कोरोना और चमकी बुखार झेल रहे बिहार में लगातार बढ़ रहा नदियों का जलस्तर लेकर आएगा नया संकट
जनज्वार ब्यूरो, पटना। मॉनसून की दस्तक के साथ ही बिहार में बारिश शुरू हो गई है। नेपाल के तराई इलाकों में भी बारिश हो रही है। जिस कारण नदियों का जलस्तर बढ़ने लगा है। बिहार से होकर गुजरने वाली गंगा, गंडक, कोशी, बागमती, महानन्दा आदि सभी नदियों के जलस्तर में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। हालांकि इन सभी नदियों का जलस्तर अभी खतरे के निशान से नीचे है, पर जलस्तर में वृद्धि लगातार हो रही है। कुछ जगह कटाव भी हो रहा है तो निचले इलाकों और दियारा क्षेत्रों के लोग अब चिंतित होने लगे हैं।
बिहार के पटना, मुंगेर और कटिहार में गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़त पर है। पटना में गंगा नदी में पिछले 48 घँटे में दीघा घाट पर 46 सेंटीमीटर और गांधी घाट पर 45 सेंटीमीटर जलस्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। शनिवार को दीघा घाट पर गंगा का जलस्तर 44.44 मीटर मापा गया है। यहां खतरे का निशान 50.45 मीटर है। वहीं गांधी घाट पर गंगा का जलस्तर 44.02 मीटर मापा गया। यहां खतरा का निशान 48.60 मीटर पर है। उधर मुंगेर जिला में रविवार शाम 6 बजे गंगा का जलस्तर 32.01 मीटर मापा गया है। यहां खतरे का निशान 39.33 मीटर है। यहां गंगा के जलस्तर में प्रति घण्टा औसतन 2 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की जा रही है।
केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 22 जून को गोपालगंज के डुमरिया घाट पर गंडक नदी खतरे के निशान से ऊपर आ गई है। 22 जून को सुबह 9 बजे डुमरिया घाट पर गंडक नदी का जलस्तर 62.32 मीटर था, जो खतरे के निशान से 0.10 मीटर ऊपर है। यहां खतरे का निशान 62.22 मीटर है। हालांकि अबतक के सर्वाधिक जलस्तर से अभी यह 1.78 मीटर नीचे है। अबतक का सर्वाधिक जलस्तर 64.1 मीटर रिकॉर्ड किया गया है।
बिहार में बाढ़ के कारण अमूमन हर वर्ष भारी तबाही होती है। खासकर गंगा, कोशी, गंडक और सोन नदियों के किनारे वाले क्षेत्रों में। पिछले दशकों में सरकारी स्तर पर न जाने कितनी योजनाएं बनीं, पर किसी भी योजना का कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। हर वर्ष बरसात पूर्व बाढ़ निरोधात्मक कार्य कराए जाते हैं पर जैसे ही जलस्तर खतरे का निशान पार करता है, आसपास के क्षेत्रों के साथ सभी निरोधात्मक कार्य भी डूब जाते हैं। लिहाजा हर साल जान.माल की भारी क्षति होती है। लोगों के हजारों एकड़ उपजाऊ खेत नदियों में समा जाते हैं तो सैकड़ों घर भी उनमें विलीन हो जाते हैं। बिहार के नदी किनारों पर स्थित गांव के गांव इन नदियों में विलीन हो चुके हैं।
खगड़िया जिले में रविवार को बागमती नदी का जलस्तर 6 सेंटीमीटर बढ़ा तो कोशी के जलस्तर में 4 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की गई। हालांकि यह मामूली वृद्धि है, पर जमींदारी बांधों पर दबाव बढ़ गया है और प्रशासन द्वारा इन बांधों की निगरानी के लिए होमगार्ड जवानों और विभागीय इंजीनियरों की ड्यूटी लगा दी गई है। गौरीपुरए कड़वाएधमौलए आजमनगर आदि गांवों में खेतों का कटाव भी हो रहा है। सारण जिले के पानापुर प्रखंड में गंडक नदी के जलस्तर में भी वृद्धि हो रही है। मुजफ्फरपुर जिले में भी नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। यहां के कटरा, गायघाट और औराई प्रखंडों के कई गांवों को पीपा पुल और चचरी पुल ही प्रखंड मुख्यालय से जोड़े हुए हैं। इनपर दबाव बढ़ गया है। जिस कारण इन गांवों के लोग प्रखंड मुख्यालय से संपर्क भंग हो जाने की चिंता में हैं।
पश्चिम चंपारण के बगहा पुलिस जिला में गंडक नदी के जलस्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। बाल्मीकिनगर में गंडक बराज है। इस बराज में 36 फाटक हैं। इनमें 18 बिहार में तो 18 नेपाल में हैं। हर साल बरसात से पहले इस बराज और तटबंध की मरम्मत की जाती है। इस वर्ष नेपाल ने लॉकडाउन का बहाना कर वहां स्थित तटबंध और फाटकों की मरम्मत भी नहीं की है। तमाम पत्राचारों के बाद भी अबतक यह काम नहीं हो पाया है। नेपाल के तराई क्षेत्रों में बारिश होने के बाद जब वहां की नदियां उफनातीं हैं तो नेपाल द्वारा गंडक बराज के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है। बिहार में बाढ़ का यह भी एक कारण बन जाता है। बताया जा रहा है कि नेपाल द्वारा हाल ही में गंडक बराज से 1 लाख 63 हजार क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया है।
केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 22 जून को गोपालगंज के डुमरिया घाट पर गंडक नदी खतरे के निशान से ऊपर आ गई है। 22 जून को सुबह 9 बजे डुमरिया घाट पर गंडक नदी का जलस्तर 62.32 मीटर था, जो खतरे के निशान से 0.10 मीटर ऊपर है। यहां खतरे का निशान 62.22 मीटर है। हालांकि अबतक के सर्वाधिक जलस्तर से अभी यह 1.78 मीटर नीचे है। अबतक का सर्वाधिक जलस्तर 64.1 मीटर रिकॉर्ड किया गया है।
कोरोना संकट के बीच लगातार नदियों का जलस्तर बढ़ने से नदी किनारे वाले बिहार के जिलों के लोगों की नींद उड़ी हुई है। हर वर्ष बाढ़ की मार झेल रहे लोग कोरोना काल में नदियों के शांत हो जाने की दुआ कर रहे हैं। सरकारी स्तर पर तटबंधों की मरम्मत और बाढ़ निरोधात्मक कार्य कर लिए जाने का दावा किया जा रहा है। तटबंधों की निगरानी के लिए विभागीय इंजीनियरों को लगा दिया गया है। वैसे यह सब कितना कारगर साबित हो पाता है यह आने वाला समय ही बताएगा।