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हाशिये का समाज

नाबालिग दलित बच्ची के दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराने पर 250 दलितों के पूर्ण सामाजिक ​बहिष्कार पर भड़के चंद्रशेखर 'दलित होना ही सबसे बड़ा गुनाह'

Janjwar Desk
15 Sept 2024 2:03 PM IST
नाबालिग दलित बच्ची के दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराने पर 250 दलितों के पूर्ण सामाजिक ​बहिष्कार पर भड़के चंद्रशेखर दलित होना ही सबसे बड़ा गुनाह
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कर्नाटक के यादगीर जनपद के बप्पारागा गांव में सवर्ण युवा के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज कराने पर उच्च जाति ने किया 250 दलितों का पूर्ण सामाजिक बहिष्कार...

Karnataka Dalits News : सोशल मीडिया पर दलित उत्पीड़न से संबंधित तमाम खबरें छायी रहती हैं, जिससे प​ता चलता है कि समाज के आगे बढ़ने के चाहे जितने दावे किये जायें, मगर आज भी मूल्य मान्यताओं और जात-पात के मामले में भाजपा शासन में देश और भी ज्यादा कट्टर हुआ है। अब दलित उत्पीड़न का एक मामला कर्नाटक से सामने आया है, जिसने देश को शर्मसार करने का काम किया है।

मीडिया में आ रही जानकारी के मुताबिक उत्तर कर्नाटक के यादगीर जिले के बप्पारागा गांव में 50 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है, ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि ऊंची जाति के लड़के द्वारा नाबालिग दलित बच्ची के उत्पीड़न के खिलाफ परिजनों ने मुकदमा दर्ज करवा दिया गया था। जानकारी के मुताबिक उच्च जाति के युवा द्वारा यौन उत्पीड़न किये जाने के बाद नाबालिग दलित लड़की के माता-पिता ने 23 वर्षीय उच्च जाति के लड़के के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराय था। केस दर्ज कराने के बाद पहले तो पीड़िता के परिजनों पर केस वापस लेने का दबाव डाला गया, जब उन्होंने केस वापस लेने से मना किया तो इलाके के सभी दलितों का बायकॉट कर दिया गया।

उच्च जाति द्वारा बहिष्कार की घोषणा किये जाने के बाद बप्पारागा गांव की दो कॉलोनियों में रहने वाले लगभग 250 दलितों को किराने और स्टेशनरी की दुकानों, मंदिरों, सैलून और सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोक तथाक​थित उच्च वर्ग द्वारा लगा दी गयी। दलित समुदाय के बच्चों को स्टेशनरी की दुकानों से पेन—नोटबुक जैसे मामूली सामान लेने से महरूम कर दिया गया।

यह घटना सामने आने के बाद दलित सांसद और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद अपने एक्स् एकाउंट पर लिखते हैं, 'कर्नाटक के जिला यादगीर में बप्पारागा गांव में दलित नाबालिग लड़की के यौन शोषण की शिकायत पुलिस में करने पर तथाकथित सवर्णों द्वारा गांव के 250 दलितों के बहिष्कार का ऐलान और परिणामस्वरूप दलितों पर मंदिरों, दुकानों और सार्वजनिक स्थानों के प्रतिबंध लगने से, उनके लिए आवश्यक सेवाओं (जैसे बाल काटना) सहित राशन लेना भी दुश्वार हो गया है। ये अमानवीयता की चरम अवस्था है।'

चंद्रशेखर आजाद आगे चिंता व्यक्त करते हुए लिखते हैं, 'घटना सोचने पर मजबूर करती हैं कि देश की आजादी के 77 साल बाद भी दलितों के लिए जघन्य अपराधों में भी न्याय पाना कितना कठिन है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि दलित होना ही गुनाह है। सम्मानपूर्वक जीवन जीना भी संघर्ष हैं। मैं कर्नाटक के मुख्यमंत्री से मामले को संज्ञान में लेकर कठोर कार्यवाही करने, दलित परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने और उन्हें किसी भी प्रकार की कमी न होने देने की मांग करता हूं।'

मीडिया में प्रकाशित खबरों के मुताबिक अगस्त महीने की शुरुआत में दलित जाति से ताल्लुक रखने वाली नाबालिग लड़की ने अपने माता-पिता को बताया कि वो पांच महीने के गर्भ से है और यह गर्भ सवर्ण लड़के द्वारा उसके साथ दुष्कर्म के बाद ठहरा है। यह बात सामने आने के बाद जब पीड़ित लड़की के परिजनों ने आरोपी सवर्ण युवा के परिवार से बात की, तो उन्होंने लड़की के परिवार के आरोपों को एक सिरे से खारिज कर​ दिया, जिसके बाद पीड़िता के माता-पिता ने 12 अगस्त को पोक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा दिया। यादगीर जिला बेंगलुरु से लगभग 500 किमी दूर है।

जानकारी के मुताबिक जब इस मामले में परिजनों ने पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया तो आरोपी युवा के पजिनों ने पीड़िता के माता-पिता को समझौते के लिए बुलाया, मगर उन्होंने कहा कि वो कोई समझौता नहीं करना चाहते, न्याय चाहते हैं जिसके बाद 13 अगस्त को आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

आरोपी सवर्ण युवा की गिरफ्तारी से नाराज होकर गांव की ऊंची जातियों ने गांव की दो कॉलोनियों में रहने वाले लगभग 250 दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। यानी उन्हें किराने और स्टेशनरी की दुकानों, मंदिरों, सैलून और सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच से वंचित कर दिया गया। बहिष्कार के आह्वान का एक कथित ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि वाकई दलितों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है।

हालांकि इस मामले में यादगीर पुलिस का कहना है कि इस तरह की कोई क्लिप सामने नहीं आया है। एसपी संगीता के मुताबिक पुलिस वर्तमान में शांति स्थापित करने के लिए गांव में तैनात है। हालांकि उन्होंने गांव के बुजुर्गों से बहिष्कार की अमानवीय प्रथाओं से दूर रहने का आग्रह भी किया है।

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