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पर्यावरण

15 सालों में पर्यावरण रिपोर्टिंग करने वाले 44 पत्रकारों की हत्या-750 से ज्यादा पर जानलेवा हमला और हर ​दिन एक पर्यावरण एक्टिविस्ट को उतारा जाता है मौत के घाट

Janjwar Desk
8 July 2024 4:52 PM GMT
15 सालों में पर्यावरण रिपोर्टिंग करने वाले 44 पत्रकारों की हत्या-750 से ज्यादा पर जानलेवा हमला और हर ​दिन एक पर्यावरण एक्टिविस्ट को उतारा जाता है मौत के घाट
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यूनाइटेड किंगडम में वर्ष 2022 में लागू किये गए पब्लिक आर्डर क़ानून के बाद से 120 से अधिक पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जेल में बंद किया गया है। इस क़ानून के तहत अधिकतम 10 वर्षों के कारावास की सजा दी जा सकती है। जर्मनी में 5 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को यह आरोप लगाकर जेल में डाला गया कि वे सभी एक हिंसक संस्था स्थापित कर रहे हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Environmental protection and its reporting has become most dangerous work all over the world. Environmental defenders are called “green Taliban”, “eco-terrorists” and “terrorists” by the governments. हाल में ही कम्बोडिया में पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर किये जा रहे आन्दोलनों से जुड़े 10 कार्यकर्ताओं को 6 से 8 वर्ष तक के कैद की सजा सुनाई गयी है। इन सभी पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर साजिश रचने और राजा को अपमानित करने का आरोप है। इनमें से एक कार्यकर्ता गोंज़ालेज़ डेविडसन को तो 8 वर्षों की कैद के ठीक बाद कम्बोडिया से बाहर जाने का आदेश भी दिया गया है। फ्नोम पेन्ह की अदालत में इन पर्यावरण कार्यकर्ताओं की सुनवाई के दौरान पत्रकारों और दूसरे पर्यावरण कार्यकर्ताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

अप्रैल 2024 में इंडोनेशिया की एक अदालत में एक पर्यावरण कार्यकर्ता को 7 महीने की कारावास और 50 लाख रुपिया (इंडोनेशिया की मुद्रा) के जुर्माना की सजा दी गयी है। डेनियल फ्रिट्स मौरिट्स नामक कार्यकर्ता ने इंडोनेशिया के एक संरक्षित क्षेत्र, करिमुन्जावा नेशनल पार्क, के अन्दर अवैध तरीके से स्थापित किये गए झींगा फार्म के मामले को उजागर किया था। उन पर सामाजिक सौहार्द्य बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है। ऐसी ही खबरें वियतनाम और ईरान जैसे एशियाई देशों से लगातार आती हैं।

भाषणों में मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने वाले यूरोपीय देशों में भी अब पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाना खतरनाक हो गया है। फरवरी 2024 में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार यूनाइटेड किंगडम में वर्ष 2022 में लागू किये गए पब्लिक आर्डर क़ानून के बाद से 120 से अधिक पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जेल में बंद किया गया है। इस क़ानून के तहत अधिकतम 10 वर्षों के कारावास की सजा दी जा सकती है। जर्मनी में 5 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को यह आरोप लगाकर जेल में डाला गया कि वे सभी एक हिंसक संस्था स्थापित कर रहे हैं।

फ्रांस में तो आलम यह है कि पर्यावरण आन्दोलनों को कुचलने के लिए स्थानीय पुलिस का नहीं बल्कि आतंकवादियों से निपटने वाले सेना के विशेष बल का सहारा लिया जाता है। फ्रांस में भी 5 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हिंसा फैलाने का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया गया है। कुछ वर्षों पहले तक पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी रहे नीदरलैंड में भी हाल में ही 7 पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया जा रहा है।

पोलैंड में अनेक पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया गया है। संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण मामलों के अधिकारी, माइकल फोरस्ट ने कई बार यूरोप में पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर होने वाले अत्याचार पर आश्चर्य प्रकट किया है और कहा है, जो देश दुनिया को मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण की नसीहत दे रहे हैं, वही अपने यहाँ पर्यावरण संरक्षण के आवाज उठाने वालों को कुचल रहे हैं और उन्हें आतंकवादी, पर्यावरण-आतंकवादी और ग्रीन तालिबान का नाम दे रहे हैं।

दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया, पेरू, मेक्सिको और ब्राज़ील में भी पर्यावरण संरक्षण की आवाज उठाने वालों पर खतरे बढ़ते जा रहे हैं। दक्षिण अमेरिका में सबसे अधिक पर्यावरण कार्यकर्ताओं की ह्त्या होती है। ग्लोबल विटनेस नामक संस्था वर्ष 2012 से लगातार वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के कार्य से जुड़े लोगों की हत्या का लेखा-जोखा रखती है, और फिर एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। वर्ष 2023 के सितम्बर में 2022 की रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है, जिसके अनुसार दुनिया में वर्ष 2022 में 177 पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी – यानि औसतन हरेक दूसरे दिन एक हत्या।

वर्ष 2012 से 2022 तक 1910 पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी है, इनमें से 1390 हत्याएं जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के बाद की गयी हैं। वर्ष 2022 में पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या के सन्दर्भ में 60 हत्याओं के साथ सबसे खतरनाक देश कोलंबिया रहा है, दूसरे स्थान पर 34 हत्याओं के साथ ब्राज़ील और तीसरे स्थान पर 31 हत्याओं के साथ मेक्सिको है। पिछले वर्ष ऐसी हत्याएं कुल 18 देशों में दर्ज की गईं थीं। पहले तीन स्थानों के बाद क्रम से ये देश हैं – होंडुरस, फिलीपींस, वेनेज़ुएला, पेरू, पैराग्वे, निकारागुआ, इंडोनेशिया, भारत, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, ग्वाटेमाला, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, इक्वेडोर, मलावी और डोमिनिकन रिपब्लिक। पर्यावरण कार्यकर्ताओं की कुल हत्या में से लगभग 90 प्रतिशत मामले अकेले दक्षिण अमेरिका के हैं, और लगभग एक-तिहाई मामले कोलंबिया के हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं में पर्यावरण संरक्षक, उनके परिवार के सदस्य, पत्रकार, वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता सभी शामिल हैं।

पर्यावरण के क्षेत्र में पत्रकारिता भी जानलेवा हो चली है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 15 वर्षों के दौरान पूरी दुनिया में कम से कम 44 पत्रकारों की हत्या पर्यावरण से सम्बंधित रिपोर्टिंग करने के कारण की गयी है। इसमें से 30 हत्याएं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में और 11 हत्याएं दक्षिण अमेरिका में की गयी हैं। “प्रेस एंड प्लेनेट इन डेंजर” नामक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण के क्षेत्र में खोजी पत्रकारिता में संलग्न पत्रकारों में से कम से कम 70 प्रतिशत पर किसी न किसी रूप में हमले किये गए हैं। यह रिपोर्ट दुनिया के 129 देशों में स्थित 900 से अधिक पत्रकारों या मीडिया संस्थानों से बातचीत के बाद तैयार की गयी है। पिछले 15 वर्षों में पर्यावरण पत्रकारों पर 750 से अधिक गंभीर हमले किये गए हैं।

इस वर्ष जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का 29वां अधिवेशन अज़रबैजान में आयोजित किया जा रहा है। अज़रबैजान में पर्यावरण की स्थिति बहुत खराब है और इस देश की अर्थव्यवस्था का आधार पेट्रोलियम उत्पाद हैं। इस देश में पेट्रोलियम उत्पादन लगातार बढाया जा रहा है, जबकि पूरी दुनिया के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ इसे रोकने के लिए पेट्रोलियम उत्पादन को कम करने और बंद करने की वकालत कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव भी लगातार पेट्रोलियम उत्पादन और उपयोग तत्काल प्रभाव से रोकने की अपील करते रहे हैं। अज़रबैजान में 25 से अधिक पत्रकारों को पिछले वर्ष से अबतक जेल में बंद कर दिया गया है, इनमें से अधिकतर पत्रकार सरकार के पर्यावरण नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं। वहां अनेक विदेशी पर्यावरण पत्रकारों को भी प्रतिबंधित किया जा चुका है। हाल में ही अज़रबैजान में आयोजित एनर्जी इंडस्ट्री कांफ्रेंस में ब्रिटेन के 2 और फ्रांस के एक पत्रकार को हवाई अड्डे से ही वापस भेज दिया गया।

