Begin typing your search above and press return to search.
गवर्नेंस

EWS Reservation : सवर्णों को दिया गया ईडब्ल्यूएस आरक्षण कितना संवैधानिक, 3 सवालों के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Janjwar Desk
20 Sept 2022 5:13 PM IST
EWS Reservation : सवर्णों को दिया गया ईडब्ल्यूएस आरक्षण कितना संवैधानिक, 3 सवालों के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
x

EWS Reservation : सवर्णों को दिया गया ईडब्ल्यूएस आरक्षण कितना संवैधानिक, 3 सवालों के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

EWS Reservation : शिक्षा और नौकरी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन मिलना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर 13 सितंबर 14 सितंबर और 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ...

EWS Reservation : शिक्षा और नौकरी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन मिलना चाहिए या नहीं, यह इन दिनों देश में बहस का हॉट टॉपिक बना हुआ है। 13 सितंबर 14 सितंबर और 15 सितंबर को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई इस दौरान संविधान, जाति, सामाजिक न्याय जैसे शब्दों का भी जिक्र हुआ।

103वां संविधान संशोधन एकमात्र ऐसा संशोधन है, जिसे कैबिनेट की स्वीकृति के तुरंत बाद आनन-फानन में संसद मे पारित कर दिया गया। इसे पारित किए जाने की स्पीड का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि यह विधेयक लोकसभा (Loksabha) में 8 जनवरी 2019 को पेश किया गया और लोकसभा ने इसे 9 जनवरी को पारित कर दिया। अगले ही दिन 10 जनवरी को इसे राज्यसभा (Rajyasabha) में पेश किया गया। राज्यसभा में सरकार ने इस विधेयक से संबंधित सभी संशोधनों को और इस विधयेक को सेलेक्ट कमिटी को सौंपने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया और 10 जनवरी 2019 को ही इसे पारित कर दिया।

बता दें कि विधेयक के पारित होने के दो दिनों के भीतर ही 12 जनवरी को महामहिम राष्ट्रपति ने इसे स्वीकृति दे दी। 12 जनवरी को ही यह भारत के राजपत्र में अधिसूचित कर दिया गया। इस कानून को 14 जनवरी 2019 को लागू कर दिया गया। इस तरह 103वें संविधान संशोधन कानून को बनाने और उसे लागू करने में जिस स्पीड का प्रदर्शन हुआ, वह दुनिया के विधायी इतिहास में वाकई दुर्लभ है।

आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों को आरक्षण

संविधान के 103 वें संशोधन के जरिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन कर उसमें खंड 15(6) और 16(6) जोड़कर आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का इंतजाम किया गया। यह संविधान संशोधन अनुच्छेद 15 के खंड 15(4) और 15(5) में वर्णित अनुसूचित जातियों, जनजातियों और सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़े या ओबीसी वर्गों को बाहर रखते हुए खंड 15(6) के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों के लिए शिक्षण संस्थानों में (सिवाय अल्पसंख्यक संस्थानों के) प्रवेश हेतु राज्य को विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।

जानकारी के लिए आपको बता दें कि इस संविधान संशोधन के तहत खंड 16(4) और 16(5) में वर्णित अनुसूचित जातियों, जनजातियों और सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़े या ओबीसी वर्गों को बाहर रखते (एक्सक्लूड़ करते) हुए, अनुच्छेद 16 का खंड 16(6) देश के आर्थिक रूप से पिछड़े सभी वर्गों को नियुक्तियों या पदों मे 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करता है, जो कि मौजूदा आरक्षण के 50% के अधिकतम प्रावधानों के अतिरिक्त है। मोटे तौर पर संविधान का 103वां संशोधन केवल और केवल गैर-अनुसूचित जातियों/जनजातियों/ओबीसी वर्गों के लिए आर्थिक आधार पर शिक्षा और सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान करता है और इसमें गरीब अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ओबीसी जातियों को शामिल करने से इंकार करता है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की पहचान

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की बात पहले से ही उठाई जाती रही है। इसी मांग को लेकर यूपीए सरकार ने 2006 में रिटायर्ड मेजर जनरल एस आर सिन्हो के नेतृत्व में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आयोग (कमिशन फॉर इकोनोमिकली बैक्वर्ड क्लाससेस) का पुनर्गठन किया। रिटायर्ड मेजर जनरल एस आर सिन्हो आयोग ने गरीबी रेखा से नीचे रहे वाले और सामान्य वर्ग के उन लोगों को, जिनकी समस्त साधनों से होनी वाली कुल आय आयकर की सीमा से कम थी, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के रूप में चिन्हित किया।

