Caste Census News : क्या है जातिगत जनगणना? मोदी सरकार क्यों बच रही इससे? बिहार के सारे दल क्यों मिला रहे सुर?
Caste Census News : बिहार में जातिगत जनगणना के मसले पर पूरा पक्ष और विपक्ष एक सुर में सुर मिला रहा है। इस मुद्दे पर राजधानी पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बुधवार 1 जून को पटना में एक सर्वदलीय बैठक की गयी है। इस बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जातिगत जनगणना पर कैबिनेट का फैसला जल्द होगा और सभी दलों की सहमति के बाद इसके काम में तेजी लायी जाएगी। बिहार के मुख्यमंत्री ने इस दौरान यह भी कहा है कि तय समय सीमा पर जनगणना का काम पूरा किया जाएगा।
इस पूरे मामले में खास ये बात ये रही कि जो बीजेपी केंद्र में जाती जनगणना के खिलाफ है वो बिहार में जातीय जनगणना के सुर में सुर मिला रही है। अब ऐसे में सवाल है कि आखिर जातिगत जनगणना है क्या और इसके पीछे विवाद क्या है? इस मुद्दे पर शादाब मोईजी ने द क्विवंट के लिए विस्तार से एक रिपोर्ट लिखी है। आइए इस रिपोर्ट के हवाले से समझते हैं कि आखिर जातिगत जणगणना को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों मची हुई हैं।
ओबीसी के तहत आनेवाली जातियों की गिनती की हो रही है मांग
भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है। जिसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए अलग से कॉलम है। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई कॉलम नहीं है। इसलिए जाती जनगणना को आप अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) गिनती कह सकते हैं। अगर तकनीकी शब्दावली की बात करें तो इसे 'सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग' (Social and Educational Backward Class) गणना कहा जाता है। बता दें कि जातिगत जनगणना की जो मांग उठ रही है इमसें बाकी जातियों की नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आने वाली जातियों की गिनती की मांग हो रही है।
साल 1931 तक देश में होती थी जातिगत जनगणना
जवाब है हां, लेकिन जातीय जनगणना को समझने के लिए आपको इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। दरअसल, भारत में साल 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की वजह से साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। अब इसके बाद साल 2011 तक भारत में कभी भी जातीय जनगणना नहीं हुआ। 1951 के बाद से लेकर 2011 तक दशकीय जनगणना (Decennial Census) में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं। हालांकि साल 2011 में कांग्रेस की यूपीए-2 सरकार के दौरान मुख्य जनगणना से अलग 'सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना' (SECC) के अंतर्गत जातिगत जनगणना की गई थी, लेकिन इसके आंकड़े सरकार ने अबतक जारी नहीं किए. ऐसे में अब राजनीतिक दल जोर शोर से 2021 में होने वाली जनगणना में ओबीसी जातियों की गणना की आवाज उठा रहे हैं।
क्यों उठ रही है जातिगत जनगणना की मांग
दरअसल, भारत में ओबीसी आबादी कितनी है, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। हालांकि 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, यानी मंडल आयोग के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है। लेकिन मंडल कमीशन का ये आकंड़ा साल 1931 की जनगणना के आधार पर है। वीपी सिंह के दौरान जब मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया गया तब अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 फीसदी आरक्षण देने की बात की गई थी।
बिहार के सीएम नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जातीय जनगणना की मांग इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस तरह की जनगणना से सभी जातियों की सही संख्या का पता चलेगा और फिर उसी आधार पर नीतियां बनाई जा सकेंगी। बिहार के राजनीतिक दलों की आम राय है कि जातिगत जनगणना से पता चल सकेगा कि किस इलाके में किस जाति की कितनी आबादी है? साथ ही इसी आधार पर सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी समाज के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने का रास्ता साफ हो सकेगा।
क्यों मोदी सरकार जातिगत जनगणना करवाने से बच रही है?
23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में, केंद्र सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) आयोजित करने से इंकार कर दिया था, सरकार की तरफ से कहा गया था कि जाति जनगणना (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पारंपरिक रूप से की गई) को छोड़कर असंभव है।
केन्द्र सरकार की ओर से इसे "प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल" बताया गया था। हलफनामा महाराष्ट्र सरकार की ओर से एक रिट याचिका के जवाब में था, जिसमें केंद्र सरकार को 2021 की जनगणना के दौरान ग्रामीण भारत के पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) पर डेटा एकत्र करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र एसईसीसी-2011 के दौरान एकत्र किए गए अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) पर जाति के आंकड़ों का खुलासा करे।
सरकार का तर्क है कि न्यायपालिका सरकार को जाति जनगणना करने का निर्देश नहीं दे सकती क्योंकि ये एक "नीतिगत निर्णय" है, और न्यायपालिका सरकार की नीति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। साथ ही ये भी कहा गया है कि जाति जनगणना का प्रयास करना व्यावहारिक नहीं है और प्रशासनिक रूप से भी ऐसा करना बेहद मुश्किल है।