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ग्राउंड रिपोर्ट

Ground Report : निहाल नदी लील रही कालाढूंगी के धापला गांव को, ग्रामीण करने लगे हैं अब विस्थापन की मांग

Janjwar Desk
28 Aug 2021 10:11 AM IST
Ground Report : निहाल नदी लील रही कालाढूंगी के धापला गांव को, ग्रामीण करने लगे हैं अब विस्थापन की मांग
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बरसात में बहुत मुश्किल से नदी पार कर जान जोखिम में डाल बच्चे जाते हैं स्कूल (photo : janjwar)

बरसात के दिनों में छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं की तबियत खराब होने की स्थिति में उन्हें उपचार के लिए आठ किमी. दूर कालाढूंगी अस्पताल पहुंचाया जाना बेहद मुश्किल होता है, अस्पताल जाने के दौरान रास्ता पूरी तरह वन्यजीवों के खतरे वाला होने के चलते ग्रामीण इक्का दुक्का इस रास्ते का उपयोग करने में कतराते हैं...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

नैनीताल, जनज्वार। उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले की कालाढूंगी तहसील का एक गांव धीरे-धीरे नदी में समाने को तैयार है। निहाल नदी का हर बरसात में प्रकोप झेलने को मजबूर इस गांव के ग्रामीण अब अपने विस्थापन की भी मांग करने लगे हैं। अविभाजित उप्र के समय से अम्बेडकर गांव का दर्जा प्राप्त राजस्व गांव धापला के ग्रामीण अपनी इस समस्या के समाधान के लिए जनप्रतिनिधयों से लेकर अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है।

जिले की कालाढूंगी तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूर पहाड़ियों की तलहटी के एक जंगल में बसा धापला नाम का यह राजस्व गांव कोटाबाग विकास खण्ड का हिस्सा है। अनुसूचित जाति बहुल्य धापला गांव को अविभाजित उप्र के जमाने से अम्बेडकर गांव का दर्जा प्राप्त है। इसी धापला गांव की आबादी क्षेत्र से सटकर निहाल नदी गुजरती है। गांव की दूसरी तरफ से भी एक बरसाती नाला जिसे चापड़ा रोखड़ कहा जाता है, बहता है। गर्मियों के मौसम में पहाड़ के अधिकांश जलश्रोत सूखने के कारण इस निहाल नदी में भी पानी की कमी हो जाती है, लेकिन पहाड़ों पर होने वाली बरसात के बाद निहाल नदी अपने पूरे उफान पर आ जाती है।

दूसरी तरफ चापड़ा रोखड़ नाला भी बरसात में अपने चरम पर होFGroता है, जिस कारण बरसात के दिनों में गांव की स्थिति दोनों ओर से पानी में घिरने के बाद सेंडविच सरीखी हो जाती है। एक तरफ निहाल नदी का पानी तेजी से भू-कटाव करता हुआ कृषि व और भूमि को जबरदस्त नुकसान पहुंचाता है तो दूसरी तरफ चापड़ा रोखड़ नाला भी दूसरी तरफ के इस भू-कटाव को बढ़ा देता है । यह सिलसिला हर बरसात में दोहराए जाने के कारण धापला गांव को हर साल दोतरफा बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर होना पड़ता है।

इस साल भी ग्रामीणों की कृषि योग्य भूमि और नदी के पास बसे घर कटान से तबाह हो रहे हैं। बाढ़ ने गांव से बाहर जाने वाले रास्ते को भी काटकर लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है। ग्रामीण मुख्य मार्ग के कट जाने के कारण अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति के लिए अपने निकटतम कालाढूंगी बाजार तक नहीं जा पा रहे हैं।

