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चीन के खिलाफ विदेश नीति में हैं बड़ी खामियां, जानें कैसे घिर रहा है भारत

Janjwar Desk
16 Sep 2020 8:54 AM GMT
चीन के खिलाफ विदेश नीति में हैं बड़ी खामियां, जानें कैसे घिर रहा है भारत
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जानिए पूर्वी लद्दाख में चीनी हिमाकत का कैसे मुकाबला कर रहा है भारत

नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ को लेकर भारत के कड़े रुख के बाद भी भारत की विदेशी नीति में कई बड़ी खामियां हैं। इसी के चलते चीन लगातार भारत को घेरने का चक्रव्यूह रच रहा है और हम गलतियां किए जा रहे हैं।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के मंगलवार 15 सितंबर को संसद में दिए गए बयान से यह साफ जाहिर होता है कि इस साल अप्रैल के बाद अपने पड़ोसी को लेकर भारत का रुख बदला है।

हालांकि इसे एशिया महाद्वीप में तेजी से बदलती भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए भारत की विदेश नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में नहीं देखा जा सकता। असल में रक्षा मंत्री के बयान में इस सवाल का जवाब मिला ही नहीं कि मई की शुरुआत में चीनी सेना एलएसी को पार कर भारत के 40 किलोमीटर भीतर तक कैसे घुस आई? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान कि न तो सीमा में कोई घुसा और न ही घुसकर बैठा है, का औचित्य भी अभी तक समझ नहीं आया है।

रक्षा मंत्री ने सदन को बताया कि चीन ने भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा जमा रखा है और पाकिस्तान ने भारत की 5180 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को दे रखी है। राजनाथ सिंह का यह कहना कि पूरा देश अपने सैनिकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार है और हम किसी भी परिस्थिति का सामना करने को तैयार हैं, सरकार के राष्ट्रवादी एजेंडा को दोहराने जैसा है।

पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की यह है वजह

2014 में सत्ता में आने के बाद से केंद्र की एनडीए सरकार ने चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूती देने की नीति अपनाई, लेकिन दूसरी पारी में पिछले साल जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को विशेष दर्जा देने का कदम उठाया। पूर्वी लद्दाख में चीन की घुसपैठ को एक अकेली घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता। खासतौर पर भारत को लेकर चीन की नीति विदेशी निवेश, आर्थिक दबदबा कायम करने और हमारे पड़ोसी देशों को अपने खेमे में लाने का रहा है। श्रीलंका और बांग्लादेश के मामले को उदाहरण के बतौर देखा जाना चाहिए।


लेकिन सबसे अहम है चीन-पाकिस्तान गलियारा, जिस पर चीन ने 60 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। यह गलियारा उत्तर में भारत को घेरता है। चीन ने गिलगित-बाल्टिस्तान में अरबों डॉलर का रणनीतिक निवेश किया है। साफ है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारत की किसी भी कार्रवाई का मतलब चीन से जंग मोल लेना भी है। असल में पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ सीधे चीन की इस गलियारे के माध्यम से अरब सागर तक पहुंच को सुरक्षित बनाने से जुड़ी है। भारत की दौलतबेग ओल्डी-शायलॉक-डार्बुक सड़क इसमें आड़े आती है।

अक्साई चिन जहां चीन को आंतरिक संपर्क उपलब्ध कराता है, वहीं पाकिस्तान के साथ बना गलियारा उसे पश्चिम में बाहरी पहुंच मुहैया कराता है। चीन ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ कर भारत पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की है और इसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है।

