Begin typing your search above and press return to search.
आजीविका

Ground Report : नीलगाय, छुट्टा पशुओं और कीड़ों ने कर दी पूर्वांचल से अरहर की विदाई, मोदी-योगी का किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भी हवा-हवाई

Janjwar Desk
18 Oct 2022 4:45 PM GMT
Ground Report : नीलगाय, छुट्टा पशुओं और कीड़ों ने कर दी पूर्वांचल से अरहर की विदाई, मोदी-योगी का किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भी हवा-हवाई
x

file photo

पूर्वांचल के किसान खासकर अरहर बोने वाले कभी मौसम की बेरुखी तो कभी बाढ़ और सूखे से लाचार हैं, बाकी कसर नीलगाय, छुट्टा पशुओं और कीड़े पूरी कर देते हैं, सोने पर सुहागा यह कि इन किसानों को सरकार की तरफ से सिर्फ वादों के लॉलीपॉप थमा दिये जाते हैं...

बनारस से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट

'अब अरहर की खेती करना आसान नहीं रहा गया है। मैंने इस वर्ष करीब दो बीघे में अरहर की फसल की बुआई की थी। बुआई के पीक में मानसून की देरी की वजह से हजारों रुपए की लागत से खेतों में बोई गई अरहर की फसल सूखकर नष्ट हो गई। फिर पिछैती अरहर की बुआई किये। पौधों को उगने के बाद से मानसून की देर से शुरू हुई बरसात ने गला दिया। ऊंचे स्थान पर बोई गई महज कुछ विस्वा की अरहर बची है। उसमें भी धान की फसल कटने के बाद नीलगाय दोपहर और रात के अंधेरे में चर जाएंगी। छोटे से रकबे में लगी फसल को बचाने के लिए हजारों रुपए खर्च कर बाड़ लगाया हूं, लेकिन वह भी कारगर नहीं साबित हो रही है। कृषि विभाग से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। हमें और हजारों किसानों की अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक समय हो गया है, लेकिन आजतक एक भी कृषि अधिकारी हमारे गाँव में किसानों का पुरसाहाल लेने नहीं आ पाया है। ऐसे ही अरहर की फसल नुकसान का झटका देती रही तो अगले साल से इसकी खेती ही बंद कर दूंगा।'

यह पीड़ा है सूबे के कृषि प्रधान जनपद चंदौली में कर्मनाशा नदी के किनारे बसे मानिकपुर सानी के प्रगतिशील किसान घुरहू प्रसाद की।

अरहर के पौधे में लगे फुनगा रोग से चंदौली और वाराणसी के किसान परेशान हैं. (अरहर फसल के साथ किसान रामविलास मौर्य)।

4 दशकों से अधिक समय से अरहर की खेती करते आ रहे घुरहू प्रसाद तीखी धूप और उमस में घास निकाल रहे थे। जनज्वार से बात करते हुए घुरहू कहते हैं, 'पिछले वर्ष छह हजार रुपए से कृषि केंद्र से बीज ख़रीदा था। विभागों में लूट मची है, आजतक सब्सिडी का पैसा नहीं आया। सूखे, बाढ़ और नीलगाय से बचने के बाद फरवरी-मार्च में अरहर के पौधों में लगने वाली फूल और फलियों में कीड़ों का हमला बढ़ जाता है। कीड़े पूरे गांव की फसल चट कर जाते हैं। बीमारी और मौसम के प्रति आगाह करने के लिए लिए न सरकारी कारिंदे आते हैं और न ही कोई नेता।'

घुरहू आगे कहते हैं, 'पिछले साल मेरे खेत की पूरी अरहर की फसल कीड़ों की वजह से बर्बाद हो गई। मुश्किल से चार-पांच सेर अरहर के दाने खलिहान तक पहुंच सके। फसल के नुकसान होने के न कोई सर्वे किया गया और न ही कोई मुआवजा मिला। सरकार कहती है कि हम किसानों की आय दोगुनी कर रहे हैं, जबकि, किसानों की हालत पहले से अधिक ख़राब हो गए हैं। मौसम और नीलगाय के आतंक से आधे से अधिक अरहर की फसल चौपट हो गई है। यदि कुछ फसल हो भी जाती है तो वह दलहन कुछ ही महीने में ख़त्म हो जाएगत वर्ष छह हजार रुपए से कृषि केंद्र से बीज ख़रीदा था। विभागों में लूट मची है, आज तक सब्सिडी का पैसा नहीं आया।'

