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ग्राउंड रिपोर्ट

Upper Konki Panchayat Jharkhand: आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव में बीमार को खटिया पर ले जाना पड़ता है, बकरी है आमदनी का जरिया

Janjwar Desk
26 Jan 2022 6:55 AM GMT
Upper Konki Panchayat Jharkhand: आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव में बीमार को खटिया पर ले जाना पड़ता है, बकरी है आमदनी का जरिया
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Upper Konki Panchayat Jharkhand: आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव में बीमार को खटिया पर ले जाना पड़ता है, बकरी है आमदनी का जरिया

Upper Konki Panchayat Kanke block Jharkhand Ground Report: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 25 किलोमीटर दूर है कांके प्रखंड। वैसे कांके किसी पहचान का मोहताज नहीं है क्योंकि कांके विधानसभा क्षेत्र के साथ साथ इस प्रखंड के अंतर्गत कई सरकारी गैर—सरकारी संस्थान हैं

विशद कुमार की रिपोर्ट

Upper Konki Panchayat Kanke block Jharkhand Ground Report: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 25 किलोमीटर दूर है कांके प्रखंड। वैसे कांके किसी पहचान का मोहताज नहीं है क्योंकि कांके विधानसभा क्षेत्र के साथ साथ इस प्रखंड के अंतर्गत कई सरकारी गैर—सरकारी संस्थान हैं, जिसमें मुख्य रूप से रांची इन्स्ट्यूट आफ न्यूरो साईकेट्री एंड एलाइड साइंस (रिनपास) Ranchi institute of neuro psychiatry and allied science, रांची इन्स्ट्यूट आफ साईकेट्री Central Institute of Psychiatry (सिआईपी), बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी Birsa Agricultural University, नेशनल यूनिवर्सिटी आफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ National University of study and research in law (nusrl), इंडियन इन्स्ट्यूट आफ मैनेजमेन्ट रांची Indian Institute of Management Ranchi, साईनाथ यूनिवर्सिटी Sainath University, बीआईटी मेसरा Bit mesra, इंडियन इन्स्ट्यूट आफ कोल मैनेजमेन्ट Indian institute of coal management, सीसीएल Ccl, सीएमपीडीआई Cmpdi शामिल हैं।

वहीं कांके प्रखंड के अंतर्गत है ऊपरी कोनकी पंचायत जिसमें है कतरिया बेड़ा गांव। इस गांव दुर्भाग्य यह है कि यहां तक पहुंचने के लिए पुल और सड़क मार्ग का घोर अभाव है। आज़ादी के करीब 74 साल और झारखंड राज्य गठन के 21 साल बाद भी पुल नहीं बनने से बरसात के मौसम में पहाड़ों और जंगलों से घिरे इस गांव का संपर्क राज्य के अन्य हिस्सों से टूट जाता है। वहीं पहाड़ और जंगलों के बीच सालों से जारी यह सफर बयां करने के लिए काफी है कि इस राज्य में विकास के वादों की जमीनी हकीकत क्या है? बताते चलें कि इस पंचायत में पुल नहीं रहने से करीब 15 गांवों में से 6 गांव सबसे अधिक प्रभावित हैं और यह गांव काफी मुश्किलों का सामना कर रहा है।


जब झारखण्ड अलग राज्य का गठन हुआ था तो लगा था यह राज्य देश के बाकी राज्यों के लिए यह मिसाल बन कर उभरेगा। यहां के लोगों को लगा कि यह 'अपना राज्य, अपना विकास' की अवधारणा को एक नयी रोशनी प्रदेश के कोने-कोने में पहुंचाने का काम होगा। लेकिन 21 साल बाद भी आज विकास के दावों से कोसों दूर है। झारखंड की राजधानी रांची के ही सुदूर इलाकों के कई ऐसे गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

बीमार पड़ने पर खटिया पर लेटाकर ले जाना पड़ता है

स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो किसी भी ग्रामीण की तबीयत खराब होने पर यहां तक चिकित्सा सेवा का पहुंचना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि पहाड़ और जंगल के दुर्गम और पथरीले रास्ते से कोई मदद के लिए पहुंचे भी तो उसका सफर इस नदी के पास आकर थम जाता है। इतना ही नहीं इस नदी को पार करने के बाद पहाड़ पर मौजूद गांवों तक पथरीला रास्ता सफर को और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना देता है। स्थिति ऐसी है कि करीब 1500 की आबादी को अपनी हर जरूरत के लिए इस नदी को पार करके ही जाना पड़ता है। वहीं बारिश के दिनों में जब नदी ऊफान पर रहती है, तब कोई भी इसके आसपास से गुजरने का साहस नहीं कर पाता है। गांव में सड़क और पुल नहीं रहने के कारण अक्सर लोगों के बीमार होने पर उन्हें खटिया पर लिटाकर या बाइक एवं अन्य साधनों की मदद से 5 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर जाना होता है। इसके बाद ही वहां से परिवहन कि सुविधा मिल पाती है। ग्रामीण महिलाओं की मानें तो प्रसव के समय तो जिंदगी पूरी तरह से भगवान भरोसे ही रहती है।


ग्रामीणों की आमदनी का जरिया

इस गांव में लोगों की आमदनी की बात करें तो प्रायः लोगों की आर्थिक व्यवस्था केवल कृषि पर निर्भर है। वहीं कुछ लोग बकरी पालन और पशुपालन से अपनी जीविका चलाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कुछ ग्रामीणों की मानें तो बकरी पालन को ये लोग एटीएम की तरह इस्तेमाल करते हैं, जब भी इन्हें पैसों की आवश्यकता होती है ये लोग बाजार जाकर इसे पहले बेचते हैं, इसके बाद ही अपनी आवश्यक जरूरतों को पूरा करते हैं।

राढ़ा और ऊपरी कोनकी पंचायत के बीच पुल निर्माण की बहुप्रतीक्षित मांग वर्षों पुरानी

ग्रामीण बताते हैं की राढ़ा और ऊपरी कोनकी पंचायत के बीच पुल बनाने की बहुप्रतीक्षित मांग उन लोगों की ओर से वर्षों पहले से की जा रही है। जिससे की लोगों का शहर से संपर्क सरलता से हो सके। वहीं दूसरी तरफ गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी गांव की जो तस्वीर देखी थी, आज बुढ़ापे में भी वही नजारा है। कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन गांवों की सूरत ना पहले बदली थी और ना ही आज बदल पाई है।

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