- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- Drinking Water Quality...
Drinking Water Quality Index: भारत 122 देशों में 120वें नंबर पर, 80 प्रतिशत आबादी पी रही जहरीला पानी
Drinking Water Quality Index: भारत 122 देशों में 120वें नंबर पर, 80 प्रतिशत आबादी पी रही जहरीला पानी
Drinking Water Quality Index: हम सब अनचाहे में हर दिन पेयजल के नाम पर जहर पी रहे हैैं। जिससे अधिकांश आबादी अनजान है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भी देश की 80 प्रतिशत आबादी हैंडपंप व कुंआ समेत अन्य जनस्रोतों पर निर्भर है। जिसे मजबूरन दुषित जल का सेवन करना पड़ रहा है। हालांकि स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के नाम पर प्रत्येक वर्ष अरबों रूपये खर्च हो रहे हैं।
यह माना गया है कि सुरक्षित जल आपूर्ति एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का आधार होती है। फिर भी दुर्भाग्यवश विश्व स्तर पर इसे प्राथमिकता नहीं दी गई। भारत में प्रति वर्ष लगभग 42 अरब रूपये का आर्थिक बोझ लोगों को इसके चलते उठाना पड़ता है। यह विशेष रूप से बाढ़ व सूखा क्षेत्र के लिए कड़वी सच्चाई है। जिसका देश के एक तिहाई हिस्से पर पिछले कुछ वर्षों से असर पड़ा है।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश के 25 राज्यों के 209 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है। 21 राज्यों के 176 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में सीसा तय मानक 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक है। वहीं 29 राज्यों के 491 जिलों के कुछ इलाकों के भूजल में आयरन की मात्रा 1 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक है। 18 राज्यों के 152 जिले के इलाकों में भूजल में यूरेनियम 0.03 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया।
16 राज्यों के 62 जिलों के कुछ इलाकों में भूजल में क्रोमियम की मात्रा 0.05 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा मिली है। वहीं 11 राज्यों के 29 जिलों के कुछ हिस्सों के भूजल में कैडमियम की मात्रा 0.003 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा पाई गई है। सरकार ने राज्यसभा में उन रिहायशी इलाकों की संख्या भी बताए हैं, जहां पीने के पानी के स्रोत प्रदूषित हो चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 9930 इलाके खारापन, 14079 इलाके आयरन, 814 इलाके आर्सेनिक, 671 इलाके फ्लोराइड, 517 इलाके नाइट्रेट और 111 इलाके भारी धातु से प्रभावित हैं।
नीति आयोग के मुताबिक देश में ग्राउंड और सरफेस वाटर दोनों ही अत्यधिक प्रदूषित हैं। वॉटर क्वॉलिटी इंडेक्स के मामले में भारत 122 देशों में 120वें नंबर पर आता है। देश का 70 फीसदी जल दूषित हैं। इसमें बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया के साथ भारी धातुएं मिली हुई हैं। ग्राउंड वाटर में आयरन, सीसा, क्रोमियम, आर्सेनिक, कैडमियम और यूरेनियम की मात्रा तय मानक से ज्यादा होने का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।
दुषित जल से हर वर्ष बीमार पड़ रहे करीब 3.70 करोड़ लोग
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दूषित पानी से हर साल करीब 3.70 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं। करीब 1 करोड़ लोग पीने के पानी में आर्सेनिक की समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं करीब 6.6 करोड़ लोग पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा से पीड़ित हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश में हर साल करीब 3 लाख बच्चों की दूषित पानी से होने वाली बीमारियों से मौत हो जाती है। जिनमें अकेले डायरिया से 50 फीसदी से मौतें हो जाती हैं।
राज्यसभा में सरकार ने रिहायशी इलाकों की संख्या भी बताई है जहां पीने के पानी के स्रोत प्रदूषित हो गए हैं। इसके अनुसार 671 क्षेत्र फ्लोराइड से, 814 क्षेत्र आर्सेनिक से, 14,079 क्षेत्र लोहे से, 9,930 क्षेत्र लवणता से, 517 क्षेत्र नाइट्रेट से और 111 क्षेत्र भारी धातुओं से प्रभावित हैं।