नुकसान की भरपाई नहीं कर पा रही सरकार

उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल के किसान कभी मौसम की बेरुखी तो कभी बाढ़ और सूखे से लाचार हैं। पूर्वांचल में अधिकतर अरहर की बुआई नदियों के ढलान, पठारी मैदान, उबड़-खाबड़ खेतों, समतल मैदान और असिंचित भूमि में की जाती है। खरीफ सीजन में 15 जून से 15 जुलाई तक की अवधि में बोई जाने वाली अरहर की फसल तैयार होकर खलिहान तक आने में नौ से दस महीने का समय लेती है। करोड़ों छोटी और सीमांत जोत के किसानों के फसलों को हुए नुकसान भी भरपाई न तो मोदी योगी की डबल इंजन की सरकार कर पा रही है, और न ही किसानों को शासन-प्रशासन से कोई उम्मीद बची है।

साल 2022 में खरीफ के सीजन में मानसून के आने में काफी देरी और बाढ़ ने दलहन उत्पादक किसानों के हौसले को पस्त कर दिया है। कृषि विभाग दस्तावेजों में लक्ष्यपूर्ति के आंकड़ेबाजी की जुगत है, वहीं किसानों के जी का जंजाल बने घड़रोज (नीलगाय), छुट्टा पशु, उकठा रोग और फलियों में दाने के बजाय कीड़े का पनपना आदि समस्या पर किसी जिम्मेदार का ध्यान नहीं जा रहा है। बहरहाल, कृषि प्रधान पूर्वांचल के चंदौली, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, सोनभद्र, जौनपुर, मौ मऊ, मिर्जापुर और आजमगढ़ में साल दर साल दलहनी फसलों में अरहर की बुआई का रकबा घटता ही जा रहा है। किसान अरहर की खेती से तौबा करते जा रहे हैं।

बारिश और बाद में उकठा रोग से नुकसान के बाद खेत में बची गिनती की अरहर की फसल।

साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी का दावा हवा-हवाई?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में कहा था कि वर्ष 2022 में जब देश आज़ादी का 75वां समारोह मनाएगा, तब किसानों की आय दोगुनी हो चुकी होगी। इधर कुछ ही महीनों में वर्ष 2022 विदा लेने वाला है। एक इंटरव्यू में किसानों की आय के सवाल पर बोलते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि "किसानों की आमदनी को कई गुणा वृद्दि की है। एक सामान्य किसान की आमदनी भी दोगुनी हुई है।'

जो प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था यूपी के अंदर हुआ है? के जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता चौधरी राजेंद्र कहते हैं कि 'पूर्वांचल के गिनती के किसानों को छोड़कर, आज भी अधिकतर और बहुसंख्यक किसान सभी सफलों को अपने खून-पसीने से सींचने के बाद मुनाफा पाने में असफल हो रहे हैं। उनकी लागत और श्रम का मूल्य ही नहीं निकल पा रहा है। मौजूदा दौर में छात्र, नौजवान, महिला स्वास्थ्य के मुद्दे के साथ किसान सबसे अधिक उपेक्षित हैं। इनके संतुलित और टिकाऊ विकास के लिए बनाई गई योजनाएं कृषि अधिकारियों के फाइल से जमीन पर उतरती नहीं दिख रही हैं।

अधिकारी कर रहे महज खानापूर्ति, बिचौलिया कमा रहे मोटा मुनाफा

चौधरी आगे बताते हैं कि 'अरहर की खेती आने वाले दिनों में और कम होने वाली है। भूमाफिया द्वारा काटे जा रहे जंगल और खेती-मैदानी इलाकों में बढ़ता नीलगाय और मवेशियों के दखल से फसल को पकने के बाद खलिहान तक पहुँचाना मुश्किल हो गया है। बाजार और कार्पोरेट हावी होता जा रहा हो। इधर किसानों की लागत ही नहीं निकल पा रही है, वहीं बाजार माफिया दाल और अरहर का स्टॉक जमा कर बढ़े दामों पर मुनाफा कूटने में लगे हैं। बेशक सरकार योजनाएं बनाये, लेकिन उनके जमीं पर उतारने के लिए लगे विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यों की भी मॉनिटर करे ताकि इनके द्वारा महज खानापूर्ति नहीं किया जाए। हकीकत में किसानों को लाभ मिले और सही मायने में उनकी आमदनी दुगुनी हो। सिर्फ मंचों से कह देने से आमदनी दुगनी नहीं हो जाएगी।'

