जल्दी ही जीव-जंतुओं की 20 लाख प्रजातियाँ हो जायेंगी विलुप्त, अध्यययन में हुआ बड़ा खुलासा
जलवायु परिवर्तन नहीं किसी आपातकाल से कम, दुनिया के लिए भारी खतरा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A new study concludes that about 2 million species of plants and animals are threatened and progressing towards extinction. वनस्पति और जंतुओं की प्रजातियों के संकटग्रस्त होने और विलुप्तीकरण की तरफ अग्रसर होने से सम्बंधित एक नए अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 20 लाख प्रजातियाँ विलुप्तीकरण की ओर अग्रसर हैं। इन्टरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (आईयूसीएन) के आकलन के अनुसार दुनिया में प्रजातियों की कुल संख्या 82 लाख है। इस अध्ययन को यूरोपीय देश लक्समबर्ग स्थित नेशनल नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के वैज्ञानिक अलेक्स होच्किर्च (Alex Hochkirch) की अगुवाई में वैज्ञानिकों के एक दल ने किया है, और इसे हाल में ही प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन के निष्कर्ष चौकाने वाले और महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इससे पहले के आकलनों में विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ती प्रजातियों की संख्या 10 लाख बताई गयी थी। इससे पहले इस तरह का सबसे विस्तृत आकलन संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंटल साइंस पालिसी प्लेटफार्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज द्वारा वर्ष 2019 में प्रकाशित किया गया था, जिसमें 10 लाख प्रजातियों के खतरे में होने की बात कही गयी थी।
नए अध्ययन में कहा गया है कि पिछले वर्षों के दौरान वनस्पतियों और रीढ़धारी जंतुओं के प्रजातियों पर मंडराते खतरों पर बहुत सारे अध्ययन किये गए हैं, पर कीटों पर ऐसे अध्ययन कम ही किये गए हैं। एक बड़ा वर्ग होने के कारण कीटों के प्रजातियों के विलुप्तीकरण की ओर बढ़ने का केवल अनुमान ही किया गया है। वर्ष 2019 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया था कि कीटों की महज 10 प्रतिशत प्रजातियाँ ही संकटग्रस्त हैं। जंतु जगत में कीटों का वर्ग सबसे बड़ा है। इस समूह की संख्या का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनिया में जंतुओं की कुल प्रजातियों में से 97 प्रतिशत प्रजातियाँ अरीढ़धारी जंतुओं की हैं और इन अरीढ़धारी जंतुओं की कुल प्रजातियों में से 90 प्रतिशत प्रजातियाँ कीटों की हैं।
कीट भी उसी दर से संकटग्रस्त होते जा रहे हैं, जिस दर से दूसरे सभी समूह की प्रजातियाँ विलुप्तीकरण की ओर अग्रसर हो रही हैं। कीटों के बिना धरती पर मनुष्यों का जीवन लगभग असंभव है क्योंकि इनका योगदान फसलों के परागण, मृदा में पोषक पदार्थों के चक्रण और कचरे के विखंडन में उल्लेखनीय है। इस आकलन के लिए यूरोप में विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रही प्रजातियों का विस्तृत अध्ययन किया गया। यूरोप में अरीढ़धारी जंतुओं, जिसमें कीट भी सम्मिलित हैं, की 24 प्रतिशत प्रजातियाँ, वनस्पतियों की 27 प्रतिशत और रीढधारी जंतुओं की 18 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रही हैं।
इसके बाद इस आकलन का विस्तार पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रजातियों के सन्दर्भ में किया गया। इस अध्ययन के अनुसार रीढधारी जंतुओं और वनस्पतियों की विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ती प्रजातियों की संख्या लगभग उतनी ही है, जितनी संयुक्त राष्ट के 2019 के आकलन में बताई गयी थी, पर अरीढ़धारी जंतुओं के प्रजातियों की संख्या में, विशेष तौर पर कीटों की संख्या में बहुत अंतर था। यह अंतर कितना गहरा था, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ती प्रजातियों की संख्या 10 लाख से बढ़कर 20 लाख तक पहुँच गयी।
इस अध्ययन के प्रकाशित होने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंटल साइंस पालिसी प्लेटफार्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज की एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी ऐनी लारिगंदेरी (Anne Lariganderie) पत्रकारों ने विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ती प्रजातियों की संख्या में व्यापक अंतर पर प्रश्न पूछा तब उनका जवाब था कि अभी इस विषय पर कुछ नहीं कहा जा सकता, पर संयुक्त राष्ट्र के 10 लाख प्रजातियों के विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ने की रिपोर्ट भी इस सन्दर्भ में भयानक स्थिति की तरफ इशारा करती है, और इसे दुनिया को गंभीरता से लेने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र इस सन्दर्भ में अगली रिपोर्ट वर्ष 2028 में प्रकाशित करेगा।
प्रजातियों पर संकट का सबसे प्रमुख कारण कृषि क्षेत्र का विस्तार, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, प्रदूषण और विकास परियोजनाएं हैं। अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार प्रजातियों का विलुप्तीकरण आज मानव जाति के लिए जलवायु परिवर्तन से भी बढ़ा खतरा बन चुका है. पृथ्वी पर सभी प्रजातियाँ एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं, इसलिए प्रजातियों का विलुप्तीकरण पृथ्वी पर मानव अस्तित्व के लिए भी खतरा है।