जजमेंट है या हरासमेंट : बीवी से बिना इच्छा जबर्दस्ती यौन संबंध बनाना नहीं माना जाएगा रेप
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार को नजरअंदाज कर हाल के दिनों में देश की अदालतों ने स्त्री की अस्मिता के खिलाफ फैसले सुनाने की परिपाटी शुरू की है और ऐसा करते हुए माननीय न्यायाधीश गण सामंती मानसिकता का खुलकर परिचय दे रहे हैं। वैसे भी देश में मनुवादी संस्कृति को थोपते हुए संघी गिरोह का महिला विरोधी अभियान ज़ोर शोर से चल रहा है। न्याय की उम्मीद लेकर महिलाएं अदालत के दरवाजे तक जाती हैं तो कुतर्कों को उछालकर उनको चुप करा दिया जाता है और उत्पीड़न करने वालों को बाइज्जत बरी भी कर दिया जाता है।
वैवाहिक संबंधों में रेप के आरोपी एक शख्स को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गुरुवार को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि कानूनी रूप से शादी कर चुके दो लोगों के बीच यौन संबंध बनना भले ही जबरदस्ती की गई हो, रेप नहीं कहा जा सकता। हालांकि अदालत ने शख्स के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध की धारा 377 को बरकरार रखा है। उसके तहत शख्स के खिलाफ मामला जारी रहेगा। महिला ने अपने पति और सास-ससुर पर दहेज की मांग करने और घरेलू हिंसा के आरोप लगाए थे। इसके अलावा महिला ने आरोप लगाया था कि उसकी ओर से विरोध किए जाने के बाद भी पति जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने कहा, 'सेक्शुअल इंटरकोर्स या फिर पुरुष की ओर से ऐसी कोई क्रिया रेप नहीं कहलाएगी। बशर्ते पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक हो।' जज ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता महिला आरोपी शख्स की वैध रूप से पत्नी है। ऐसे में पति के द्वारा उससे यौन संबंध बनाया जाना रेप नहीं कहा जा सकता। भले ही यह जबरन या फिर उसकी मर्जी के बगैर ही किया गया हो। इसके साथ ही अदालत ने शख्स को सेक्शन 376 यानी रेप के आरोप से बरी कर दिया। हालांकि अब भी उस पर अप्राकृतिक संबंध बनाने, दहेज उत्पीड़न के आरोपों के तहत केस चलता रहेगा।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का मैरिटल रेप को लेकर इस फैसले को अहम माना जा रहा है। महिला अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से मैरिटल रेप को लेकर भी कानून बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि इसकी जटिलता को देखते हुए अब तक इस पर कोई सहमति बनती नहीं दिखी है।
इससे पहले गौहाटी उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों साथी छात्रा से बलात्कार के आरोपी आईआईटी-गुवाहाटी के एक छात्र को जमानत दे दी और छात्र को 'राज्य की भविष्य की संपत्ति' बताया। आरोपी बीटेक छात्र की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजीत बोरठाकुर ने कहा कि सभी सबूतों के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया स्पष्ट मामला बनता है।
आदेश में कहा गया, "मामले में जांच पूरी हो चुकी है और सूचना देने वाली/पीड़िता लड़की और आरोपी दोनों ही आईआईटी- गुवाहाटी में प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम कर रहे प्रतिभाशाली विद्यार्थी होने के नाते राज्य की भविष्य की संपत्ति हैं… अगर आरोप तय कर लिए गए हैं तो आरोपी को हिरासत में रखना जरूरी नहीं हो सकता है।" अदालत ने अपने 13 अगस्त के आदेश में कहा कि 19 से 21 वर्ष के आयु वर्ग के दोनों युवा हैं और वे दोनों अलग-अलग राज्यों से हैं।
अदालत ने कहा, "आरोप-पत्र में उल्लेखित गवाहों की सूची का अवलोकन करने पर, आरोपी को जमानत पर रिहा करने पर उसके द्वारा साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने या उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने की अदालत को कोई संभावना नहीं दिखती है।"
उच्च न्यायालय ने आरोपी को 30 हजार रुपये के मुचलके और दो जमानतदारों की जमानत पर राहत प्रदान कर दी। आरोप है कि 28 मार्च की रात को आरोपी ने लड़की के साथ बलात्कार किया था, जिसे अगले दिन मुक्त करा कर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पुलिस ने आरोपी को तीन अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया था।