समस्या शहरों की तुलना में गांवों में अधिक गंभीर है, क्योंकि भारत की आधी से अधिक आबादी गांवों में रहती है। यहां पीने के पानी के मुख्य स्रोत हैंडपंप, कुएं, नदियां या तालाब हैं। यहां पानी सीधे जमीन से आता है। इसके अलावा गांवों में आमतौर पर इस पानी को साफ करने का कोई तरीका नहीं है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।
हर घर नल योजना का अभी अधिकांश आबादी को इंतजार
जल शक्ति मंत्रालय के एक दस्तावेज के मुताबिक देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पीने का पानी ग्राउंड वाटर से मिलता है। लेकिन इस ग्राउंड वाटर में तय मानक से ज्यादा जहरीली धातुओं के होने से यह पानी लोगों के लिए जहर सरीखा हो गया है। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां देश की आधी से ज्यादा आबादी रहती है। चूंकि गांवों में आज भी पानी का मुख्य स्रोत ग्राउंड वाटर है।
लिहाजा शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में समस्या और भी गंभीर है. यहां लोग पीने के पानी के लिए हैंडपंप, कुआं या नदी-तालाब पर निर्भर रहते हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी को साफ करने का कोई व्यवस्था नहीं होती है। ऐसे में लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं। हालांकि मोदी सरकार ने आम आदमी को साफ पानी मुहैया कराने के लिए 15 अगस्त 2019 को हर घर नल-जल योजना का ऐलान किया था। इस योजना के तहत 2024 तक हर घर तक साफ पीने का पानी मुहैया कराने लक्ष्य रखा गया है। जल जीवन मिशन 3.60 लाख करोड़ रुपये की योजना है। बजट 2022 में नल से जल योजना के लिए 60 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इस योजना की शुरुआत के वक्त महज 17 फीसदी आबादी यानि 3.23 करोड़ घरों तक ही ही नल जरिए जल पहुंच रहा था। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो 19 जुलाई तक करीब 51.43 फीसदी घरों में नल का पानी पहुंच पाया है। साथ ही ग्रामीण इलाकों के करीब 9.6 करोड़ घरों तक नल-जल पहुंच गया है। इस योजना के तहत जिन 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने लक्ष्य को हासिल किया है, उनमें गोवा , तेलंगाना , अंडमान निकोबार , पुडुचेरी , दादरा नगर हवेली , दमन और दीव और हरियाणा प्रमुख हैं। वहीं पंजाब 99 प्रतिशत, गुजरात 95.56 प्रतिशत , हिमाचल प्रदेश 92.35 प्रतिशत और बिहार 92.72 प्रतिशत के साथ 100 फीसदी श्हर घर जल राज्य बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
वहीं कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां 25 फीसदी आबादी तक नल-जल की सुविधा नही है। झारखंड 20 प्रतिशत , छत्तीसगढ 23.24 प्रतिशत और राजस्थान 24.56 प्रतिशत की स्थिति संतोषजनक नहीं है। सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश प्रदेश की है, जहां सिर्फ 13.74 प्रतिशत घरों तक ही जल-नल पहुंचा। जल जीवन मिशन के क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार ने 2019-20 में यूपी को 1,206 करोड़, 2020-21 में 2,571 करोड़ और 2021-22 के लिए 108.7 अरब रुपये आवंटित किए। दक्षिण राज्यों में भी स्थिति कमोबेश खराब ही है।
जहरीला पानी कैंसर जैसे खतरनाक बीमारियों को दे रहे जन्म
सरकारी दस्तावेजों के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए रोजाना कम से कम 2 लीटर पानी पीना चाहिए। यानी अगर आप रोजाना 2 लीटर पानी भी पी रहे हैं तो भी आपके शरीर में कुछ मात्रा में जहर जा रहा है। भूजल में आर्सेनिक, लोहा, सीसा, कैडमियम, क्रोमियम और यूरेनियम की मात्रा निर्धारित मानक से अधिक होने का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। आर्सेनिक की अधिकता यानी त्वचा रोगों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आयरन की अधिकता का मतलब तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियां जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन हो सकता है। पानी में लेड की अधिक मात्रा हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकती है। कैडमियम के उच्च स्तर से किडनी की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। क्रोमियम की उच्च मात्रा छोटी आंत में फैलाना हाइपरप्लासिया का कारण बन सकती है, जिससे ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है। पीने के पानी में यूरेनियम की अधिक मात्रा से किडनी की बीमारियों और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।