रीढ की हड्डी में चोट से परेशान अनाथ बच्चे को पहले बताया बाहरी मरीज, फिर एम्स ट्रामा सेंटर ने कहा नहीं है बेड
जनज्वार। दिल्ली एम्स के ट्रामा सेंटर में 13 साल के एक दिव्यांग घायल बच्चे दीपांशु का 24 घंटे के इंतजार के बाद भी इलाज शुरू नहीं हो सका। उसकी अस्पताल में किसी ने सुध नहीं ली और वह स्ट्रेचर पर ही पड़ा हुआ है।
दिल्ली हाइकोर्ट की मानिटरिंग कमेटी के सदस्य अशोक अग्रवाल ने फेसबुक पर इस संबंध में मंगलवार, 28 जुलाई को एक पोस्ट व वीडियो शेयर किया है। इस बारे में उन्होंने ट्वीट भी किया है।
24 घंटे से ज्यादा बीत गए। 13 साल के अनाथ विकलांग घायल दीपांशु 9728316059 को अभी तक AIIMS Trauma Centre में नही मिला इलाज। गरीब होने की सजा। pic.twitter.com/7XLMG1SIxY
— Ashok Agarwal (@socialjurist) July 28, 2020
अशोक अग्रवाल ने कहा है कि कानून में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अनाथ होता है तो उसका माता-पिता सरकारी होती है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में कहा था कि वहां जो लोग मर गए और जो विकलांग हो गए उसके मुआवजे का केस इन सब लोगों की ओर से सरकार अमेरिकी कंपनी के खिलाफ चला सकती है, क्योंकि वह अभिभावक होती है।
अग्रवाल के अनुसार, लेकिन यह जमीनी हकीकत नहीं है, हजारों लाखों लोग जो अनाथ हैं, उन्हें पूछने वाला इस देश में कोई नहीं है। उन्होंने बताया कि चोट से पीड़ित दीपांशु अटेना गांव, सोनीपत, हरियाणा में पैदा हुआ। जब वह तीन साल का था तो उसके माता-पिता की मौत हो गई। 24 जुलाई को वह गांव में पेड़ से गिर गया और उसकी रीढ की हड्डी में चोट लगी।
इसके बाद उसके गांव के लोग उसे इलाज के लिए दिल्ली सरकार के के ट्रामा सेंटर लेकर आए। वहां डाॅक्टरों ने कहा कि यह हरियाणा का है, इसलिए यहां इसका इलाज नहीं होगा, इसे रोहतक में ले जा कर भर्ती कराओ। अग्रवाल के कहा कि बच्चे का जब हरियाणा में इलाज नहीं हुआ तभी उसे दिल्ली लाया गया था।
13 साल के अनाथ विकलांग घायल दीपांशु 9728316059 को नही मिला सरकारी होस्पिटल में इलाज! पहले दिल्ली सरकार ट्रॉमा सेन्टर और बाद में AIIMS ट्रामा सेंटर ने इलाज से किया इनकार। pic.twitter.com/f37oW3BWUb
— Ashok Agarwal (@socialjurist) July 28, 2020
उन्होंने कहा कि चार-पांच घंटे की मशक्कत के बाद उसे 25 जुलाई को उसे एडमिट किया और 27 तारीख को सुबह डिस्चार्ज कर दिया, यह कह कर कि दिल्ली सरकार के इस ट्राम सेंटर में एमआरआइ और पैथोलाॅजी सर्विस नहीं है, इसलिए हाइयर ट्रामा सेंटर में ले जाने की जरूरत है। उसे एम्स के ट्रामा सेंटर में ले जाने का सुझाव भी दिया गया।
इसके बाद उसी दिन सुबह उसे लेकर लोग एम्स ट्रामा सेंटर पहुंचे, वहां कहा गया कि बेड खाली नहीं है इसलिए दाखिला नहीं कर सकते हैं। सुबह से वह बच्चा ट्रामा सेंटर के बाहर स्ट्रेचर पर लेटा हुआ है। अशोक अग्रवाल ने कहा कि लगता है कि ट्रामा सेंटर ने मन बना लिया है कि वह उसे इलाज नहीं देगा। उन्होंने कहा कि यह शर्म की बात है कि कानून में कहा गया कि अनाथ का माता-पिता सरकार होगी, लेकिन सरकारी अस्पताल में ही गरीब का इलाज नहीं आती।
उन्होंने कहा कि अगर वह कोई नेता, अभिनेता या सेलिब्रिटी होता तो न जाने कितने बेड उसके लिए खाली कर दिए जाते और उसे गोद में लेने के लिए तैयार रहते।