सरकार की नजर में आतंकवादियों से भी खतरनाक प्रदर्शनकारी किसान, सुरक्षा घेरा देख पता चलती है अन्नदाताओं की हकीकत
photo : social media
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। बीजेपी और केंद्र सरकार बार-बार डंके की चोट पर साबित करती जा रही है कि उसने देश को विभाजित कर दिया है – एक तरफ बीजेपी के नेता, उसके समर्थक और उनके तलवे चाटने वाली आबादी है, जो पूरी तरह से स्वतंत्र है, बंधनमुक्त है और दूसरी तरफ जंजीरों से जकड़ी शेष आबादी है। संविधान दिवस के दिन भी यही साबित किया गया और यह सिलसिला चलता जा रहा है।
एक तरफ तथाकथित कोरोना काल के दौरान बिहार के विधानसभा चुनावों और अब तेलंगाना में स्थानीय निकायों के चुनाव के दौरान बीजेपी नेताओं की सभाओं और रोड शो में भीड़ में मास्क और सोशल डीस्टेंसिंग खोजिये तो दूसरी तरफ कोविड 19 फ़ैलाने का कारण बताकर दिल्ली न पहुँचने देने के लिए किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन के लगातार दो दिनों तक उपयोग का औचित्य देखिये।
जाहिर है बीजेपी के नेता और समर्थक एक दूसरे संविधान और क़ानून के तहत हैं, जबकि शेष जनता का संविधान और लागू होने वाला क़ानून कुछ और कहता है। केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस लगातार कहती रही कि किसानों के प्रदर्शन न करने देने का कारण कोविड 19 है, पर आज अगर बीजेपी का एक अदना सा नेता भी रामलीला मैदान पर कोई रैली करना चाहे तो यही पुलिस तुरंत सारे इंतजाम में जुट जायेगी।
दिल्ली में समय-समय पर समाचार चैनलों के माध्यम से सरकार के सुविधानुसार आतंकवादियों के घुसने की खबर फैलाई जाती रहती है, उनकी संख्या भी बताई जाती है, उनके हथियार भी बताये जाते हैं, पर किसी भी दौर में दिल्ली ने ऐसा सुरक्षा घेरा नहीं देखा होगा जैसा किसानों को रोकने के लिए किया गया था। केवल दिल्ली के बॉर्डर पर ही पुलिस और अर्धसैनिक बलों को अपने ही शांतिपूर्वक आ रहे निहत्थे नागरिकों को रौंदने के लिए असाल्ट राइफल और एके 47 से लैस कर खड़ा कर दिया गया था, यही हाल पूरी दिल्ली का था।
हरेक जगह वाटर कैनन की गाड़ियां, रैपिड एक्शन फोर्स और दंगे से निपटने वाली बटालियन खडी कर दी गई थी। क्या सरकार की नजर में अपनी मांगों के साथ आ रहे किसान दंगाई और आतंकवादी हैं, और यदि नहीं तो फिर क्या जिस संविधान को हम जानते हैं उसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों से आतंकवादियों की तरह निपटने के बारे में कहा गया है?
इस प्रकार का तमाशा निश्चित तौर पर कोविड 19 के आंकड़ों के सन्दर्भ में भी बड़े सवाल खड़े करता है। बिहार में चुनावी रैलियों के दौर से ठीक पहले कोविड 19 के मामले अचानक कम हो गए, अब ऐसा ही पश्चिम बंगाल के साथ भी किया जाने वाला है। उत्तर प्रदेश के मामले भी अगले कुछ दिनों में नगण्य होने लगेंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री को बनारस का दौरा करना है, ऐसा ही अयोध्या में राम मंदिर के दौरे के समय भी किया गया था। किसानों ने अपने आन्दोलन की तारीख पहले घोषित कर दी थी, हो सकता है कोविड 19 की दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ोत्तरी इसीलिए दिल्ली में हो रही हो।
किसान अपनी मांगों के साथ आयेंगे तो दिल्ली में कोविड 19 के मामले तेजी से बढेंगे, ऐसा सोचने वाली सरकार खामोशी से बीजेपी नेताओं का छठ पर सार्वजनिक पूजा पर मनाही पर विधवा विलाप कर छाती पीटना देखती रही। पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रमुख समेत इस दल से जुड़े अनेक नेता तो सार्वजनिक तौर पर देश से कोविड 19 के ख़त्म होने की बात कर चुके हैं, यह बात दूसरी है कि नेताओं में सबसे अधिक बीजेपी से जुड़े नेता ही इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं।
