Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

मेघालय के ग्रामीणों ने कहा, अगर सड़क नहीं बना सकती मोदी सरकार तो बांग्लादेश को दे दो हमारे गांव

Janjwar Desk
3 July 2020 3:41 PM IST
मेघालय के ग्रामीणों ने कहा, अगर सड़क नहीं बना सकती मोदी सरकार तो बांग्लादेश को दे दो हमारे गांव
x
चारों गांव पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जो मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग 200 किमी दूर स्थित है...

शिलोंग। भारत-चीन सीमा पर खूनी झड़पों के बाद अब मेघालय में भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसे हुआ चार आदिवासी गांवों ने कहा है कि अगर सरकार उनके लिए एक ऑल वेदर रोड बनाने के लिए तैयार नहीं है तो उन्हें बांग्लादेश को दे दे।नई दिल्ली और शिलांग दोनों जगहों पर सत्ता का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिंगारिया, हिरोई, लाहेलिन और लेजरी गाँवों के आदिवासी कई वर्षों से खंभे से हटकर पोस्टिंग कर रहे हैं लेकिन उनकी समस्याओं को नहीं सुना जा रहा है।

दरअसल उचित सड़क, मोबाइल कनेक्टिविटी और उचित चिकित्सा सुविधाओं की गैरमौजूदगी ने इन गांवों में रहने वाले 5,000 से अधिक लोगों के जीवन को अपंग बना दिया है। यह के निवासी एक ऐसे मोड़ पर आ गए हैं जहां उन्हें अपने अस्तित्व के लिए बांग्लादेश पर निर्भर रहना पड़ रहा है क्योंकि सरकार इन सीमावर्ती गांवों में कम से कम दिलचस्पी रखती है।

'द वायर' की रिपोर्ट के मुताबिक, इन चार चार गांवों के प्रवक्ता किंजिमोन आमसे ने कहा, 'प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि सीमा की आबादी का जीवन सरकार के लिए बिल्कुल भी मायने नहीं रखता है और हमें सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि सरकार वास्तव में हमें भारतीय मानती है और हमारी समस्याओं के बारे में गंभीर है, तो सरकार को तुरंत सड़क की समस्या का समाधान करना चाहिए और समस्या को कम करने के लिए अंतरिम उपाय किए जाने चाहिए। वरना लोगों के पास एक्सट्रीम कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

चारों गांव पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जो मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग 200 किमी दूर स्थित है। आमसे ने कहा, 'गांवों में लोग 'निराश' और 'थके' हुए हैं। यह देखते हुए कि सरकार हमारे लिए सड़क बनाने पर गंभीर नहीं है, आदिवासियों ने हाल ही में एक बैठक की थी और लोगों की दुर्दशा और उनके आगे के रास्ते पर चर्चा की थी।

उन्होंने कहा, 'इस बैठक में गांव डोरबार (परिषद) और 5,000 से अधिक आबादी ने फैसला किया है कि अगर सरकार हमारे लिए सड़क का निर्माण करने के लिए तैयार नहीं है तो चारों गांवो और इसकी आबादी को बांग्लादेश को सौंप दे।' उन्होंने आगे कहा, 'लोगों ने यह भी तय किया है कि भारत सरकार और मेघालय की सरकार हमारी समस्याओं को समझने में विफल रही है, इसलिए चारों गांव बांग्लादेश सरकार से सड़क निर्माण के लिए अनुरोध करेंगे।'

आमसे ने कहा, 'दुनिया पहली बार लॉकडाउन का सामना कर रही है लेकिन उपर्युक्त सीमावर्ती गांव अपने अस्तित्व के बाद से ही लॉकडाउन में हैं चूंकि वे सड़क और संचार से कटे हुए हैं और कोई भी नहीं जानता कि इन गांवों में क्या चल रहा है।'

राइम्बाई-बटावा-बोरखत-सोनपुर रोड की 'दयनीय और विकट स्थिति' पर प्रकाश डालते हुए प्रवक्ता ने कहा, 'ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां मरीजों ने अपनी जान तक गंवा दी चूंकि वे समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए। ऐसी भी खबरें हैं कि लोग चिकित्सा उपचार के लिए बांग्लादेश पहुंचने के लिए सीमा पार करते हैं। गांवों में किसान सबसे ज्यादा पीड़ित हैं क्योंकि उन्हें उत्पादों को नजदीकी बाजार तक पहुंचाने के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है और कभी-कभी सड़क की खराब स्थिति के कारण उन्हें अपने उत्पादों को बांग्लादेशी व्यापारियों को बहुत मामूली दर पर बेचना पड़ता है।'

उन्होंने कहा, 'गांवों में लोगों की लगभग सभी समस्याएं सड़क की खराब स्थिति से जुड़ी हुई हैं और हम मानते हैं कि जब तक सड़क की समस्या हल नहीं होगी, गांवों में कोई विकास नहीं हो सकता है।' चार गांवों के निवासियों ने उनके लिए सड़क बनाने के लिए सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए खम्बों को स्थानांतरित कर दिया है।

वह आगे कहते हैं, 'सरकार की कम से कम रुचि है। हम उपायुक्त से लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक सभी सरकारी पदाधिकारियों को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन हम सभी को झूठे वादे मिले। हम प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, नीति आयोग, वित्त मंत्रालय, उत्तर पूर्वी परिषद और केंद्र सरकार के कई अन्य कार्यालयों को हस्तक्षेप के लिए लिखते रहे हैं लेकिन वे हमारी जरूरतों को देखने तक के लिए भी इच्छुक नहीं हैं।'

आमसे ने आगे बताया, 'मेघालय के उच्च न्यायालय और भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा मामला उठाए जाने के बाद भी दोनों स्तरों पर सरकारें लोगों की जरूरतों के प्रति अनिच्छुक रही हैं। सड़क के निर्माण के लिए 123 करोड़ रुपये का प्रस्ताव अप्रैल 2019 से उत्तर पूर्वी क्षेत्र का विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region) के पास पड़ा है। आज तक मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर चर्चा भी नहीं की है, इसलिए इसे मंजूरी नहीं दी गई है।

अमसे ने कहा, 'हम प्रस्ताव के त्वरित अनुमोदन (Approvel) के लिए सभी को लिख रहे हैं, लेकिन फिर से कोई प्रतिक्रिया नहीं है और इस तरह लोगों की पीड़ा और दर्द जारी है। जब हम मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से मिले थे, उन्होंने आश्वासन दिया था कि परियोजना को मंजूरी दी जाएगी लेकिन सभी आश्वासनों का कोई परिणाम नहीं दिखा है। यह केवल ऐसा लगता है कि राज्य सरकार सड़क को लेकर गंभीर नहीं है और मामले को विचार के लिए उत्तर पूर्वी क्षेत्र का विकास मंत्रालय के साथ नहीं उठाया है।

उन्होंने आगे बताया, '5,000 से अधिक आबादी के प्रति सरकार के सौतेले व्यवहार से सीमावर्ती गांवों के लोग बहुत नाराज और निराश हैं। सरकार लोगों की समस्याओं और पीड़ा को समझने में विफल रही है। एक उचित सड़क की गैरमौजूदगी ने वास्तव में लोगों के जीवन और मूल मानव अधिकारों का उल्लंघन किया है। सड़क की वर्तमान स्थिति सभी समस्याओं का मूल कारण है और जब तक सड़क का निर्माण नहीं किया जाता है तब तक लोगों का जीवन पशु के अस्तित्व के समान है। लोगों को सिर्फ चुनावों के दौरान याद किया जाता है, उसके बाद नहीं।

Next Story

विविध