Bihar News : साल 2014 के बाद हर साल बिहार में बढ़ने लगे हैं सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने के मामले, आखिर दोषी कौन?
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Bihar News : बिहार (Bihar) के बेगूसराय (Begusarai) के रजौड़ा गांव का सांप्रदायिक विवाद का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मामले में बिहार की मुख्य विपक्षी दल राजद (RJD) और भाकपा माले (CPI ML) ने बेगूसराय के सांसद और केन्द्रीय मंत्री गिरीराज सिंह (Giriraj Singh) पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाकर उनकी गिरफ्तारी की मांग की है। यहां आपको बता दें कि बीते 12 मार्च को बिहार के बेगूसराय जिले के रजौड़ा में एक अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे ने चापाकल पर पानी पीया। इस दौरान उसकी एक दूसरे बच्चे से झड़प हो गयी। बात वही खत्म हो गयी पर होलिका दहन के दिन दोबारा 11 वर्षीया बच्चे को पकड़कर कुछ लोगों ने उसके साथ मारपीट की और उसे बांधा गया। भाकपा मामले के अनुसार अगले दिन 19 मार्च को बेगूसराय सांसद रजौड़ा पहुंचे और उन्होने सांप्रदायिक भाषण दिया। इसके बाद वहां सांप्रदायिक तनाव का माहौल पैदा हो गया है। हालांकि मामले में पुलिसिया कार्रवाई चल रही है पर माहोल अब भी तनावपूर्ण बना हुआ है।
उधर, इस मामले में भाकपा माले के सचिव कॉमरेड कुणाल ने कहा कि सामस्तीपुर (Samastipur) के बाद अब भाजपा (BJP) और आरएसएस (RSS) की जोड़ी बेगूसराय जिले में माहौल बिगाड़ना चाहती है और इसके मास्टरमाइंड और कोई नहीं बेगूसराय के सांसद गिरीराज सिंह हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील करते हुए कहा है कि मामले में जल्द से जल्द कार्रवाई को महौल बिगड़ने से रोका जाए। हाल के दिनों में देखा जाए तो बिहार के कई जिले सांप्रदायिक तनाव और हिंसक घटनाओं के शिकार हो चुके हैं। लखीसराय, समस्तीपुर और बेगूसराय जिलों में हुई घटना इसके ताजा उदाहरण हैं। आइए नजर डालते हैं कि बिहार में बीते कई सालों में सांप्रदायिक तनाव में मामले में कितनी बढ़ोतरी हुई है। क्या 2014 में केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से इन घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।
एनसीआरबी की ओर से साल 2019 में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में साल 2017 में कुल 58,729 दंगे की वारदातें दर्ज की गईं। इनमें से 11,698 सिर्फ दंगे बिहार में हुए। इसी दौरान देश में कुल 723 सांप्रदायिक उन्माद या धार्मिक दंगे हुए. इनमें सिर्फ बिहार में 163 वारदातें धार्मिक उन्माद की वारदातें हुईं, जो जो कि पूरे देश में सबसे ज्यादा था।
आपको बता दें कि इससे पहले साल वर्ष 2016 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 139 घटनाएं हुई थीं, जो वर्ष 2017 के मुकाबले 24 कम थी.2016 से पूर्व के वर्षों में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की कम वारदातें दर्ज की गयी थी। 27 नवंबर 2012 को लोकसभा में इसे लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में तत्कालीन यूपीए की सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2009 और 2010 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 40-40 घटनाएं दर्ज हुई थीं। वहीं, वर्ष 2011 में सांप्रदायिक हिंसा की 26 घटनाएं हुई थीं।
