पर्यावरण

कार्बन डाइऑक्साइड का लगातार बढ़ता जा रहा उत्सर्जन, कोविड-19 के नाम पर की गई तालाबंदी का नहीं पड़ा इसपर कोई असर

Janjwar Desk
9 April 2021 7:14 AM GMT
कार्बन डाइऑक्साइड का लगातार बढ़ता जा रहा उत्सर्जन, कोविड-19 के नाम पर की गई तालाबंदी का नहीं पड़ा इसपर कोई असर
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जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि से सम्बंधित सबूत वैज्ञानिक लगातार दुनिया के सामने ला रहे हैं फिर भी हरेक जगह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। वर्ष 2020 औद्योगिक युग के आरम्भ होने के बाद, यानि वर्ष 1750 से 1800 के बाद का सबसे गर्म वर्ष रहा है.....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की चर्चा चल रही है, हरेक देश अपने आप को इसे नियंत्रित करने की अपनी प्रतिबद्धता बता रहा हैं – और इन सबके बीच जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है। हवाई स्थित माऊना लोआ ऑब्जर्वेटरी के अनुसार मार्च 2021 के महीने में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में औसत सांद्रता 417.14 पीपीएम रही, जो पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 50 प्रतिशत से भी अधिक है। इससे पहले वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मासिक औसत सांद्रता का रिकॉर्ड 417.10 पीपीएम था, जो मई 2020 में बना था।

यूनाइटेड किंगडम का मौसम विभाग कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता का पूर्वानुमान भी करता है। इसके आकलन के अनुसार वर्ष 2021 में इसकी सांद्रता सर्वाधिक 419.5 पीपीएम तक पहुँच सकती है। वर्ष 2020 में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की औसत वार्षित सांद्रता 413.94 पीपीएम थी, पर वर्ष 2021 के लिए इसका अनुमान 416.3 पीपीएम है। कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 25 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के लिए लगभग 200 वर्ष लगे जबकि अगले 25 प्रतिशत बढ़ोत्तरी में महज 30 वर्ष ही लगे।

जाहिर है, कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ता जा रहा है और कोविड 19 के नाम पर किये गए वैश्विक तालाबंदी का इसपर कोई असर नहीं पड़ा। संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार यदि इस सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है तो वर्ष 2050 से पहले कार्बन डाइऑक्साइड समेत दूसरी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य करना होगा। यह एक असंभव जैसी स्थिति है, क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ता जा रहा है और निकट भविष्य में इसमें कमी आने की कोई संभावना नहीं है।

जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि से सम्बंधित सबूत वैज्ञानिक लगातार दुनिया के सामने ला रहे हैं फिर भी हरेक जगह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। हाल में ही यूरोपियन यूनियन के कूपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विसेज द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 औद्योगिक युग के आरम्भ होने के बाद, यानि वर्ष 1750 से 1800 के बाद का सबसे गर्म वर्ष रहा हैI दरअसल, वर्ष 2020 और वर्ष 2016 में पृथ्वी का समान औसत तापमान पाया गया, पर वर्ष 2016 में दुनिया एलनीनो की चपेट में थी जो पृथ्वी का तापमान प्राकृतिक तौर पर बढाता है। वर्ष 2020 में ऐसा कुछ नहीं था – इसीलिए समान तापमान के बाद भी वर्ष 2020 को सबसे गर्म वर्ष माना गया है। पिछले 6 वर्ष आधुनिक दौर के 6 सबसे गर्म वर्ष रहे हैं और पिछला दशक सबसे गर्म दशक रहा है। वर्ष 2020 के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.25 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जबकि पेरिस समझौते के तहत इस शताब्दी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया है। पर इस तापमान के नजदीक तो दुनिया 2020 में ही पहुँच गई और यह सिलसिला अभी थमा नहीं है।

वर्ष 1750, यानि पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में मीथेन की सांद्रता वायुमंडल में लगभग ढाई गुना बढ़ चुकी है, और यह गैस कुल तापमान बढ़ोत्तरी में से 17 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। नाइट्रस ऑक्साइड भी एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है और इसकी सांद्रता वायुमंडल में 23 प्रतिशत बढ़ चुकी है। जाहिर है कि सभी ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता वायुमंडल में निर्बाध गति से बढ़ती जा रही है और इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

अमेरिका के मेटेरियोलोजी सोसाइटी के बुलेटिन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनिया में तापमान का जब से रिकॉर्ड रखा जा रहा है, उसके बाद से पिछला दशक (2010-2019) सबसे गर्म रहा है। वर्ष 1980 के बाद से आने वाला हरेक दशक पिछले दशक से अधिक गर्म रहा है। वर्ष 1880 के बाद से हरेक अगला दशक पिछले दशक की तुलना में 0.07 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा है, पर पिछले दशक में यह बृद्धि 0.39 डिग्री रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि समय के साथ-साथ तापमान बढ़ने की दर भी बढ़ती जा रही है। इस शोधपत्र को दुनिया के 60 देशों के 520 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।

वर्ष 2014 से वर्ष 2020 के बीच पृथ्वी का औसत तापमान हमारे इतिहास का सबसे गर्म दौर घोषित किया जा चुका है। इस दौरान अमेरिका, यूरोप और भारत में तापमान के सभी पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर सदियों से जमी बर्फ तेजी से पिघलती रही, बड़ी बाढ़ों और चक्रवातों की घटनाएँ बढ़ गयीं, प्रजातियों के विलुप्तीकरण की दर किसी भी दौर से अधिक हो गई। इस दौर में जंगलों और झाड़ियों में आग लगाने की दर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ग्रीस और फिलीपींस में अत्यधिक रहीं।

पहली बार वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 410 पीपीएम के पार वर्ष 2015 में पहुँची थी। इससे पहले ऐसी स्थिति 30 से 50 लाख वर्ष पहले आई थी, तब औसत तापमान 2 से 3 डिग्री अधिक था और सागर तल 10 से 20 मीटर अधिक था। पर, इस दौर में जो हो रहा है वह पहले से अधिक विनाशकारी होगा क्योंकि 30 से 50 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर लगभग 8 अरब लोग नहीं थे। औद्योगिक युग के पहले यानि 1750 की तुलना में इस दौर में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता 50 प्रतिशत कम थी।

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