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स्वास्थ्य

WHO की चिंता यूं ही नहीं है वाजिब, मेडेन के उत्पादों का कई देशों में होता है निर्यात, इंडियन मेडिसिन इंडस्ट्री को लग सकता है झटका

Janjwar Desk
7 Oct 2022 12:39 PM GMT
WHO की चिंता यूं ही नहीं है वाजिब, मेडेन के उत्पादों का कई देशों में होता है निर्यात, इंडियन मेडिसिन इंडस्ट्री को लग सकता है झटका
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WHO की चिंता यूं ही नहीं है वाजिब, मेडेन के उत्पादों का कई देशों में होता है निर्यात, इंडियन मेडिसिन इंडस्ट्री को लग सकता है झटका

Deadly Cough Syrup : डब्लूएचओ ( WHO ) के इस अलर्ट से भारतीय उत्पादों को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। मेडिसिन और फार्मा इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि अगर डेडली कफ सिरप ( deadly cough syrup ) पीने के और मामले सामने आये तो मेडिसिन उत्पादों के निर्यात को झटका लग सकता है।

Deadly Cough Syrup : अफ्रीकी देश गाम्बिया में भरतीय कंपनी द्वारा निर्मित कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने अलर्ट जारी कर चार दवाओं का इस्तेमाल नहीं करने की सभी से अपील की है। साथ ही डब्लूएचओ ने इस बात को लेकर चिंता भी जाहिर की है कि दुनिया के अन्य देशों में इन दवाओं की मौजूदगी इस मामले को और गंभीर बना सकता है। डब्लूएचओ के इस अलर्ट से भारतीय उत्पादों को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। मेडिसिन और फार्मा इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि अगर डेडली कफ सिरप पीने के और मामले सामने आये तो मेडिसिन उत्पादों के निर्यात को झटका लग सकता है।

डब्लूएचओ की इस चेतावनी के बाद दिल्ली बेस्ड हरियाणा के सोनीपत स्थित मेडेन कंपनी के ड्रग्स के कंटेंट पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। गाम्बिया में घटना के बाद जांच में पता चला है कि इन दवाओं में डायथाइलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की अधिक मात्रा पाई गई है। डब्लूएचओ के मुताबिक मेडेन कंपनी के चारों उत्पादों में diethylene glycol और ethylene glycol का इस्तेमाल तय मानकों से ज्यादा हुआ है।

डायथाइलीन और एथिलीन ग्लाइकॉल इन देशों में है बैन

खास बात यह है कि diethylene glycol और ethylene glycol कंपाउंड की दवाओं का इस्तेमाल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में बैन है लेकिन भारत में इन केमिकल कंपाउंड पर रोक नहीं है। बिहार, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली व कुछ अन्य राज्यों में इन पर बैन है। ये बात अलग है भारतीय बाजार में मेडेनकपंनी के ये उत्पाद नहीं हैं। मेडेन कंपनी के ये उत्पाद विदेशों में निर्यात के लिए बनाए जाते हैं। इसके बावजूद इस बाज की जांच जारी है कि भारतीय बाजारों में इसकी उपलब्धतता है या नहीं। WHO की चिंता यह है कि ये प्रोडक्ट अभी सिर्फ गाम्बिया में पाए गए हैं लेकिन इन प्रोडक्ट्स को इंफॉर्मल मार्केट के जरिए अन्य देशों या क्षेत्रों में उपलब्धता से इनकार नहीं किया जा सकता। WHO को आशंका है कि डेडली कफ सिरप को पश्चिमी अफ्रीकी देश के बाहर भी भेजा गया है।

