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विमर्श

95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस देश में मां ज्वाला मंदिर आज भी है दुनिया की ऐतिहासिक धरोहर

Janjwar Desk
30 Nov 2021 6:24 PM IST
95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस देश में मां ज्वाला मंदिर आज भी है दुनिया की ऐतिहासिक धरोहर
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Maa Jwala temple in Baku, Azerbaijan: एक ऐसा देश जिसकी आबादी 95 फीसदी मुस्लिम। उस देश में सनातन हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा आज भी जिंदा। ना सिर्फ जिंदा बल्कि परंपरा और ऐतिहासिक महत्व के साथ धरोहर को भी समेटे हुए।

मोना सिंह की रिपोर्ट

Maa Jwala temple in Baku, Azerbaijan: एक ऐसा देश जिसकी आबादी 95 फीसदी मुस्लिम। उस देश में सनातन हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा आज भी जिंदा। ना सिर्फ जिंदा बल्कि परंपरा और ऐतिहासिक महत्व के साथ धरोहर को भी समेटे हुए। मुस्लिम आबादी वाले देश में मां दुर्गा की अखंड ज्योति का मंदिर है। इस मंदिर में आज भी मां भगवती की अखंड ज्योति जल रही है।

वो देश है अजरबैजान। कैस्पियन सागर के पश्चिमी किनारे पर पूर्वी यूरोप और एशिया के बीच एक मुस्लिम देश। अज़रबैजान दिल्ली से 2700 किलोमीटर दूर है। इस देश की राजधानी है बाकू। इसी बाकू के सुरखानी शहर में ज्वाला माई या ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। जिसे आतेशगाह या अग्नि मंदिर कहा जाता है ।

इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में सिंधी, सिख और हिंदू व्यापारियों द्वारा सिल्क रूट पर कराया गया था। सिल्क रूट पर बसा सुरखानी शहर व्यापारियों का पसंदीदा बाजार हुआ करता था । इस मंदिर में अखंड ज्योति सैकड़ों सालों से खुद प्रकट होकर जल रही है। इस वजह से इसका नाम टेंपल आफ फायर या आतेशगाह रखा गया है। अजरबैजान को लैंड ऑफ़ फायर के रूप में भी जाना जाता है।

कभी था हिंदुओं और पारसियों का खास तीर्थस्थल

यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है। यह मंदिर वैश्वीकरण और भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप के बीच अंतर सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्राचीन अवशेष है। अज़रबैजान का सिल्क रूट जो एशिया और यूरोप को जोड़ता था, और एशियाई व्यापारियों के लिए आकर्षक व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। यहां पर सास्वत ज्वाला जलती थी। भारतीय और एशियन व्यापारियों द्वारा लगातार पवित्र अग्नि की कथाओं के प्रचार प्रसार से, भारतीय व्यापारी यात्री और तीर्थयात्री 16वीं सदी के अंत और 17वीं सदी की शुरुआत में वहां पर तीर्थ यात्रा और माता के दर्शन के लिए पहुंचने लगे थे। तभी उस जगह को अग्नि मंदिर के वर्तमान स्वरूप में बनाया गया था।

मंदिर की खासियत को जानिए

मंदिर का परिसर पंच कोणीय है। जिसमें भिक्षुओं के लिए कोशिकाओं या छोटी कोठियों से घिरा आंगन है। और बीच में टेट्रापिलर वेदी है। हिंदू और पारसी दोनों धर्मों में अग्नि पवित्र और पूजनीय है। 17 वीं सदी में वहां से होकर गुजरने वाले भारतीय व्यापारी वहां पूजा करते थे और जरूर माथा टेकते थे। मंदिर के पास की कोठरियों में विश्राम करते थे, इन कोठरियों में हिंदू और पारसी साधु संत भी उपासना और तपस्या करते थे।

साथ ही ईरान के पारसी लोग भी यहां पूजा करने आते थे। पारसियों के अनुसार, यह एक पारसी मंदिर था। इस बात पर बहस होती रही है कि आतेशगाह मूल रूप से हिंदू मंदिर है या पारसी ? परंतु पारसी विद्वानों द्वारा इस स्थल की जांच करके इसे मूल रूप से हिंदू मंदिर घोषित किया गया। मंदिर के गुंबद पर त्रिशूल है, जो हिंदू धर्म में मां दुर्गा और शिव का प्रतीक माना जाता है।

मंदिर के प्रवेश द्वार पर ओम गणेशाय नमः मंत्र लिखा हुआ है। इस पर विक्रम संवत 1802 की तारीख है जो 1745 - 46 ईसवी के बराबर है। इसके साथ एक शिलालेख पर देवनागरी भाषा में पांच पंक्तियां हैं, जो ज्वाला जी और हिंदू देवताओं का आह्वान करते हैं। संस्कृत के 2 शिलालेखों में भगवान गणेश और मां ज्वाला जी का उल्लेख है, जबकि दूसरे में भगवान शिव का आह्वान किया गया है इसमें सूर्य और स्वास्तिक का स्वरूप भी है।

