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Ground Report : सजन का पार भारत-पाक बॉर्डर का आखिरी गांव - न इंटरनेट और न अच्छी शिक्षा, बदहाली और जर्जर हालत में जीते ग्रामीण
Ground Report : राजस्थान के बाड़मेर में एक गांव है 'सजन का पार।' यह गांव हिंदुस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर का आखिरी गांव है। इस गांव में ग्रामीण कितनी बदहाली में जीते हैं, इसका सच जनज्वार की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में 12वीं कक्षा तक पढ़ाई होती है, लेकिन पहली कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक 450 बच्चों को पढ़ाने के लिए केवल 2 टीचर ही उपलब्ध हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों के स्टाफ की कमी है। साथ हो इस गांव में नेटवर्क और पानी की भी बड़ी समस्या है।
450 बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में केवल 2 टीचर
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के स्कूल में पहली से 12वीं कक्षा तक पढ़ाई होती है लेकिन केवल 2 टीचर ही मौजूद हैं। पहली से 12वीं कक्षा तक बच्चों को केवल 2 शिक्षक ही पढ़ाते हैं और बच्चों की संख्या 450 के लगभग है, जिसमें 350-400 के लगभग बच्चों की उपस्थिति है। दो टीचर के रहते हुए पहली से 12वीं कक्षा तक पढ़ाई कैसे मुमकिन है। जो दो शिक्षक यहां उपलब्ध भी हैं, उनका सारा समय स्कूल के कागजों का कामकाज करने में गुजर जाता है। बच्चे केवल यहां आते हैं। उनकी हाजिरी लगती है और वह पूरे दिन ऐसे बैठे रहते हैं। फिर दिन में अपने घर वापस लौट जाते हैं।
शिक्षा के लिए गांव में सरकारी स्कूल ही एकमात्र सहारा
स्कूल की शिक्षा व्यवस्था से खुद यहां के शिक्षक भी परेशान हैं। स्कूल में शिक्षकों का स्टाफ भेजने को लेकर सरकार की तरफ से कोई सुनवाई नहीं होती है। शिक्षकों की नियुक्ति के नाम पर केवल आश्वासन मिलता है। भारत सरकार की नीति 'पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया' सजन का पार गांव के लिए 'अनपढ़ रहेगा इंडिया' साबित हो रही है। इस गांव में केवल सरकारी स्कूल का ही आसरा है। यहां कोई भी प्राइवेट स्कूल नहीं है, जहां ग्रामीण अपने बच्चों को भेजकर थोड़ी-बहुत शिक्षा प्राप्त करवा सके। ग्रामिणों ने बताया, यहां पहले 8 शिक्षक थे, अब केवल 2 शिक्षक रह गए हैं। विकास के नाम पर यह गांव विनाश की ओर बढ़ रहा है। यहां कांग्रेस की सरकार है, लेकिन कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है। साथ ही मोदी सरकार की 'डिजिटल इंडिया योजना' के तहत भी इस गांव में कुछ भी डिजिटल नजर नहीं आता है।
गांव में न टावर है और न इंटरनेट
दूसरी बड़ी समस्या जो इस गांव में है, वह है नेटवर्क की। इस गांव में लगभग 550 घरों की बस्ती है, लेकिन नेटवर्क बिल्कुल नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में किसी को फोन लगाने तक के लिए नेटवर्क नहीं है तो ऐसे में इंटरनेट आने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। ग्रामीणों ने बताया कि किसी टीले या फिर ऊंची इमारत पर जाकर फोन को अपने हाथ में पकड़कर रखने पर नेटवर्क आता है, तब जाकर कहीं कॉल पर किसी से बात हो सकती है।
8 किलोमीटर दूर जाकर मिलता है इंटरनेट
यह भारत-पाकिस्तान सीमा का आखिरी गांव है। ऐसे संवेदनशील इलाके में सबसे महत्वपूर्ण चीज, मोबाइल फोन में टावर ही उपलब्ध नहीं है। ऐसे में अगर गांव में कोई इमरजेंसी की समस्या सामने आती है या फिर कोई अपराध या वारदात हो जाती है तो उसकी सूचना किसी को देना हो तो सबसे पहले अपने फोन में नेटवर्क लाने के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ेगी, जिसके बाद नेटवर्क आने पर किसी को सूचना दी जा सकती है। ग्रामीणों ने बताया कि अगर इंटरनेट से संबंधित कोई काम है या फिर कोई वीडियो डाउनलोड करना है तो उन्हें तकरीबन 7 से 8 किलोमीटर दूर जाकर इंटरनेट नसीब होता है, जिसके बाद वहां से वे वीडियो डाउनलोड कर लेते हैं और वक्त गुजारने के लिए अपने घर आकर देखते हैं।
समस्या बताने पर अफसरों से मिलता है आश्वासन
ग्रामीणों ने बताया कि आए दिन यहां अक्सर आते हैं और सिर्फ अपना चक्कर लगा कर चले जाते हैं। ग्रामीणों की समस्या पर ना कोई सुनवाई है और ना ही कोई कार्रवाई है। गांव में आए अफसरों से ग्रामीणों ने बहुत बार टावर लगाने की बात कही है लेकिन अफसरों से जवाब में मिलता है कि हमने आपको मना नहीं किया है, टावर लगवा लीजिए लेकिन टावर लगवाना ग्रामीणों का नहीं बल्कि कंपनी का काम है। ऐसे में न सरकार सुनवाई करती है और ना ही कोई कंपनी यहां टावर लगाती है, जिसके कारण ग्रामीणों को दूरदराज क्षेत्रों में जाकर अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है।
पीने के लिए भी मिलता है यहां खारा पानी
शिक्षा और नेटवर्क के साथ यहां पर पानी की भी भारी समस्या है। ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। यहां पीने का पानी के नाम पर खारा पानी आता है। गांव के किसी इलाके में स्वच्छ पानी की व्यवस्था नहीं है। इस गांव में ग्रामीण केवल बदहाली की जिंदगी गुजार रहे है।