Agnipath Scheme Protest : "बिहार सुलग रहा और सिस्टम नींद में है", ये अग्निपथ का विरोध है या इसके जटिल राजनीतिक मायने हैं?
Agnipath Scheme Protest Live : उपद्रवियों ने लखीसराय में विक्रमशिला एक्सप्रेस की बोगियां फूंकी, समस्तीपुर में बिहार संपर्क क्रांति को आग के हवाले किया
कुमार विवेक की टिप्पणी
Agnipath Scheme Protest : बिहार की सड़कों पर पिछले दो दिनों से तांडव चल रहा है। उपद्रवी कहीं ट्रेन जला रहें हैं, कहीं यात्रियों के साथ मारपीट कर रहे हैं तो कहीं-कहीं लूटपाट भी करने से नहीं चूक रहे हैं। यह सब कुछ बिना रोक-टोक के पिछले 36 घंटों से जारी है। इन हिंसक वारदातों को केन्द्र की अग्निपथ स्क्रीम के विरोध के नाम पर अंजाम दिया जा रहा है। जो तस्वीरें सामने आ रही हैं वे किसी आंदोलन की तस्वीरें ना होकर अराजकता की स्थिति बयां कर रही हैं। बीते 36 से 48 घंटों में 13 से अधिक पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनों को उपद्रवियों ने फूंक दिया है, जिस कारण 35 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है। इस उपद्रव के कारण 200 से अधिक ट्रेनों का परिचालन भी प्रभावित हुआ है। स्टेशन परिसरों पर मौजूद दुकानों में लूटपाट की भी खबरें आ रही हैं। बिहार के लगभग हर जिले की सड़क का अग्निपथ स्क्रीम की घोषणा के बाद से यही हाल है। हर शहर आग की लपटों और जलते टायरों की बदबू से पटा पड़ा है। सुपौल, लखीसराय, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, सासाराम, गया चाहे जिस जिले का नाम ले लीजिए अग्निपथ स्कीम के विरोध की आग में कुछ ना कुछ हर जिले में सुलगता दिखा, फिर चाहे वह ट्रेन की बोगी ही क्यों ना हो। लखीसराय में तो यात्रियों को बिक्रमशिला एक्सप्रेस से उतारकर ट्रेन की बोगियां फूंक दी गयी। यात्री इधर-उधर भागते नजर आए।
बिहार में चल रहे अराजकता की इंतहा तो तब हो गयी जब बेतिया में बिहार की उपमुख्यमंत्री रेणु देवी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल के घर पर भी उपद्रवियों ने जमकर पत्थरबाजी की। प्रशासन हर जगह मानों मूकदर्शक बना रहा। आश्चर्य की बात यह है कि इस पूरी अफरातफरी के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुशासन कहीं नजर नहीं आ रहा है। उपद्रव के जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं उनमें किसी में भी यह नहीं दिख रहा है कि पुलिस कहीं स्थिति को नियंत्रित करने की स्थिति में है।
अग्निपथ के विरोध में शुरू हुई हिंसा की यह आग अब पटना के सड़कों तक पहुंच गयी है। पटना में उपद्रवियों के डर से लोगों को घर से निकलने में डर रहे हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि अराजकता की घटनाओं के बीच प्रशासनिक अमला और नेता गायब हैं। बिहार की सड़कों पर कानून व्यवस्था के नाम पर कुछ पुलिसकर्मी डंडे भांजते हुए नजर आ रहे हैं, पर उपद्रवियों के हुजूम को नियंत्रित करना जैसे उनके बस में ही नहीं है। इन तस्वीरों को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें किसी ने कह दिया हो, बस तमाशा देखो, जो हो रहा है होने दो। ना तो किसी नेता ने, ना ही किसी प्रशासनिक अधिकारी ने युवाओं से शांत रहने की अपील की है, यह हैरान करने वाला है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो अक्सर ऐसे मुद्दों पर मुखर नजर आते हैं वे वर्तमान में सड़कों पर जारी इस अराजकता पर चुप हैं। उनकी चुप्पी हैरान करने वाली है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या बिहार में सेना में भर्ती के लिए प्रस्तावित अग्निपथ स्कीम के विरोध के नाम पर जो कुछ पिछले 48 घंटों से जारी है, वह महज अभ्यर्थियों का आक्रोश भर है या इसके पीछे कोई सुनियोजित राजनीतिक साजिश है? 48 घंटों से जारी उत्पात के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री का मुंह नहीं खोलना क्या इस बात का संकेत नहीं है कि वे भी चाहते हैं कि ये विरोध जारी रहे और केन्द्र सरकार एक बार फिर अपना फैसला बदलने को मजबूर हो। ऐसे में उन्हें एक बार फिर केन्द्र की पीठ सहलाने का मौका मिले। उपद्रव के इस पूरे खेल के बीच प्रदेश भाजपा की ओर से भी कुछ नही कहा जा रहा है। जिस पार्टी के डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के घर उपद्रवियों ने हमला कर दिया उस पार्टी भाजपा की चुप्पी यह जाहिर करती है कि भाजपा का प्रदेश नेतृत्व नीतीश सरकार से दोस्ती निभाने के चक्कर में अपने केन्द्रीय नेतृत्व की फजीहत भी बर्दाश्त करने को तैयार है।