अरहर के पौधें की फुनगी में लगे कीड़ों को दिखाते किसान घुरहू प्रसाद

प्रशिक्षण के अभाव में लकीर के फकीर बने हुए हैं किसान

बरहनी ब्लॉक के किसान नेता रामविलास मौर्य कहते हैं, खेती-किसानी, इंडिया में सबसे महंगा व्यवसाय है। जिसकी गारंटी न तो सरकार लेती है और न ही हाल के कुछ वर्षों से मौसम साथ दे रहा है। दिनों दिन महंगे होते खाद-बीज और जुताई-बोआई के बाद फसल लागत निकलना भी दुश्वार हो गया है। देश के आजादी के सात दशक गुजर गए, लेकिन धान-गेहूं को छोड़कर किसी भी फसल की वैज्ञानिक तरीके से पैदावार की ट्रेनिंग हमारे गांव के किसानों को नहीं दी जा सकी है। किसान लकीर के फकीर बने हुए हैं।

रामविलास मौर्य आगे कहते हैं, अप्रशिक्षित किसान अधिक श्रम, लागत, महंगे खाद-बीज और वैज्ञानिक प्रबंध के अभाव में बेहतर मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। मैंने एक बीघे में अरहर की बुआई की थी। मौसम की बदली चाल, नीलगाय, उकठा रोग, पौधे के फुनगी कीड़े, फलियों में कीड़े लगाने के बाद भी दवा-कीटनाशक प्रबंध के बाद भी फसल को नहीं बचा सका। रुपए का नुकसान और श्रम की बर्बादी होने पर अरहर फसल की बुआई ही मैंने छोड़ दी है।

यही हाल कमोबेश किसान कुबेरनाथ, रणजीत, ऋषिनारायण, विकास, सुनील, बजरंगी, मुन्ना, राजनारायण, अमरनाथ और बजरंगी की है।

आजमगढ़ में खेत से खलिहान तक नहीं पहुंच पा रही पसीने की कमाई

आजमगढ़ के युवा किसान देवेश पांडेय भी छुट्टा पशुओं और सूखा रोग से परेशान हैं। वह कहते हैं, 'अरहर की खेती करने में कई चुनौतियां है। पहला-सूखा रोग और कुहासा से फसल बचाना मुश्किल होता जा रहा है, और उत्पादन भी साल दर साल गिरता ही जा रहा है। नीलगाय और छुट्टा मवेशियों ने आतंक ही मचा रखा है। पीएम मोदी ने दावा किया था साल 2022 तक किसानों की आया दोगुनी हो जाएगी। मोदी के दावों की जमीन पर हकीकत यह है कि वर्तमान समय में किसानों की और आय घट गई है। लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। क्षेत्र के किसान अरहर की खेती करने से बचने लगे हैं। रात में छुट्टा पशुओं का झुंड बाड़े को तोड़ते हुए अंदर घुस कर फसल और अन्य दलहनी, तिलहनी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। किसान बार-बार छुट्टा पशुओं के वैकल्पिक व्यवस्था की मांग कर रहे हैं लेकिन हालात ये हैं किसानों को छुट्टा पशुओं से निजात नहीं मिल पा रही है। शासन-प्रशासन सिर्फ बड़े-बड़े दावे कर रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। किसानों का कहना है कि क्षेत्र से छुट्टा पशुओं से निजात दिलाई जाए अन्यथा किसान बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।'

बलिया में घटता जा रहा खेती का रकबा, मऊ में कीटों का हमला

बलिया में बाढ़ की वजह से खरीफ की अन्य फसलों के साथ अरहर की फसल भी डूबकर नष्ट हो गई है। जिले में लगभग 1.40 लाख हेक्टेयर में खरीफ रकबा है। कई हेक्टेयर खेत गंगा और सरयू के कटान के कारण कम हो गए हैं। अरहर की खेती तकरीबन 7500 हेक्टेयर में होनी है, और उत्पादन लक्ष्य 8000 हेक्टेयर रखा गया है। मऊ में जिले में लगभग पांच-पांच हजार हेक्टेयर दलहनी तथा तिलहनी फसलों की बुआई की गई है।

आसमान में छा रहे बादल से दलहनी, तिलहनी फसलों में सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की आशंका है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान की वृद्घि से दलहनी, तिलहनी फसलों पर कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है। बचाव के लिए कीटनाशक या जैविक छिड़काव तत्काल करने से नुकसान से बचा जा सकता है।

