...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Sediments are robbing the water storage capacity of large dams globally. एक नए अध्ययन के अनुसार सेडीमेंट्स या गाद के ज़मने या भरने के कारण दुनियाभर के बड़े बांधों की जल-भंडारण की क्षमता तेजी से कम हो रही है, और यह भविष्य में वैश्विक आबादी के लिए पानी की कमी के संकेत हैं। यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट फॉर वाटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ के वैज्ञानिकों ने दुनिया के 150 देशों में स्थित 50000 से अधिक बड़े बांधों का अध्ययन कर बताया है कि इन बांधों द्वारा जल-भंडारण की सम्मिलित क्षमता में गाद के जमा होने के कारण 1.65 ख़रब घनमीटर पानी की कमी आ गयी है।

यह मात्रा वैसे तो मामूली लगती है, पर इतना पानी भारत, चीन, इंडोनेशिया, फ्रांस और कनाडा के सम्मिलित वार्षिक उपयोग की मात्रा के बराबर है। इस अध्ययन को सस्टेनेबेलिटी नामक जर्नल के जनवरी 2023 अंक में प्रकाशित किया गया है। 15 मीटर से ऊँचें बांधों को बड़े बाँध कहा जाता है, इसकी दूसरी परिभाषा के अनुसार 5 मीटर से ऊँचे बाँध जिनके जल संग्रहण क्षमता 30 लाख घनमीटर से अधिक है, भी इसी श्रेणी में आते हैं।

इंस्टीट्यूट फॉर वाटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ के निदेशक व्लादिमीर स्मख्तीं के अनुसार पूरी दुनिया में पनबिजली, बाढ़ नियंत्रण, सिचाई और आबादी को जल आपूर्ति बड़े बांधों पर ही टिकी हैं, और इनके क्षमता कम होना निश्चित तौर पर भविष्य में बड़े खतरे की ओर इशारा करते हैं। इस समस्या का शीघ्र ही कोई समाधान खोजना होगा। नदियों जैसी प्राकृतिक धाराओं के साथ गाद या सेडीमेंट हमेशा से नीचे के क्षेत्रों में पहुंचाते रहे हैं, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है पर जब इन धाराओं पर बड़े बाँध खड़े कर दिए जाते हैं तब सेडीमेंट बाँध के साथ बने रिजर्वायर में ही रुक जाते हैं, आगे नहीं जा पाते। इससे रिजर्वायर की क्षमता कम होने लगती है।

यह समस्या जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार पहले से अधिक विकराल होती जा रही है, क्योंकि अब अधिकतर क्षेत्रों में बारिश सामान्य नहीं होती बल्कि थोड़े समय में ही अत्यधिक भारी बारिश आती है। भारी बारिश के बाद फ्लैश फ्लूड्स, यानि आकस्मिक बाढ़ आती है, जिसके साथ पानी के साथ बहाने वाले गाद, रेत, मिटटी की मात्रा बढ़ जाती है, और यह रिजर्वायर में भरता जाता है। दूसरी तरफ बाँध से पहले नदी के पास लगने वाले दूसरे बड़ी परियोजनाओं के बाद भी पानी में गाद की मात्रा बढ़ जाती है। इस अध्ययन के लिए 150 देशों में स्थित 50000 बड़े बांधों का अध्ययन किया गया है।

इन बांधों की जल भंडारण क्षमता वर्त्तमान में ही औसतन 16 प्रतिशत तक कम हो चुकी है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह क्षमता 26 प्रतिशत तक कम हो चुकी होगी, पर बांधों में गाद भरने की दर अलग-अलग है। बड़े बांधों के साथ केवल एक यही समस्या नहीं है – अधिकतर बड़े बाँध 1930 से 1970 के बीच बनाए गए थे, और इनकी औसत उम्र 50 से 100 वर्ष थी। यानी अधिकतर बड़े बाँध अपनी उम्र लांघ चुके हैं और जाहिर है अब खतरनाक बन चुके हैं।

इन 50000 बड़े बांधों में से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 28045 बाँध है, जिनकी क्षमता वर्त्तमान में औसतन 13 प्रतिशत तक कम हो चुकी है और वर्ष 2050 तक अनुमान है क्षमता 23 प्रतिशत तक कम हो जायेगी। दूसरी तरफ भारत के बड़े बांधों में गाद भरने का औसत एशिया-प्रशांत क्षेत्र की तुलना में अधिक है। हमारे देश के 3700 बड़े बांधों में वर्तमान में गाद का भराव औसतन 16 प्रतिशत है और वर्ष 2050 तक यह 26 प्रतिशत तक पहुँच जाएगा। एशिया में सबसे खराब स्थिति जापान की है जहां बांधों में वर्तमान में गाद 39 प्रतिशत तक भर चुकी है और वर्ष 2050 तक इसकी मात्रा 50 प्रतिशत से अधिक होगी।

यूरोप के 6651 बड़े बांधों और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के 10358 बड़े बांधों में वर्ष 2050 तक गाद या सेडीमेंट की औसत मात्रा 28 प्रतिशत रहने का अनुमान है। अफ्रीका के 2349 बड़े बांधों में वर्ष 2050 तक गाद की मात्रा 24 प्रतिशत तक रहेगी। यदि देशों के सन्दर्भ में देखें तो सबसे खराब स्थिति में यूनाइटेड किंगडम, पनामा, आयरलैंड, जापान और सेशेल्स के बड़े बाँध है – इन देशों में वर्तमान में ही बड़े बांधों में सेडीमेंट की औसत मात्रा 30 से 35 प्रतिशत तक है। दूसरी तरफ भूटान, कम्बोडिया, इथियोपिया, गिनी और नाइजर के बड़े बांधों में गाद की औसत मात्रा 15 प्रतिशत से भी कम है।

बड़े बाँध अपने आप में प्रकृति और पर्यावरण का विनाश करते हैं, नदियों की धारा और बहाव बदलते हैं और जलीय जन्तुवों को प्रभावित करते हैं। अब पूरी दुनिया में बड़े बांधों से होने वाले विनाश की व्यापक चर्चा की जा रही है और जागरूक देश बड़े बांधों से दूर हो चुके हैं, पर भारत, चीन और कुछ अन्य विकासशील देश नए बड़े बाँध स्थापित करते जा रहे हैं – यह भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा है।

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