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बिहार

बिहार में 12 दिन के भीतर बिजली गिरने से 112 किसानों-मजदूरों की मौत, लेकिन नहीं किसी को कोई चिंता

Janjwar Desk
8 July 2020 5:07 AM GMT
बिहार में 12 दिन के भीतर बिजली गिरने से 112 किसानों-मजदूरों की मौत, लेकिन नहीं किसी को कोई चिंता
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बिहार में शुरुआती मानसून में ही आसामनी बिजली गिरने से 112 लोगों की मौत हो गई है, इन घटनाओं से राहत एवं बचाव के उपाय राज्य में नाकाफी हैं...

पटना से राजेश पांडेय की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार में वज्रपात एक बड़ी आफ़त बनकर सामने आई है। आलम यह है कि शुरुआती दौर से अबतक जितनी मौतें कोरोना से नहीं हुईं हैं, बिहार में उससे ज्यादा लोगों की जान पिछले 12 दिनों में वज्रपात के कारण जा चुकी है। वज्रपात से ज्यादातर मौतें खेतों में काम कर रहे किसानों और खेतिहर मजदूरों की हुई है।

बिहार में पिछले 12 दिनों में आकाशीय बिजली की चपेट में आकर 112 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल भी हुए हैं। बिहार के लगभग डेढ़ दर्जन जिलों में ही ज्यादातर घटनाएं हुईं हैं। कहा जा सकता है कि बिहार वज्रपात की दृष्टि से सेंसेटिव ज़ोन बन गया है।

26 जून को बिहार में वज्रपात की बड़ी घटना हुई। इस दिन विभिन्न जिलों में महज कुछ घँटों में ही आकाशीय बिजली की चपेट में आकर 83 लोग मारे गए। मरने वालों में गोपालगंज जिला के सर्वाधिक 13, मधुबनी और नवादा के 8-8, सीवान और भागलपुर के 6-6 तथा दरभंगा एवं बांका जिलों के 5-5 सहित 16 अन्य जिलों के लोग शामिल थे। इनमें से ज्यादातर लोग किसान या खेतिहर मजदूर थे, जो बारिश के बीच खेतों में धान के बिचड़े की रोपाई कर रहे थे।

2 जुलाई को वज्रपात की फिर एक बड़ी घटना हुई। इस दिन कुल 22 लोग आकाशीय बिजली के शिकार होकर जान से हाथ धो बैठे। इनमें पटना, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, कटिहार और मधेपुरा सहित 8 जिलों के लोग थे। 7 जुलाई को वज्रपात की चपेट में आकर 7 लोग जान गंवा बैठे। इनमें भागलपुर, बेगूसराय, कैमूर, मुंगेर और जमुई जिलों के लोग शामिल थे। इनमें से अधिकांश खेतों में काम कर रहे किसान और खेतिहर मजदूर ही थे।

सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग ने क्षति को रोकने या कम करने की क्या कोशिश की है?

सरकार द्वारा इन्द्रवज्रा नामक एक ऐप डेवलप किया गया है। यह ऐप वज्रपात की चेतावनी देता है, पर लोगों की शिकायत है कि अब इसपर नए लोगों को लॉगिन करने में परेशानी हो रही है। राज्य सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग भी चेतावनी जारी करता है। लोगों का कहना है कि ऐप हो या चेतावनी, सुदूर गांवों में रह रहे किसानों और खेतिहर मजदूरों को इसका विशेष लाभ नहीं मिल पाता। कारण कई हैं। फिर बारिश के दौरान ही खेतों में पटवन, रोपनी, सिंचाई आदि करने की मजबूरी भी है।

ऐसे में वज्रपात से क्षति को कम करने का और क्या रास्ता हो सकता है?

कांग्रेस पार्टी किसान सेल के बिहार स्टेट कोऑर्डिनेटर रंजीत सिंह कहते हैं, वज्रपात से किसान और खेत मजदूरों की मौत ज्यादा हो रही है। इसे सरकार किसानों को जागरूक करके कम या रोक सकती है। ऐसी मौतों को कम करने के लिए सरकार को वज्रपात की चेतावनी देने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए पंचायत स्तर पर गैर सरकारी संगठन, एनजीओ के माध्यम से नुक्कड़ नाटक करा कर ग्रामीणों को जागरूक करना चाहिए। यह स्थानीय भाषा मैथिली, भोजपुरी आदि भाषाओं में होना चाहिए, ताकि किसान आसानी से समझ सकें।

बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सूचनाएं समय पर नहीं पहुंच पातीं। साथ ही खेतों में काम करने के दौरान अचानक अगर मौसम बिगड़ जाए तो लोगों को छिपने की जगह नहीं मिल पाती। चूंकि दूर-दूर तक खेत ही होते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के बिहार प्रदेश प्रवक्ता प्रमोद सिंह टुन्ना कहते हैं, 'किसान व खेतिहर मजदूरों पर वज्रपात का प्रहार रोकने या कम करने में सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी है। वज्रपात का प्रभाव कम करने के लिए सरकार को ग्रामीण इलाकों में ऐसी तकनीक विकसित करनी चाहिए जिससे ग्रामीणों को वैसे चिह्नित स्थलों की पूर्व सूचना संकट से पहले मिल जाये, जहां वज्रपात होने की प्रबल आशंका है'।

हालांकि, यह व्यवस्था पहले से है। लेकिन, गरीबी और अशिक्षा के कारण किसान और खेतिहर मजदूरों को इस प्रकार की सूचना ससमय नहीं मिल पाती है। इसके अलावा पंचायत स्तर पर एक प्राकृतिक आपदा टीम गठित होनी चाहिए जिससे ऐसी घटनाओं में जान-माल की कम से कम क्षति सुनिश्चित करें। खेतों के आसपास विद्युत कुचालक, तड़ित चालक का उपयोग भी फायदेमंद रहेगा। कुछ-कुछ दूरी पर शेड बनाकर भी किसानों को वज्रपात के दौरान सुरक्षित किया जा सकता है।

बिहार में आखिर इतना ज्यादा वज्रपात क्यों हो रहा है?

पटना स्थित मौसम विभाग के उपनिदेशक आनंद शंकर ने मीडिया को बताया था, मानसून आने के बाद पठारी इलाकों में कम दबाव का क्षेत्र जल्दी बन जाता है। इसी वजह से नेपाल के पठारी एरिया में लो प्रेशर क्षेत्र बना और नदियों की वजह से नमी बढ़ गई। इसके बाद लोकल ठण्डरस्टोर्म बनता है, जो तूफान में तब्दील हो जाता है और लगतार बिजली गिरती रहती है।

क्या बिजली गिरना सामान्य कुदरती घटना है?

मौसम विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि आकाशीय बिजली तीन तरह की होती है। बादल के भीतर कड़कने वाली, बादल से बादल के बीच कड़कने वाली और तीसरी बादल से जमीन पर गिरने वाली। यही तीसरी वाली घातक होती है।

बिहार में बिजली गिरने से आखिरकार इतनी मौतें क्यों हो रही हैं?

मौसम विभाग के उपनिदेशक आनंद शंकर कहते हैं, 'बिजली हमेशा आसपास की सबसे ऊंचे स्थान पर ही गिरती है। मानसून का वक्त है, किसान खेतों में काम कर रहे हैं। इस दौरान बारिश होने और बिजली कड़कने पर खाली जगह की अपेक्षा पेड़ों के नीचे चले जाना उन्हें ज्यादा सुरक्षित लगता है और यही गलती जानलेवा हो जाती है। चूंकि खाली खेतों में पेड़ ऊंचे होते हैं और बिजली को आकर्षित कर लेते हैं'।

मानसून का वक्त धान के फसल की बुआई का मौसम होता है। बिहार में इस बार मानसून की सामान्य से ज्यादा बारिश हो रही है। किसान बारिश के दौरान पटवन, सिंचाई और बुआई के लिए खेतों में होते हैं और आकाशीय बिजली के शिकार हो जाते हैं।

बिजली कड़क रही हो तो क्या करें और क्या न करें

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग ने एक गाइडलाइन जारी की है कि बिजली कड़कने के दौरान क्या करें और क्या न करें। इस गाइडलाइन में बताया गया है, बिजली कड़कने के दौरान खुले स्थानों, बिजली के खंभों, पेड़ के नीचे न रहें। पक्के मकान में शरण लेने की कोशिश करें। कुछ न मिले तो जमीन पर उकड़ू बैठ जाएं। बिजली कड़कने के दौरान वायर वाले टेलीफोन, बिजली के उपकरण आदि के प्लग निकाल दें तथा इनका प्रयोग न करें।

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