इस पंचकोणी अग्नि मंदिर के परिसर में जाने वाले प्रत्येक द्वार पर संस्कृत या पंजाबी में इसी तरह के शिलालेख हैं। एक शिलालेख फारसी में भी है। यहां कुल मिलाकर 14 संस्कृत दो पंजाबी और एक फारसी शिलालेख है। 1925 में डॉक्टर जीवन जी जमशेदजी मोदी नामक पारसी पुजारी द्वारा आतेशगाह का दौरा किया गया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह मूल रूप से हिंदू मंदिर था,जहां हिंदू ब्राह्मण पुजारी पूजा करते थे। लेकिन सबूतों की वजह से इसे पारसी पूजनीय स्थल भी माना जाता था।

7 छिद्रों से निकलती है पवित्र अग्नि

अग्नि मंदिर बाकू के सुरखानी शहर में स्थित है। सुरखानी का स्थानीय भाषा 'तात' में अर्थ होता है, फव्वारे के साथ छेद। तात भाषा कैस्पियन सागर के आसपास बोली जाने वाली फारसी भाषा का ही रूप है। फारसी में आतेश का अर्थ आग और गाह का अर्थ होता है बिस्तर। आतेशगाह स्थल पर 7 छेद हैं, जिनमें से प्राकृतिक आग जलती है। आतेशगाह के नीचे प्राकृतिक गैस क्षेत्र था, जो इस प्राकृतिक आग का कारण था।

कहा जाता है कि 18वीं सदी के अंत में वहां से पूजा करने वाले पुजारी चले गए, तब से पूजा बंद हो गई। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में तेल और गैस के लिए आसपास की जमीन की खुदाई और प्राकृतिक गैस भंडार के आक्रामक शताब्दी लंबे खनन की वजह से साल 1969 में आग की प्राकृतिक लपटें बुझ गई थी। सोवियत शासन के दौरान सुरखानी क्षेत्र में पेट्रोलियम संयंत्र की स्थापना की वजह से तीर्थयात्रियों ने आना लगभग बंद कर दिया था। तब से ये मंदिर अब सूना रहता है।

किसने बनवाया था मंदिर

इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर बुद्धदेव नामक शख्स ने बनवाया था। यह शख्स हरियाणा के कुरुक्षेत्र के माजदा गांव के रहने वाले थे। मंदिर में मौजूद शिलालेख के तथ्यों के अनुसार, उत्तमचंद व शोभराज नामक व्यक्तियों की भी मंदिर निर्माण में अहम भूमिका थी।

अब बन चुका है संग्रहालय

सोवियत शासन और सुरखानी में पेट्रोलियम उद्योगों की स्थापना के साथ ही 1883 के बाद मंदिर में पूजा-पाठ बंद हो गया था। तब से ना तो वहां श्रद्धालुओं की भीड़ होती है और ना ही माता के जयकारे गूंजते हैं। इस दौरान क्षेत्र में प्राकृतिक गैस भंडार के भारी दोहन के परिणाम स्वरूप 1969 में प्राकृतिक रूप से जलती हुई ज्वाला बुझ गई।

सन् 1975 में अग्नि मंदिर को संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया। अब बाकू शहर के मुख्य गैस पाइपलाइन द्वारा अग्नि मंदिर में ज्वाला को प्रज्वलित किया जाता है। 1998 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट( विश्व धरोहर) के लिए सूचीबद्ध किया गया था। साल 2007 में अजरबैजान के प्रेसिडेंट ने इसे एक राष्ट्रीय हिस्टॉरिकल आर्किटेक्चर रिजर्व एरिया घोषित कर दिया। 2017 में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने भी अजरबैजान के बाकू में अग्नि मंदिर पहुंचीं थीं। देश के तीन दिवसीय दौरे के दौरान उन्हें एक बेदी के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते देखा गया था।

हिमाचल में भी ज्वाला जी मंदिर

बाकू के अग्नि मंदिर या आतेशगाह से समानता रखता हुआ भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी की बस्ती में ज्वाला जी का प्रसिद्ध मंदिर है। माता भक्तों द्वारा हिमाचल के ज्वाला जी मंदिर को 'छोटी ज्वाला जी ' मंदिर और बाकू को 'बड़ी ज्वाला जी' के मंदिर के रूप में जाना जाता है। हिमाचल के छोटी ज्वाला जी मंदिर में माता की 9 अखंड ज्योति जलती हैं।

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