वहीं सरकार का दावा है कि उसने इन्हीं वर्गों के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान संविधान के 103वें संशोधन के तहत किया है, लेकिन सरकार ने इस कानून के तहत जारी अधिसूचना में "उन व्यक्तियों को छोडकर जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी जातियों को प्रदत्त आरक्षण के दायरे में आते हैं, और सभी साधनों से जिनके परिवार की कुल आय 8 लाख रुपए सालाना से कम है, तथा जिनके पास कृषि हेतु पांच एकड़ या अधिक कृषि भूमि, 1000 वर्गफुट का मकान, या अधिसूचित निगम मे 100 वर्ग गज या गैर-अधिसूचित निगम में 200 वर्गगज प्लॉट का प्लॉट है", को आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) और इस संविधान संशोधन के अंतर्गत आरक्षण देने के योग्य माना गया।

103वें संविधान संशोधन को मिली न्यायिक चुनौती

आनन-फानन में लाये गए 103वें संविधान संशोधन को न्यायिक चुनौती मिलना स्वाभाविक ही था। इस संशोधन के जरिए सरकार ने अनुच्छेद 15 और 16 में एक अतिरिक्त खंड जोड़कर इस अनुछेद के स्वरूप में परिवर्तन कर दिया है। बता दें कि राज्य द्वारा स्वीकृत पिछड़ेपन के सामाजिक और शैक्षिक आधार में अब 'आर्थिक पिछड़ेपन' को भी जोड़ दिया गया है। इस मामले में यह बात ध्यान देने की है कि सरकार ने अपने इस कानूनन फैसले के बारे में सामान्य वर्ग की गरीबी से संबन्धित कोई तर्कसंगत आकलन, पुख्ता जानकारी या आंकड़ें पेश नहीं किए हैं।

हालांकि सरकार के पास 2011 में कराई गई सामाजिक आर्थिक जातिवार जनगणना (सोशल, इकनॉमिक कास्ट सेन्सस) के आंकड़े मौजूद हैं। इस जनगणना में सरकार ने देश कि प्रत्येक जाति की सामाजिक आर्थिक स्थिति के आंकड़े एकत्रित किए थे। सामान्य वर्ग की गरीबी के पुख्ता आंकड़ों के ना रखे जाने से इसे शिक्षा, राज्य और निजी क्षेत्र की सेवाओं और कारोबार पर प्रभुत्व जमाये सामान्य वर्ग, खास तौर पर सवर्ण जातियों, के तुष्टीकरण के तौर पर देखा जा रहा है।

आरक्षण की सीमा की गई 60 प्रतिशत

बता दें कि 103वें संविधान संशोधन के जरिये सरकार ने आरक्षण की अधिकतम सीमा को कानूनन बढ़ाकर 60% कर दिया है। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 60% करने से आरक्षण संबंधी विधायिका, कार्यपालिका और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न फैसलों में अनौपचारिक सर्वानुमती भंग हो गई है। इन्दिरा साहनी एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने भी आरक्षण को 50% तक सीमित रखने का फैसला दिया था। देश के विभिन्न प्रदेशों में अपनी आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग करती आ रहीं ओबीसी जातियों को इसी आधार पर उनकी 52% आबादी के विपरीत 27% से अधिक आरक्षण देने से इंकार किया जाता रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में हो रही है सुनवाई

तमाम पेचीदगियों के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में पांच सदस्यीय पीठ ने तीन सवालों पर विचार करना शुरू कर दिया है, जिसे केन्द्रीय सरकार के महाधिवक्ता ने सुनवाई के लिए सरकार की ओर से चिन्हित किया है।

ढूंढे जा रहे हैं इन तीन सवालों के जवाब

  • क्या आर्थिक मानदंडों के आधार पर राज्य को आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर, 103वें संविधान संशोधन संविधान के मूल ढांचे को भंग करता है?
  • क्या निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में राज्य को प्रवेश संबंधी विशेष प्रावधान करने की अनुमति देकर 103वें संविधान संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है?
  • क्या 'सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़े वर्गों/ओबीसी/अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण के दायरे से बाहर रखकर' 103वां संविधान संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है?

सुनवाई शुरू करने में ढाई साल से अधिक समय

आम तौर पर देखा गया है कि एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय तुरंत हस्तक्षेप करता रहा है लेकिन ईडबल्यूएस के मामले में सर्वोच्च न्यायलाय ने सुनवाई शुरू करने में ढाई साल से अधिक लिया है। हम उम्मीद करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के मौलिक तत्वों की रक्षा करेगा और देश, सरकार और समाज को एक सर्वमान्य न्यायपूर्ण हल देगा।

किन संगठनों को है आपत्ति

जानकारी के लिए आपको बता दें कि गैर सरकारी संगठन- जनहित अभियान और यूथ फॉर इक्वलिटी ने सुप्रीम कोर्ट में EWS रिजर्वेशन के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में संविधान (103 वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि आर्थिक वर्गीकरण आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। इसके अलावा पिछड़ा समुदाय के अधिकारों के लिए सोसायटी (एसएफआरबीसी) के सदस्य 103वें संविधान संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

Next Story

विविध