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Hate Politics: 'सबका साथ, सबका विकास' कहने वाली भाजपा की असलियत- महीने भर बाद नहीं होगा एक भी मुस्लिम चेहरा

Janjwar Desk
7 Jun 2022 4:12 PM IST
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file photo

BJP Hate Politics: भाजपा के पास 7 जुलाई के बाद एक भी मुसलमान चेहरा नहीं होगा। ‘सबका साथ, सबका विकास’ कहने वाली भाजपा में देश के 20 करोड़ मुसलमानों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहेगा।

BJP Hate Politics: जवाबदेही ऊपर से तय होती है, जो सबसे आखिरी व्यक्त तक आदम होती है। भाजपा में लगता है इसका ठीक उल्टा है। नूपुर शर्मा के आपत्तिजनक बोल से उपजे इस्लामिक देशों के गुस्से के बाद पार्टी ने मंगलवार को हेट स्पीच देने वाले 38 नेताओं की सूची बनाई है। हालांकि, बात सिर्फ यही खत्म नहीं होती। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के पास 7 जुलाई के बाद एक भी मुसलमान चेहरा नहीं होगा। यानी 'सबका साथ, सबका विकास' कहने वाली भाजपा में देश के 20 करोड़ मुसलमानों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहेगा।

इसे हेट पॉलिटिक्स क्यों न कहा जाए, जबकि भाजपा की भारत के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुकूमत है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में भाजपा का बहुमत है। हालांकि, लोकसभा तो छोड़िए, देश की 31 विधानसभाओं में भी भाजपा के पास एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं है, जो अपने अवाम का प्रतिनिधित्व करता हो। इस आधार पर भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर दिए जा रहे आपत्तिजनक बयानों और हेट स्पीच के पीछे निहित कारणों को समझना मुश्किल नहीं है।

राज्यसभा से विदा होंगे ये मुस्लिम चेहरे

पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर का राज्यसभा का कार्यकाल 29 जून को खत्म हो रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद जफर आलम का कार्यकाल 4 जुलाई को समाप्त हो जाएगा। उसके बाद केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा के आखिरी मुसलमान चेहरे होंगे, जो 7 जुलाई यानी आज से ठीक एक माह बाद रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद भाजपा के पास संसद में एक भी मुसलमान चेहरा नहीं होगा। लोकसभा में भाजपा के खाते में आखिरी मुस्लिम सांसद शाहनवाज हुसैन थे, जो 2009 में बिहार के भागलपुर से चुनाव जीतकर आए थे। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता है। 2014 में जहां भाजपा ने 7 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, वे सभी हार गए। उनमें शाहनवाज हुसैन भी थे। 2019 में पार्टी ने 6 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। फिर कोई नहीं जीत पाया।

हिंदू वोट बंटने का डर

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को इस डर से चुनाव मैदान में नहीं उतारना चाहती, क्योंकि उसे डर होता है कि हिंदुत्व की लहर पर सवार पार्टी का हिंदू वोट बैंक नाराज होकर दूर छिटक जाएगा। कहीं न कहीं इसीलिए भाजपा के नेता मुस्लिम उम्मीदवार उतारने पर उसकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मेहनत भी नहीं करते। खासतौर पर उन सीटों पर जहां मुस्लिम वोटर 35-40 प्रतिशत के बीच होते हैं। इस कारण भाजपा का टिकट मिलने के बाद भी उम्मीदवार को ही बाकी के 60-65 फीसदी गैर मुस्लिम वोट भी अपने दम पर ही जुटाने पड़ते हैं। पिछले दोनों आम चुनाव में मुस्लिम वोटर ऐसा कर पाने में नाकाम रहे हैं, जो उनकी हार का प्रमुख कारण है।

विधानसभाओं में भी भाजपा के पास कोई मुस्लिम चेहरा नहीं

देश के 31 में से 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी भाजपा के पास कोई मुस्लिम चेहरा नहीं है। दरअसल, भाजपा ने दो साल से मुस्लिमों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की कवायद ही बंद कर दी है। पिछले 11 महीने से मंदिर-मस्जिद, हिजाब, लव जिहाद, लाउडस्पीकर और नमाज जैसे मुद्दों को तूल देने और एक के बाद एक धर्म संसदों में कुछ संतों के जहरीले भड़काऊ भाषणों ने भाजपा और मुसलमानों के बीच की खाई और चौड़ी कर दी है। सबसे चिंता की बात यह है कि भाजपा का नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे शीर्ष नेताओं ने भी सब-कुछ देखकर इन्हें रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए। नूपुर शर्मा के आपत्तिजनक बयान के बाद इस्लामिक देशों का गुस्सा इसी की ओर इशारा करता है।

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