मोरबी हादसे में 135 लोगों की जान गई और भाजपा सरकार ठेका लेने वाली कंपनी से दिखाती रही उदारता - हाईकोर्ट
मोरबी हादसे में 135 लोगों की जान गई और भाजपा सरकार ठेका लेने वाली कंपनी से दिखाती रही उदारता - हाईकोर्ट
Morbi Bridge Case: 30 अक्टूबर के दिन गुजरात के जिला मोरबी (Morbi Bridge Gujrat) में झूलता पुल गिरने के हादसे में करीब 135 लोगों की मृत्यु हुई थी। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में स्वत: संज्ञान लेकर पिटीशन दायर की गई थी, जिसकी सुनवाई में चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने गुजरात सरकार की बखिया उधेड़ दी। हाईकोर्ट ने पूछा कि, 'क्यो इस पुल की मरम्मत के लिए टेंडर प्रक्रिया नहीं की गई? क्यों बिडिंग के लिए कंपनियों को आमंत्रित नहीं किया गया?
मामले पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या गुजरात सरकार (Gujrat Govrnment) इतनी उदार है, जो बिना टेंडर के ही इतने बड़े ब्रिज का काम सीधे एक कंपनी को बख्शीश के तौर पर दे दिया। मोरबी नगरपालिका एक सरकारी संस्थान है मोरबी नगर पालिका ने इस मामले में गंभीर चूक की है, क्या गुजरात म्युनिसिपल एक्ट 1963 का पालन किया है? 135 लोगों की मौत बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इतना महत्वपूर्ण काम होने के बावजूद सिर्फ 1.50 पेज का ही एग्रीमेंट किया गया। फिटनेस सर्टिफिकेट देने की जिम्मेदारी किसकी थी? क्या दुर्घटना के बाद मोरबी नगरपालिका ने गुजरात म्यूनिसिपल एक्ट 1963 के मुताबिक कार्यवाही की है।
ऐसे कई सवाल गुजरात के मुख्य सचिव को गुजरात हाईकोर्ट (Gujrat High court) की तरफ से पूछे गए, जिनमें 2017 में कॉन्ट्रेक्ट पूरा हो गया था उसके बाद में टेंडर रिन्यू क्यों नहीं किया गया? यह सारी नगरपालिका की जिम्मेदारी बनती है तो उन्होंने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की? जबकि ओरेवा कंपनी ने अपने अंडर में जिन को ठेके दिए थे उनमें से 4 के पास टेक्निकल डिग्री भी नहीं थी और सिर्फ 29 लाख रुपए का फेब्रिकेशन का टेंडर दिया गया था। गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में 6 सरकारी विभागों से भी जवाब तलब किया है इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई लेकिन किसी भी अधिकारी को जिम्मेदार नहीं माना गया।
हादसे के बाद सिर्फ ओरेवा कंपनी (Oreva Company) के 9 कर्मचारियों को पकड़ा गया लेकिन ऊपर के लेवल के अधिकारी और मैनेजमेंट के खिलाफ क्या हुआ ऐसे कई सवाल गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछे हैं। हाईकोर्ट ने यह तक कह दिया कि मोरबी नगरपालिका को क्यों ना सुपर सीड किया जाए, इतनी कड़ी फटकार के बाद भी शायद गुजरात सरकार के कान जूं तक नहीं रेंगी होगी।
इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी और सीनियर एडवोकेट मनीषा लवकुमार शाह प्रस्तुत हुए और उन्होंने बचाव की कामगिरी बिजली की रफ्तार से करने का दावा किया लेकिन मोरबी के लोग यह बताते हैं कि सरकारी बचाव की कामगिरी सिर्फ शव उठाने तक ही सीमित थी और हादसे के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने बड़ी मात्रा में बचाव कार्य किया है। जबकि सही समय पर सरकारी अमला नदारद रहा था। गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, मोरबी नगरपालिका, शहरी विकास विभाग मुख्य सचिव और मानव अधिकार पंच के समेत कईयों को पक्षकार बनाया है। एडवोकेट जनरल का यह बचाव था कि बिजली की रफ्तार से बचाव कार्य किया गया लेकिन अदालत का यह मानना था कि यह घटना दिल दहलाने वाली थी।
तत्कालीन मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने बताया था कि जुलता पुल जर्जर हालत में था, इसलिए जनता के लिए बंद कर दिया गया। लेकिन ओरेवा कंपनी ने मोरबी नगर पालिका को बताए बिना यह ब्रिज लोगों के लिए खोल दिया। जबकि झूलता पुल का परीक्षण करके फिटनेस सर्टिफिकेट देने का काम मोरबी नगरपालिका का था, उन्होंने कोताही बरती इसलिए मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला को सस्पेंड कर दिया गया। परंतु FIR में एक भी अधिकारी को नामजद नहीं किया गया। यहां तक की इस पुल का रिनोवेशन करने वाली कंपनी का नाम और उनके मालिकों का नाम भी FIR में दर्ज नहीं किया गया, सिर्फ छोटे-मोटे 9 कर्मचारियों को पकड़ा गया है।
हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि 9 कर्मचारी के ऊपर लेवल के अधिकारियों का क्या जिस कंपनी ने काम ले रखा था, उसके मैनेजमेंट का क्या? इस मामले में अभी तक एक भी गिरफ्तारी ऊपरी स्तर के लोगों की नहीं हुई है। सिर्फ और सिर्फ छोटी मछलियों को पकड़कर खानापूर्ति कर दी गई है। गुजरात हाईकोर्ट के इस रुख के कारण गुजरात सरकार को अदालत में जवाब देना भारी पड़ रहा है। गुजरात हाई कोर्ट द्वारा की गई इन टिप्पणियों का जवाब सुनवाई की अगली तारीख में देना होगा। तब पता चलेगा कि इस मामले में आगे क्या कार्यवाही होगी।