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ग्राउंड रिपोर्ट

गरीबों की पार्टी होने का स्वांग रचाने वाली BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के आगमन पर कानपुर में उजाड़ दिए गये सैकड़ों खानाबदोश परिवार

Janjwar Desk
17 Nov 2021 11:50 AM GMT
kanpur news
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(उजड़ रहे आशियानों के बीच कहीं खुशी तो कहीं गम का है माहौल)

इन लोगों ने यहां की जगह खाली करने का आदेश दे दिया है, लेकिन यह नहीं बताया की हम लोग जाएं कहां? हमने भाजपा को क्या इसीलिए वोट दिया था की एक दिन हमें अपनी झोपड़ी छोड़कर बाल-बच्चों के साथ दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी...

मनीष दुबे की रिपोर्ट

Kanpur : भीम बैठकर लगातार रोए जा रहा है। उसकी बूढ़ी मां को आंखों से दिखना भी बंद हो चुका है। भीम की मां भी भीम की गीली आंखों को महसूस कर रो रही है। भीम कहता है इन लोगों ने यहां की जगह खाली करने का आदेश दे दिया है, लेकिन यह नहीं बताया की हम लोग जाएं कहां? हमने भाजपा को क्या इसीलिए वोट दिया था की एक दिन हमें अपनी झोपड़ी छोड़कर बाल-बच्चों के साथ दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी।

भीम सहित इस पूरी अस्थाई बस्ती में सैंकड़ों परिवारों को अपना-अपना आशियाना छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। पूरा का पूरा माहौल किसी पलायन जैसी स्थिति का बन पड़ा दिख रहा है। यहां के सभी निवासी मूर्ति कलाकार, तो कहीं मेहनत-मजदूरी करने वाले वो लोग हैं जो रोज गड्ढा खोदकर पानी पीते हैं। पूरा मामला साकेत नगर रेलवे ग्राउण्ड के सामने का है।

बूढ़ी मां को देखकर रोने लगता है भीम

उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव की जीत का गणित सेट करने में मशरूफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) भले ही खुद को गरीबों का मसीहा कहती बताती है, लेकिन सिर घुमाते ही यह सूरत बदल जाती है। आगामी 23 नवंबर को शहर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का आगमन है और वह यहां के साकेत नगर स्थित रेलवे ग्राउण्ड में तमाम कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे।

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के आगमन से पहले इस रेलवे ग्राउण्ड के बाहर रह रहे सैंकड़ों खानाबदोश परिवारों को उजाड़ दिया गया है। तमाम झुग्गी-झोपड़ियां हटवा दी गईं हैं। वह शायद इसलिये की आलाकमान को गरीब व गरीबी इंच मात्र भर नहीं दिखनी चाहिए। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी की रामराज्य वाली सरकार में एक भी गरीब बचा ही कहां है। गुंडे-माफियाओं सहित गरीब भी खत्म हो गया है। ऐसा नेताओं और उनके अंधभक्तों का मानना है। क्योंकि जिस जगह इन सभी का बसेरा है वहां से ग्राउण्ड का रास्ता बहुत अलग है।

सालों साल से रह रहे लोग

चायवाले के राज में चाय वाले भी दर-बदर

यहां से हटाए जा रहे लोगों में कोई 20 साल से, कोई 25 तो कोई 30 सालों से रहता आ रहा है। लेकिन इन सबको हटाया अब जा रहा है। अभी तक न किसी सरकार ने ध्यान दिया और न ही कोई नेता इनके लिए खुदा बन सका। बशर्ते नेताजी लोग चुनाव के वक्त इनके चरणों में लोट लगाना नहीं भूलते। भाजपा वाले भी आते हैं। यहां का मानसिंह जो कहता है की हमने भाजपा को वोट देकर जिंदगी की सबसे बड़ी भूल कर दी है। अबकी यही भूल सुधारनी है, लेकिन उससे पहले परिवार भी देखना है।

BJP पार्षद का तकिया कलाम

जेपी नड्डा का गरीबों को उजाड़कर करवाए जा रहे इस कार्यक्रम में अभी तक वह बात देखने को नहीं मिल सकी है जो अभी से पहले सुल्तानपुर, आजमगढ़, गोरखपुर या फिर महोबा में सामने आ चुकी है। बस और भीड़। हालांकि देर-सबेर इसका खुलासा हो सकता है। स्थानीय पार्षद गिरीश चंद्रा ने जनज्वार को बताया कि हटाया किसी कोे नहीं जा रहा बस ये है कि इन सभी को चिंहित कर सभी को उसका हक दिलाया जाएगा। गिरीश चंद्रा ने कुछ-कुछ वैसी ही बात बोली जैसी तकिया कलाम में चलती है कि, 'मोदी है तो मुमकिन है।'

मोदी ने किन गरीबों को दी कालोनियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं की उन्होने करोड़ों कालोनियां बनाकर उनकी चाभी गरीबों को सौंप दी है, लेकिन हमें उनकी इस कथनी के बाद अब तक एक भी ऐसा गरीब नहीं मिला है जिसने हमसे बताया हो की वह जिस घर में रहता है वह सरकार ने दी है। या हो सकता है की सभी गरीब फिल्मों की कहानियों सरीखे अपने मकान बेंचकर या किराए पर देकर अंतर्ध्यान हो गये हों।

दिनभर नहीं जले चूल्हे

आशियाना उजड़ने के गम में सूने पड़े चूल्हे

खाली कराई जा रही इस पूरी पट्टी में सरकार का दिया ना एक उज्जवला कनेक्शन है और ना ही कोई अन्य लाभ। यह सभी पीछे के ग्राउण्ड से लकड़ियां समेटकर मिट्टी के चूल्हों पर पकाते खाते हैं। ऐसे में जब झुग्गियां उजड़ गई हैं तो लोगों का सुबह से चूल्हा तक नहीं जल सका है। लोग अपना सामान समेटकर आगे का कोई स्थान खोज रहे जहां बच्चे और परिवार पाल सकें।

कौन हैं यह लोग?

यहां रह रहे लोगों में मुख्यता राजस्थान अथवा दूसरे राज्यों से आए लोग हैं। लेकिन इतना तो कंफर्म है की हैं देश के भीतर के रहने वाले। कोई भी विदेशी नागरिक नहीं है। इनका जीवन-यापन छोटा-मोटा काम मेहनत-मजदूरी से चलता है। खानाबदोश लोग हैं यह। इस बात को सराकर के ध्यान देने लायक है कि जब वह एक देश-एक वोट-एक आधार जैसी योजनाएं चला रही तो एक देश का नागरिक फिर भला क्यों इधर-उधर मारा-मारा फिर रहा। यह बड़ा सवाल है सरकार के लिए भी और स्थानीय प्रशासन के लिए भी।

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