चारों उत्पाद घटिया दवाओं की लिस्ट में शामिल

फिलहाल, डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मेडेन कंपनी के चारों प्रोडक्ट्स के सभी बैच को असुरक्षित कैटेगरी में ही रखा गया है। जब तक कि प्रोडक्ट्स पर नेशनल रेगुलेटरी अथॉरिटी अपनी रिपोर्ट न जारी कर दे। संगठन ने कहा कि वह कंपनी और भारतीय रेगुलेटरी अथॉरिटी के साथ मिलकर जांच कर रही है। अभी तक WHO ने प्रोमेथाज़िन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मकॉफ़ बेबी कफ सिरप और मैग्रीप एन कोल्ड सिरप को घटिया दवाओं के रूप में लिस्ट किया है, क्योंकि इन उत्पादों में डायथाइलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की अस्वीकार्य पाई गई है।

भारत में फार्मा कंपनी की जांच शुरू

मामले को देखते हुए भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी एक्शन में आ गया है। फार्मा की जांच के लिए DCGI और हरियाणा रेगुलेटरी अथॉरिटी मिलकर काम कर रही हैं। हरियाणा सरकार ने भी जांच टीम गठित कर दी है।

ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स ने स्पष्ट किया है कि मेडेन फार्मास्युटिकल्स को केवल उत्पादों के निर्यात के लिए लाइसेंस दिया जाता है, लेकिन उन्हें भारत में बेचने के लिए नहीं। विकसित देशों में कंपनी के उत्पादों की बिक्री इसलिए नहीं है कि वहां पर गुणवत्ता जांच सख्त और सुनिश्चित है। भारतीय एजेंसियों पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब भारत में इसके उत्पाद पर बैन है तो विदेशों में इसके निर्याता को इजाजत किस आधार पर है। एआईओसीडी का कहना है कि डब्लूएचओ और गाम्बिया की एजेंसियों ने भी डेडली कफ सिरफ की गुणवत्ता पर कोई ध्यान न देकर भूल की है। कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भारत में इसके दो विनिर्माण संयंत्र हरियाणा के कुंडली और पानीपत में हैं। राजधानी दिल्ली के पीतमपुरा में इसका कॉरपोरेट कार्यालय भी है। कंपनी ने वेबसाइट पर खुद को डब्ल्यूएचओ-जीएमपी और आईएसओ 9001-2015 प्रमाणित फार्मा कंपनी बताया है। इस लिहाज से एब्लूएचओ की कमजोर गुणवत्ता नियंत्रण मशीनरी पर सवाल उठाए जा सकते हैं। कंपनी दावा करती है कि उनके उत्पाद डब्लूएचओ से प्रमाणित हैं, पर डब्लूएचओ ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया।

मौत से संबंधित डिटेल्स पता लगा रही है कंपनी

डब्लूएचओ की ओर से अलर्ट जारी होने के बाद मेडेन फार्मास्युटिकल्स के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि कंपनी गाम्बिया में अपने खरीदार से बच्चों की मौत से संबंधित डिटेल्स का पता लगाने की कोशिश कर रही है। इसके निदेशकों में से एक नरेश कुमार गोयल ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स' को बताया कि हम स्थिति का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि 6 अक्टूबर की सुबह ही यह मामला सामने आया है। हम खरीदार के साथ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वास्तव में क्या हुआ है। हम भारत में कुछ भी नहीं बेच रहे हैं।

इन देशों में मेडेन कंपनी के उत्पादों की पकड़ है मजबूत

मेडेन फार्मास्युटिकल्स 22 नवंबर, 1990 से अस्तित्व में है। कंपनी उत्पादों की अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मिडिल ईस्ट कंट्रीज और दक्षिण अमेरिकी देशों है। इनके अलावा रूस, पोलैंड और बेलारूस में भी कंपनी के उत्पादों की मौजूदगी है। कंपनी कई तरह के उत्पाद बनाती है जिसमें कैप्सूल, टैबलेट, इंजेक्शन दवा, सिरप और मलहम भी शामिल हैं।