भारत ने उठाए ये कदम

उत्तर में चीन और पाकिस्तान की घेराबंदी को तोड़ने के लिए अफगानिस्तान एक ट्रंप कार्ड की तरह है और भारत ने आर्थिक-राजनीतिक और धार्मिक तीनों तरीकों से इसका इस्तेमाल करने की कोशिश की है। हालांकि, अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर दोहा में हुई शांति वाताओं में भारत की कमजोर विदेश नीति की साफ झलक मिली। तालिबान को लेकर भारत इस बातचीत से अलग-थलग पड़ गया। हालांकि, मंगलवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सभी पक्षों के साथ बातचीत की इच्छा जताकर नुकसान की भरपाई की कोशिश तो की, लेकिन पाकिस्तान और तालिबान का मजबूत गठजोड़ तोड़ पाना भारत के लिए मुश्किल लगता है।

चीन को घेरने के लिए बौद्ध जनसंख्या वाले लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना और म्यांमार को कूटनीतिक और रणनीतिक मदद पहुंचाना भी एक रास्ता है। भारत ने रोहिंग्या के मसले पर चुप्पी साधकर और हाल में तिब्बती शरणार्थियों की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की पूर्वी लद्दाख में तैनाती कर इसे रास्ते का भी इस्तेमाल किया है। भारत को लगता है कि इससे चीन में बौद्धों की नाराजगी बढ़ेगी और तिब्बत में चीन कमजोर होगा। हालांकि, ये नीति बहुत ज्यादा कारगर नहीं है।

नेपाल के मामले में भारत की कमजोर विदेश नीति बुरी तरह से उजागर हुई है। वहीं सिटिजंसशिप अमेंडमेंट एक्ट और एनआरसी ने बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्ते को खराब किया है। बांग्लादेश में सीएए के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए थे। दोनों देशों के साथ खराब संबंधों ने चीन को वहां आर्थिक निवेश बढ़ाने का मौका दिया है।

भारत-अमेरिकी संबंध से रूस नाराज

एनडीए के 2014 में सत्ता संभालने के बाद से भारत अमेरिकी संबंधों में बहुत ज्यादा नजदीकी आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रगाढ़ रिश्ते से रूस की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसका फायदा उठाकर अब रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है। केंद्र सरकार ने चीनी घुसपैठ के बाद रूस के साथ बिगड़ते संबंध को सुधारने की कोशिश शुरू की है। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जून और सितंबर में दो बार रूस हो आए हैं। लेकिन दोनों देशों को बिगड़े रिश्ते सुधारने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है और इसमें भारत को अपनी अमेरिका परस्ती छोड़ने की बड़ी चुनौती है।

समुद्र में चीन को रोकने की अहम चुनौती

चीन का 80 फीसदी कच्चा तेल फिलहाल ओमान से मालदीव होकर जाता है। रास्ते में हिंद महासागर भी पड़ता है, जहां इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच की मलक्का जलसंधि से होकर चीनी टैंकर गुजरते हैं। अगर भारत चीनी जहाजों के इस रास्ते को एक हफ्ते भी रोक ले तो चीन को सात करोड़ डॉलर की चपत लगेगी। चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट इसका हल निकालने के लिए आर्थिक निवेश के माध्यम से इंडोनेशिया, बांग्लादेश, मलेशिया और सूडान को अपने पक्ष में करने की कोशिश है। हालांकि भारत इसका पहले से विरोध करता रहा है, लेकिन हाल के 6 वर्षों में इस विरोध का भारत की विदेश नीति में कोई खास असर दिखाई नहीं दिया है।


जमीन और समुद्र- दो मोर्चों पर है जंग

इस तरह चीन से भारत की जंग उत्तरी मोर्चे की जमीन और दक्षिण में समुद्र पर है। भारतीय नौसेना के लिए अकेले चीन को समुद्र में रोकना इतना आसान नहीं है, जब तक कि बाकी देश भी मिलकर साथ न दें। भारतीय विदेश नीति को अब पिछली सारी गलतियां सुधारते हुए चीन को जमीन और समुद्र में घेरने की रणनीति अपनानी होगी, लेकिन इसके लिए भारत का आंतरिक रूप से एकजुट और मजबूत होना जरूरी है, क्योंकि चीन की नीति हमेशा से यही रही है कि दुश्मन के कमजोर होने पर ही वह हमला करता है।

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