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छत्तीसगढ के जेल में नक्सल हमले के आरोप में बंद हैं 120 आदिवासी, 3 साल बाद भी नहीं शुरू हुआ केस

Janjwar Desk
23 Sep 2020 4:13 AM GMT
छत्तीसगढ के जेल में नक्सल हमले के आरोप में बंद हैं 120 आदिवासी,  3 साल बाद भी नहीं शुरू हुआ केस
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बुर्कापाल गांव के अधिकांश पुरुषों के जेल में होने की वजह से गांव में सिर्फ महिलाएं बची हैं। फोटो : साभार हिंदुस्तान टाइम्स।

पुलिस ने एक गांव के सभी पुरुष सदस्यों को जेल में डाल दिया है। साथ ही सात किशोरों को भी गिरफ्तार किया गया है। पुलिस बल की कमी के चलते इन्हें एक साथ अदालत में पेश नहीं किया जा रहा है...

जनज्वार। छत्तीसगढ के बस्तर इलाके के सुकमा जिले में हुए एक नक्सल हमले को लेकर 120 आदिवासी तीन साल से जेल में बंद हैं। पुलिस को नक्सल हमले में उनकी संलिप्तता का संदेह है। पर, 2017 के नक्सल हमले के आरोप में जेल में बंद इन आदिवासियों पर अबतक केस की भी शुरुआत नहीं हो पायी है। इससे इन पर लगे आरोप किसी परिणाम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और न आरोप साबित हो पा रहे हैं और न ही ये बेगुनाह घोषित कर जेल से बाहर किए जा रहे हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर के सुकमा जिले के बुर्कापाल नामक जगह पर 2017 में नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे। यह बस्तर इलाके में सीआरपीएफ पर दूसरा बड़ा हमला था।

अप्रैल 2017 में बुर्कापाल गांव से मात्र 100 मीटर की दूरी पर माओवादियों ने सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन को निशाना बनाया था, जिसमें एक इंसपेक्टर रैंक के अधिकारी सहित 25 जवान शहीद हुए थे।

इस मामले में चिंतागुुफा थाने में केस दर्ज कर आसपास के छह गांवों के 120 आदिवासियों को आरोपी बनाया गया। इनमें किशोर उम्र के लड़के भी भी शामिल हैं।

बुर्कापाल गांव के अलावा गोंडापल्ली, चिंतागुफा, टालमेटला, कोरईगुंडम और टोंगुडा गांव के लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया गया। इन सबके खिलाफ यूएपीए की धाराएं लगायी गईं। 2010 में ही बस्तर क्षेत्र में सीआरपीएफ पर हुए नक्सल हमले में 76 लोगों की जान जाने के बाद इसे दूसरा बड़ा नक्सल हमला माना जाता है।

गिरफ्तार लोगों के खिलाफ आतंक-नक्सल रोधी धाराएं लगायी गईं हैं। और, इस वजह से ये 120 आदिवासी तीन साल से जेल में बंद हैं, लेकिन इतने सालों बाद भी केस शुरू नहीं होने से उनकी रिहाई की कोई उम्मीद नहीं बंध रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि इस मामले में कुछ दिनों के बाद ही ग्रामीणों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें बुर्कापाल गांव के सरपंच के भाई भी शामिल हैं। गांव के सभी पुरुषों व कुछ किशोरों का नाम इस केस में शामिल किया गया। सरपंच का नाम सिर्फ इस वजह से बच गया कि वे उस वक्त आंध्रप्रदेश के एक किराना दुकान में काम कर रहे थे और वहां मौजूद नहीं थे।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि उनका इस हमले से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सब पर नक्सल रोधी धाराएं लगायी गईं हैं और उन्हें गिरफ्तार किया गया है।

बुर्कापाल गांव के सरपंच मुचकी हांदा के अनुसार, हमले के कुछ दिन बाद ही उनके गांव के 37 लोगों को यूएपी के तहत गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। सरपंच का कहना है कि उस वक्त गांव में जो भी पुरुष मौजूद था, सबको गिरफ्तार कर लिया गया। 30 वर्षीय सरपंच मुचुकी हांदा के छोटे भाई भी जेल में हैं। वे कहते हैं कि उनके गांव के सात नाबालिग को भी इस मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और वे सिर्फ इस वजह से बच गए कि उस समय वे आंध्रप्रदेश में एक दुकान में नौकरी कर रहे थे।

जिन सीआरपीएफ जवानों पर हमला किया गया था वे उस वक्त वहां हो रहे एक रोड निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए तैनात थे।

इस मामले में बस्तर में काम करने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता व इन आदिवासियों की वकील बेला भाटिया का कहना है कि इनके मामले की सुनवाई इसलिए नहीं शुरू हुई है कि पुलिस इतनी बड़ी संख्या में इन्हें अदालत में पेश करने में असमर्थ है।

पुलिस का कहना है कि उसके पास इतनी संख्या में सिपाही नहीं हैं कि इन्हें एक साथ पेश कर सकें, जबकि अदालत छोटे समूहों में इनके मामले की सुनवाई को तैयार नहीं है।

बेला भाटिया का यह भी आरोप है कि इनके खिलाफ बिना जरूरी जांच किए और बिना पर्याप्त सबूत के इन्हें गिरफ्तार किया गया है। बेला कहती हैं कि लाॅकडाउन के इस मुश्किल दौर में उन्हें जमानत दी जानी चाहिए और उसके बाद अदालत में नियमित सुनवाई होनी चाहिए। ये लोग जगदलपुर के जेल में रखे गए हैं।

बस्तर रेंज के आइजी सुंदराज मामले की सुनवाई में देरी के आरोपों को खारिज करते हुए इसकी वजह कोरोना महामारी व लाॅकडाउन को बताते हैं अन्यथा पुलिस इनके मामले की तेज सुनवाई की दिशा में प्रयास करेगी।

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