भारत में डेडली कफ सिरप से जुड़ी दर्दनाक यांदें

मेडेन कंपनी के कफ सिरप से गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत ने भारत में कई बार हुई डायथाइलीन ग्लाइकॉल से संबंधित मौतों की यादें ताजा कर दी है। भारत में जहरीली खांसी की दवाई से मौत का पहला ममला 1973 में सामने आया था जब चेन्नई के एक अस्पताल में कफ सिरप की वजह से 14 बच्चों की मौत हुई थी। 1986 में मुंबई के जेजे अस्पताल में 14 रोगियों की मौत हुई थी। 1998 में, दिल्ली के दो अस्पतालों में 33 बच्चों की मौत नकली दवाओं के कारण हुई थी। दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में कोल्डबेस्ट-पीसी के ब्रांड नाम से बिकने वाले कफ सिरप के सेवन से 12 बच्चों की मौत हुई थी। 2022 नई दिल्ली में भी तीन बच्चों की मौत डेक्सट्रोमेथॉर्फ़न युक्त कफ सिरप के सेवन से हुई थी, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा चिह्नित चार सिरप में से एक में मौजूद घटक है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

नोएडा इंटरनेल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ उत्कर्ष साहनी का कहना है कि इन कफ सिरप में जिन पदार्थों की मौजूदगी का दावा किया जा रहा है वह मानव शरीर के लिए कई प्रकार से नुकसानदायक हो सकते हैं। विशेषकर रक्त में मिलकर ये क्रोनिक किडनी इंजरी के खतरे को बढ़ा देते हैं, फिलहाल अन्य किन दवाओं में यह उत्पाद हैं और भारत में इनकी उपलब्धता कितनी है इस बारे में आगे की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। एहतियात के तौर पर यदि आपके पास इस तरह के उत्पाद हैं, तो कृपया उनका उपयोग न करें।

सब स्टैंडर्ड कंटेंट के इस्तेमाल से होता है ऐसा

बाल रोग रोग विशेषज्ञ डॉ. उमंग अरोड़ा का कहना है कि गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत का सवाल है तो कमेंट करने से पहले यह देखना जरूरी है कि कफ सिरप में जो भी कंटेंट था वो कितनी मात्रा में मौजूद था और कितनी रेंज में परमिशेबल है। यानी कौन सा ड्रग कितनी मात्रा में मिलाया गया, साथ ही क्या वो मात्रा परमिशेबल थी। अगर स्टैंडर्ड मानकों से ज्यादा किसी ड्रग का इस्तेमाल किया गया तो स्पष्ट है कि दवा बनाने वाली कंपनी दोषी है। इस मामले में जिस कंपनी का नाम वो भारत के सब स्टैंडर्ड के लिए चर्चित है। यही वजह है कि उसकी दबाएं उन देशों में ज्यादा प्रचलन में है जहां मेडिसिन और ड्रग्स से संबंधित एजेंसियां कमजोर हैं। मोटे तौर पर कफ सिरप के प्रभावों की बात करें तो इससे नींद आ सकती है। वहीं, ज्यादा डोज से बेहोशी की स्थिति में जा सकते हैं। फीट आना या लिवर की टॉक्सीसिटी बढ़ना यानी डैमेज होना हो सकता है। यहां तक कि हार्ट पर भी असर हो सकता है। इसके साथ ही ब्रिदिंग सिस्टम यानी सांसों का आवागमन प्रभावित हो सकता है। इस तरह की स्थिति में ही मौत होने की संभावना हो सकती है। अगर गाम्बिया में बच्चों की मौतें हुईं हैं तो जाहिर है, इसी तरह दवा ने किसी न किसी हिस्से को प्रभावित किया होगा।

कफ सिरप से संबंधित इन बातों का रखें ख्याल

बच्चे को अगर सर्दी-खांसी और बुखार है तो अच्छे डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर को बच्चे के सारे लक्षण विस्तार से बताएं। डॉक्टर की हिदायत को ध्यान से सुनें। दवाई की जितनी डोज डॉक्टर ने बताई है उससे बिल्कुल भी ज्यादा न दें। डॉक्टर के बताए गए समय पर ही बच्चों को दवाओं का डोज दें। दवाइयों की गुणवत्ता के साथ समझौता न करें। डॉक्टर ने जिस कंपनी की दवाएं लिखी हैं उसी कंपनी की दवाएं प्रिफर करें।


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