बिहार में फिलहाल सेना की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के गुस्से के नाम पर जो उपद्रव मचाया जा रहा है, उसके कुछ तथ्यों को परखे जाने की जरूरत है। हालांकि यह काम सरकार में बैठे कानून व्यवस्था के रखवालों और सरकार के इटेलिजेंस के लोगों को करना चाहिए, पर जब वे निष्क्रिय हो गए हैं और तांडव जारी है, ऐसे में आम आदमी को ही इस पर विचार करने की जरूरत है। ऐसा करने से संभव है कि वे अपने घर और समाज के युवाओं को यह समझा सकें कि जो कुछ वे कर रहे हैं, वो वास्तव में गुस्सा नहीं है, बल्कि वे किसी की राजनीतिक मंशा की पूर्ति के लिए इस्तेमाल हो रहे है और आज नहीं तो कल उन्हें इसका अंजाम भुगतना ही पड़ेगा।
उपद्रव में शामिल बिहार के तथाकथित अभ्यर्थियों को यह समझने की जरूरत है कि बिना किसी जनाधार वाले संगठन के आहृवान पर अगर वे इस तरह की गुंडई करने पर उतारू हैं तो इसका परिणाम उनके लिए कितना घातक हो सकता है। जो सैनिक बनने के लिए वे अपना खून-पसीना बहाते रहे हैं क्या इस उपद्रव के बाद कभी उन्हें सैन्य सेवा में शामिल होने गौरव हासिल हो पाएया या हिंसा का केस लड़ते-लड़ते और अदालतों का चक्कर काटते-काटते उनकी जिंदगी समाप्त हो जाएगी। उनके इस उपद्रव को देखकर उनके लिए इंसाफ की लड़ाई को लड़ने के लिए कौन आगे आएगा?
देश का इतिहास गवाह है कि बिहार के युवा देश में हुए बड़े आंदोलनों की रीढ़ रहे हैं। चाहे गांधी जी के नेतृत्व में हुआ चंपारण आंदोलन हो या फिर साल 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन बिहार के युवाओं ने त्याग, बलिदान और अदम्य साहस से इतिहास में अपनी अलग पहचान बनायी है। 1974-75 के छात्र आंदोलन और कामगारों के अधिकारों के लिए हुए आंदोलनों में भी बिहारियों ने अपना खून-पसीना बहाया है। क्या वर्तमान परिस्थिति और अग्निपथ के विरोध में जारी उपद्रव भी इसी विरासत का नतीजा है? शायद इस सवाल का जवाब 'नहीं ' है।
अग्निपथ के विरोध के नाम पर जो अराजकता बिहार समेत देश के दूसरे हिस्सों में फैलायी जा रही है, उसकी तुलना इतिहास के महान आंदोलनों से करना एक भूल ही होगी। पूर्व में जो आंदोलन हुए थे वे एक अनुशासन के साथ और एक संगठन की गरिमा का पालन करते हुए किए गए थे। उन आंदोलनों का एक सक्षम नेतृत्व था जो इस बात को गंभीरता के साथ समझने में सक्षम था कि आंदोलन के परिणामस्वरूप वे क्या हासिल करेंगे। पूर्व के ऐतिहासिक आंदोलनों को अराजक बनाने से रोकने के लिए संयम का परिचय देते हुए हर संभव प्रयास किए गए थे। राष्ट्र की संप्रभुता का ख्याल रखा गया था।
अग्निपथ के विरोध के नाम पर जो रहा है, उस उपद्रव को आंदोलन इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह बिना की विश्वनीय संगठन के आहृवान पर हो रहा है। किसी बड़े संगठन ने तैयारी के साथ ऐसे किसी आंदोलन की घोषणा नहीं की है। आंदोलन को नेतृत्व कौन दे रहा है? इसको लेकर चीजें कतई स्पष्ट नहीं हैं। एक तरह से यह नेतृत्वहीन आंदोलन है। क्या ऐसा आंदोलन युवाओं की भलाई के लिए कोई परिणाम ला सकता है? इसका स्पष्ट जवाब है नहीं। आज जो युवा सड़कों पर उपद्रव मचा रहे हैं, उसका भुगतान उन्हें खुद भुगतना पड़ेगा, क्योंकि कोई भी विचारधारा उनके कृत्यों के समर्थन या उनके बचाव में जब उनकी उन्हें सख्त जरूरत होगी, सामने नहीं आएगी। ऐसे में वे इस तरह के उपद्रव मचाकर खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।