पिछले 3 वर्षों से लगातार संयुक्त राष्ट्र, कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के अधिवेशन का आयोजन ऐसे ही देशों में करा रहा है जहां पत्रकारों को कोई आजादी नहीं है, जिन देशों के अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम उत्पादन पर टिकी है और जो देश पर्यावरण संरक्षण या जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए जरा भी गंभीर नहीं हैं। पिछले वर्ष यह आयोजन संयुक्त अरब अमीरात में और इससे पहले ईजिप्ट में आयोजित किया गया था।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं और इससे जुड़े पत्रकारों को खामोश करने का काम हरेक देश में किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण हरेक देश के लिए महज एक दिखावा है, जिसमें सत्ता और पूंजीपति इस क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी ही पीठ थपथपाते हैं, पर जंगल कटते जा रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं, वन्यजीवों का संरक्षित क्षेत्र एक दिखावा बन गया है, वायु प्रदूषण के साथ ही तापमान बृद्धि की दर लगातार बढ़ती जा रही है। अब तो पूरे साल दुनिया का कोई न कोई क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि की चपेट में रहता है। इसके बाद भी दुनियाभर की सरकारें और पूंजीपति पर्यावरण कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को तरह तरह से खामोश करते जा रहे हैं, उनकी हत्या तक करते जा रहे हैं।

पर, अब पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी अपनी बात और अपने उद्देश्य को स्पष्ट शब्दों में हरेक मौके पर बताना शुरू कर दिया है। हाल में ही ब्रिटेन की एक स्थानीय अदालत में 5 पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा किसी सरकारी इमारत के गेट पर प्रदर्शन को लेकर सुनवाई की जा रही थी। इन कार्यकर्ताओं में 58 वर्षीय रॉजर हालम भी थे। सुनवाई के दौरान उन्होंने अदालत में ही मुजरिम के कटघरे में खड़े होकर जलवायु परिवर्तन पर लगभग ढाई घंटे का भाषण दे डाला।

जज, क्रिस्टोफर हेहिर ने उन्हें कई बार रोकने का प्रयास किया, अदालत की अवमानना का भय दिखाया, पर हालम धाराप्रवाह बोलते रहे और जलवायु परिवर्तन के कारण, प्रभाव, किस तरह से यह नरसंहार है और किस तरह से इससे मनुष्य जाति का अंत हो सकता है – सबकुछ बता डाला। यह मुकदमा अभी चल रहा है, इसलिए यह बताना कठिन है कि जज साहब हालम को अवहेलना की क्या सजा देते हैं। आज के दौर में इतना तो स्पष्ट है कि असमय मृत्यु तय है – पर्यावरण संरक्षण में भी असमय मृत्यु है और पर्यावरण विनाश के कारण भी असमय मृत्यु तय है।

सन्दर्भ:

1. https://www.theguardian.com/world/article/2024/jul/02/cambodia-jails-10-environmentalists-in-crushing-blow-to-civil-society

2. https://www.theguardian.com/environment/article/2024/may/02/violent-attacks-against-environmental-journalists-on-the-rise-report-finds

3. https://www.theguardian.com/uk-news/article/2024/jul/02/climate-protest-accused-defies-judge-to-give-hours-long-speech-in-court

4. https://www.theguardian.com/environment/article/2024/jun/12/azerbaijan-accused-of-media-crackdown-before-hosting-cop29

5. https://www.theguardian.com/world/article/2024/jun/28/journalists-refused-entry-to-azerbaijan-energy-conference-ahead-of-cop29

6. https://www.downtoearth.org.in/environment/world-press-freedom-day-2024-44-environmental-journalists-have-been-murdered-in-last-15-years-un-report-finds-95958

7. https://www.globalwitness.org/en/press-releases/almost-2000-land-and-environmental-defenders-killed-between-2012-and-2022-protecting-planet/

8. https://news.mongabay.com/2021/12/in-latin-america-the-law-is-a-tool-to-silence-environmental-defenders/#:~:text=Mongabay%20Latam%20verified%20that%2012 ,defenders%20to%20experience%20social%20stigma.

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