ग्रामीण निहाल नदी के प्रकोप से गांव को बचाने और कालाढूंगी से धापला तक स्थायी मार्ग बनवाए जाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन आज तक न तो जनप्रतिनिधियों ने उनकी सुध ली और न अधिकारियों ने इस ओर ध्यान दिया। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान गांव में ही होने के कारण ग्रामीणों को सस्ता गल्ला मिल जाता है। गांव में हाईस्कूल तक शिक्षा का इंतज़ाम है, लेकिन आगे इंटर की शिक्षा के लिए बच्चों को नदी पार करके जंगल के दुर्गम पैदल आठ किमी. के रास्ते से होकर कालाढूंगी के इंटर कॉलेज जाना पड़ता है।

ग्रामीण कालाढूंगी से धापला तक सड़क मार्ग बनवाने के साथ ही गांव में एएनएम सेंटर और हाईस्कूल को इंटर तक स्कूल बनाने की मांग करते-करते थक चुके हैं, लेकिन उन्हें हर चुनावी मौसम में उन्हें आश्वासन तो मिलते हैं पर समाधान नहीं होता। स्वास्थ्य सुविधा तक के लिए ग्रामीण जंगल के रास्ते आठ किमी. दूर के नजदीकी कालाढूंगी के अस्पताल पर निर्भर हैं।

ग्रामीण पीताम्बर की इंटर पास पुत्री रेनू ने बताया कि बरसात के दिनों में छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं की तबियत खराब होने की स्थिति में उन्हें उपचार के लिए आठ किमी. दूर कालाढूंगी अस्पताल पहुंचाया जाना बेहद मुश्किल होता है। अस्पताल जाने के दौरान रास्ता पूरी तरह वन्यजीवों के खतरे वाला होने के चलते ग्रामीण इक्का दुक्का इस रास्ते का उपयोग करने में कतराते हैं। खास तौर पर महिलाओं के लिए स्थिति बेहद खराब है।

एक तरफ ग्रामीणों के लिए यह तमाम दुश्वारियां हैं तो दूसरी तरफ हर बरसात में निहाल नदी से होने वाला भू-कटाव मुसीबत बना हुआ है। ग्रामीण पीताम्बर ने बताया कि गांव के ही पूर्व प्रधान जीवनलाल, प्रकाश चंद्र, नंदू, दयालराम सहित कई ग्रामीणों की कई बीघा कृषि जमीन निहाल नदी की भेंट चढ़ चुकी है। यही हाल रहा तो धीरे धीरे धापला गांव का निहाल नदी में समाकर अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

ग्राम प्रधान दयानंद आर्या ने बताया कि आधुनिक समय में भी उनका गांव तमाम मुश्किलों का सामना कर रहा है। सरकार के हर प्लेटफार्म पर ग्रामीण अपनी समस्यायों को उठा चुके हैं, लेकिन गांव की सूरत नहीं बदली। पिछली काँग्रेस सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत दस किमी. तक की सड़क बनाने की मंजूरी मिली थी। लेकिन रामनगर वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी ने इस क्षेत्र को हाथी कॉरिडोर बताते हुए सड़क निर्माण में अपनी आपत्ति लगा दी थी, जिस कारण आज तक इस सड़क का निर्माण नहीं हो पाया।

गांव में दोनों ओर से बरसात में कृषि भूमि का कटाव होता रहता है, जिस कारण हर साल की बाढ़ के कारण गांव के लोग अब पूरे गांव को ही विस्थापित करने की मांग करने लगे हैं। विस्थापन की मांग से रेनू भी सहमत हैं। उनका कहना है कि यदि गांव को दूसरी जगह विस्थापित किया जाता है तो भू-कटाव से तो राहत मिलेगी ही। सड़क की सुविधा भी ग्रामीणों को मिल सकेगी।

पूर्व प्रधान जीवनलाल के अनुसार अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव होने के कारण सरकार गांव की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है। सरकार के पास बजट की कोई कमी नहीं है। गांव की इस हालत के लिए सरकार की इच्छाशक्ति मुख्य जिम्मेदार है। सरकार चाहे तो वन-विभाग की कैम्पा, जायका जैसी किसी भी योजना के तहत इस गांव की सूरत बदल सकती है।

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