गाजीपुर व सोनभद्र में आवारा पशुओं की चराई और जौनपुर में उकठा बड़ी परेशानी

सोनभद्र में अरहर के लिए लगभग 15000 हेक्टेयर में खेती की जा रही है। यहां जंगली जानवरों में नीलगाय, भैंसा और आवारा पशुओं की चराई से अरहर लगाने वाले किसान परेशान हैं। जौनपुर में अरहर का आच्छादन लक्ष्य लगभग 14000 हेक्टेयर से घटाकर 12000 हेक्टेयर कर दिया गया है। वहीं 965 हेक्टेयर से कम कर 805 हेक्टेयर में उर्द, मूंग का लक्ष्य 510 हेक्टेयर के कम कर महज एक हेक्टेयर कर दिया गया है। किसानों के अनुसार क्षेत्र में अरहर की फसल इन दिनों उकठा रोग की चपेट में है।

पूर्ण विकसित पौधे इस बीमारी के चलते खेत में सूख रहे हैं। मेहनत से तैयार की गई फसल की बर्बादी देख किसानों में निराशा है। गाजीपुर कृषि विभाग के अनुसार जिले के हर तहसील क्षेत्र में दलहन और तिलहन की बड़ी मात्रा में खेती की जाती है। आंकड़ों में लगभग सरसों 400 हेक्टेयर, चना 4500 हेक्टेयर, मटर 3900 हेक्टेयर तथा मसूर की खेती 13000 हेक्टेयर में की जाती है। अगैती दलहन की फसलों पर लगे फूल बरसात के कारण गिर जाते हैं। ऐसे में नए फूल आने में समय लगता है और यह सीधे तौर पर फसल की पैदावार को प्रभावित करता है।

पूर्वांचल के जनपद में नदी की तलहटी में विचरण करता नीलगायों का झुंड

वाराणसी में लक्ष्य पूरा, लेकिन किसानों की चुनौतियां बरकरार

वाराणसी में जिला कृषि अधिकारी कार्यालय से प्राप्त आंकड़े के अनुसार खरीफ वर्ष 2022 में 4245 हेक्टेयर में अरहर की बुआई का लक्ष्य रखा गया था। इसमें 4799 हेक्टेयर में अरहर की बुआई करा ली गई गई। दलहनी फसलों के घटते रकबे पर जिला कृषि अधिकारी संगम सिंह मौर्य जनज्वार को बताते हैं कि ' इंसानों के खानपान में प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत दाल ही होती है। दलहनी फसलों की बुआई से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।

बनारस में अब शहरीकरण का विस्तार होता जा रहा है। परिवारों के बंटवारे से जोत का रकबा घटता ही जा रहा है। घड़रोज की रोकथाम के लिए किसान "जीवामृत" (गुड़, गोबर, बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी आदि घोल बनाकर) का छिड़काव करें। अरहर की फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए किसान बीज और खेत का शोधन करें। ट्राइकोडर्मा को 75 फीसदी की छूट पर दिया जा रहा है। बुआई के समय ट्राइकोडर्मा को मिट्टी में मिलाकर खेतों की जुताई करें।

अरहर की दाल शाकाहारी लोगों का सुपर फूड : डॉ स्वेता वर्मा

बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की डॉ स्वेता वर्मा बताती हैं, अरहर की दाल में प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है। इसे प्रोटीन का बेहतर स्रोत इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि यह पाचन तंत्र को भी कोई नुकसान नहीं करती और हर मौसम में सुपाच्य होती है। प्रोटीन के अन्य स्रोतों में कुछ न कुछ परहेज हो सकता है लेकिन अरहर की दाल एक ऐसा स्रोत है जिसका उपयोग 12 महीने सुबह और शाम किया जा सकता है।

बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों के साथ महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान ज्यादा पोषक तत्वों की जरूरत होती है और वहीं हल्के व सुपाच्य भोजन होना चाहिए। इस पैमाने पर यह सबसे बेहतर विकल्प होता है। फोलिक एसिड से भरपूर यह अरहर की दाल कार्बोहाइड्रेट्स का भी एक अच्छा स्रोत होता है। फाइबर की मात्रा होने की वजह से गैस की समस्या भी नहीं होती है और पाचन तंत्र सही से काम करता रहता है। शाकाहारी लोगों का यह एक तरह से सूपर फूड कहा जा सकता है।

Next Story

विविध