दो दिन पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के हैदराबाद रोड शो की तस्वीरें देखिये, या फिर बिहार चुनावों के दौरान की गई प्रचार सभाओं की विडियो फुटेज देखिये – कहीं भी मास्क और सोशल डीस्टेसिंग नजर नहीं आयेगी। मध्य प्रदेश उपचुनावों में शिवराज सिंह चौहान की रैलियों का भी यही आलम है। बीजेपी और उसके समर्थकों का आलम यह है कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति भी उन्हें मास्क के लिए या फिर शारीरिक दूरी के लिए बाध्य नहीं कर पाती।
अयोध्या के राम मंदिर शिलान्यास, जिसमें प्रधानमंत्री मौजूद थे, की वीडियो ध्यान से देखिये। इसमें सबके बीच में बैठे कट्टर बीजेपी समर्थक और महान उद्योगपति रामदेव ने कभी मास्क नहीं लगाया और ना ही किसी चीज से अपना मुँह ढका। सामान्य जनता के मास्क न पहने उन पर डंडे बरसाने वाली और करोड़ों रुपये जुर्माना में वसूलने वाली योगी सरकार के सर्वेसर्वा ठीक रामदेव के बगल में बैठे थे। जाहिर है रामदेव का संविधान अलग है और डंडे खाने वाली जनता का संविधान बिल्कुल अलग।
कोविड 19 का डर पैदा कर राज्यों की और जिलों की सीमा सील करने का एक नया हथियार मिल गया है। केंद्र सरकार की निरंकुशता के दौर में जनता को बांधने के नए तरीके लगातार इजाद किये जाते हैं, और यह एक ऐसा ही तरीका है। पंजाब से दिल्ली चले किसानों को हरियाणा की सीमा पर बलपूर्वक रोका जा रहा है, यही नहीं हरियाणा के रास्ते में पड़ने वाले हरेक जिले की सीमा पर रोका जा रहा है। जाहिर है, यह सब केंद्र सरकार के इशारे पर ही किया जा रहा है।
सरकार ने कृषि विधेयकों और श्रम कानूनों के तौर पर दिल्ली दंगों की तर्ज पर एक बार फिर से विरोधियों को अभियुक्त साबित करने का पासा फेंका है। कुछ दिन आन्दोलन चलेंगे, इसके बाद फिर कहीं कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा जैसे पालतू नेता गरजेंगे, भगवा झंडे वाले खुलेआम आयेंगे, दंगे करवाएंगे और फिर सारे किसान नेता और श्रमिक नेता अभियुक्त बनाकर जेल में बंद कर दिए जायेंगे। इन सबके बीच मीडिया वही करेगा जो आज कर रहा है, यानी सबके घरों में अफीम परोस रहा है।
जिन श्रम कानूनों को ऐतिहासिक बताकर मोदी सरकार इतरा रही है, उनके अनुसार अब बड़े उद्योग बिना किसी झंझट के 300 तक श्रमिकों की छुट्टी कर सकेंगे। काश देश में कोई ऐसा क़ानून भी होता कि जनता जब चाहे बिना किसी झंझट के 300 विधायकों या सांसदों की छुट्टी कर पाती। इस दौर में सरकार से सम्बंधित हरेक नेता अपने आप को किसान बता रहा है, और किसान हैं कि देश की संसद में बैठे तथाकथित किसानों की बात ही नहीं मान रहे हैं।
न्यू इंडिया के ऐतिहासिक क़ानून भी अजीब से हैं। सरकार ने जब चप्पे-चप्पे पर फ़ौज को खड़ा कर कहा कि अब कश्मीरी देश की मुख्य धारा में शामिल हो जायेंगें, कश्मीरियों ने विरोध शुरू कर दिया। सरकार ने जब कहा कि अब नागरिकता आसान हो जायेगी, लोगों ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। सरकार ने कहा हम किसानों के हित की बात करते हैं, किसान सडकों पर आ गए। सरकार ने कहा, अब नए कानूनों से मजदूरों का भला होगा, इसके बाद मजदूर भड़काने लगे हैं।
सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण के अनेक फायदे हैं। सरकारी नियंत्रण के बाद लगातार अफीम परोसने वाले बीजेपी के आईटी सेल पर जाहिर है कोई नियंत्रण नहीं रहेगा, बल्कि नियंत्रण उन चुनिन्दा लोगों पर होगा, जिन पर तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी अभी तक अफीम का नशा नहीं चढ़ा है। अफीम कुछ देर के लिए हरेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक दर्द से इंसान को आजाद कर देता है, पर मीडिया और सरकारों द्वारा संयुक्त तौर पर परोसा जाने वाला अफीम तो इंसान को स्थाई तौर पर दर्द से मुक्त कर रहा है। इसका नशा आने के बाद से आप ना तो बेरोजगार रहते हैं, ना तो अर्थव्यवस्था ध्वस्त होती है, ना तो सरकारी निरंकुशता नजर आती है और ना ही अन्य कोई समस्या।
इसके बाद नजर आता है न्यू इंडिया, जहां लोकतंत्र का एक नया चेहरा है और जिसे मूर्खतंत्र के नाम से जाना जाता है। यह तंत्र आजकल बहुत सारे देशों में पनप रहा है और जिसकी खासियत है सोशल मीडिया, मेनस्ट्रीम मीडिया और सरकारी दावों के माध्यम से लगातार बरसती अफीम। यही हमारा संविधान है।