वहीं साल 2012 में भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में गिरावट दर्ज की गयी थी। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 21 वारदातें हुई थीं, जिनमें तीन लोगों की मौत हो गई थीं। हालांकि वर्ष 2013 में सांप्रदायिक हिंसा में बढ़ोतरी हुई थी. आंकडे़ बताते हैं कि उस साल सांप्रदायिक हिंसा की 63 घटनाएं हुई थीं. आपको बता दें कि यही वह साल था जब भाजपा की ओर से केन्द्र में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बनाया गया था। वे अब देश के प्रधानमंत्री हैं। हालांकि इसका उस समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका पुरजोर विरोध किया था और बिहार में जदयू और भाजपा का गठबंधन टूट गया था। हालांकि साल 2017 में नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा के साथ आ गए। इस समय भी नीतीश कुमार भाजपा की मदद से ही बिहार में मुख्यमंत्री हैं।
बिहार के मामलों पर नजर रखने जानकारों का कहना है कि हाल के वर्षों में बिहार में धार्मिक उग्रता में इजाफा देखा जा रहा है. ऐसा माहौल 2014 के चुनावों के पहले नहीं था। हालांकि हिंसक वारदातें तब भी होती थीं पर अब उनमें कई गुना की बढ़ोतरी हो गयी है। हालात ये बन गए हैं कि नेताओं की मौजूदगी में धार्मिक कार्यक्रमों में खुलेआम भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं और आपत्तिजनक नारे लगते हैं। जिनका हश्र दो समुदायों के बीच तनाव और हिंसा के रूप में सामने आ रहा है। एनसीआरबी हर वर्ष के आंकड़े इस बात को साबित करते हैं।
गौरतलब है कि बिहार में अक्सर रामनवमी, दशहरा, मुहर्ररम, सरस्वती पूजा आदि के मौकों पर दंगे और संप्रदायिक झड़प की खबरे आती रहती है। सभी सांप्रदायिक दंगे का ट्रेंड कमोबेश एक-सा ही रहता है था. एक जुलूस निकला जाता है, भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं, एक अफवाह उड़ायी जाती है, दोनों पक्ष के नेताओं का भाषण होता है और फिर भीड़ बेकाबू होकर तोड़फोड़-रोड़ेबाजी शुरू कर देती है। बिहार में यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है। पर प्रशासन इस पर अंकुश लगाने में विफल रही है।
कुछ हफ्तों पहले ही समस्तीपुर में एक राजनीतिक दल के नेता की हत्या के बाद एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इसमें कुछ लोग उससे मारपीट और गाली-गलौज कर थे। प्रतिबंधित मांस काटने और इसे खाने के बारे में पूछा जा रहा था। युवक के जवाब पर उसकी पिटाई की जा रही थी। इधर] वीडियो वायरल होते ही प्रशासनिक महकमे में खलबली मच गयी थी। पुलिस अधीक्षक हृदय कांत ने बताया कि था कि मामले में एक शख्स को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया था कि यह वीडियो हत्या के पहले ही बनाया गया था। इसका उद्देश्य था कि मामले के उद्भेदन के बाद इसे वायरल कर सांप्रदायिक तनाव बढ़ाया जाए। SP ने कहा कि हम सोशल मीडिया कंपनी से बात कर रहे हैं। वीडियो हटवाने की कार्रवाई की जा रही है। हाल के वर्षों में दंगों को भड़काने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है। गौरतलब है कि खलील नाम के युवक को बीते 16 फरवरी को मुसरीघरारी से समस्तीपुर आने के क्रम में रास्ते में अपराधियों ने अगवा कर लिया था। मारपीट के दौरान उसकी मौत हो गई थी। शव को छुपाने के लिए मुर्गा फार्म के पास ही गड्ढा खोदकर गाड़ दिया था। मामले में परिजनों के द्वारा मुसरीघरारी थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने 18 फरवरी को एक आरोपी विपुल को हिरासत में लिया। विपुल से पूछताछ के बाद उसकी निशानदेही पर पुलिस ने गड्ढा खोद शव को बरामद किया था। विपुल द्वारा बताए गए चार अन्य लोगों की तलाश में पुलिस जुटी है। इस मामले में पुलिस ने पैसे के लेनदेन की बात बताई थी। बताया गया था कि नौकरी दिलाने के नाम पर पैसे का लेनदेन हुआ था। अब बेगूसराय में हुई घटना के बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ने से एक बार फिर शांति पर खतरा मंडरा रहा है। इस बार विरोधियों के निशाने पर खुद केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह हैं।