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दिल्ली

किसान आंदोलन : राजनाथ के आश्वासन के बाद दिल्ली-यूपी सीमा पर चिल्ला बाॅर्डर खोलने का दावा

Janjwar Desk
13 Dec 2020 3:12 AM GMT
किसान आंदोलन : राजनाथ के आश्वासन के बाद दिल्ली-यूपी सीमा पर चिल्ला बाॅर्डर खोलने का दावा
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शनिवार की रात दिल्ली-यूपी के बीच चिल्ला बाॅर्डर का दृश्य।

मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए कम प्रभावशाली किसान संघों व भाजपा समर्थक किसान संघों से वार्ता की रणनीति अपनायी है और यह दिखाने का प्रयास किया है कि उनका समर्थन सरकार के साथ है। इस क्रम में भारतीय किसान यूनियन के एक अलग गुट से राजनाथ व तोमर ने शनिवार को वार्ता की...

जनज्वार। किसान आदंोलन के 18 दिन दिल्ली-उत्तरप्रदेश के बीच चिल्ला बाॅर्डर खुल गया है। शनिवार रात ही वहां से वाहनों का आवागमन शुरू हो गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ किसानों की हुई वार्ता के बीच सुलह की राह निकली है। न्यूज एजेंसी एएनआइ के अनुसार, एक किसान नेता ने कहा कि हमारे नेता शनिवार को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिले और हमें हमारी मांगें पूरा करने का आश्वासन मिला, इसके बाद हमलोगों ने रास्ता खोल दिया।


राजनाथ सिंह व नरेंद्र सिंह तोमर की भारतीय किसान यूनियन के भाुन गुट के साथ शनिवार को बैठक हुई थी। यह गुट किसानों के प्रमुख नेता राकेश टिकैट की अगुवाई वाले भारतीय किसान यूनियन से अलग है। उधर, नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को हरियाणा के किसान यूनियन के साथ भी बैठक की।


इसके बाद तोमर ने दावा किया कि हरियाणा के प्रगतिशील किसान मुझसे मिले और अपना ज्ञापन मुझे अपने हस्ताक्षर के साथ सौंपा। उन्होंने कहा कि उन्होंने तीन कृषि कानून का भी समर्थन किया। तोमर ने कहा कि उन्होंने अपना अनुभव भी बताया कि कैसे यह कानून उनके लिए मददगार साबित हो रहा है।



हालांकि चिल्ला बाॅर्डर खुलने के बावजूद किसानों का आंदोलन कमजोर नहीं हुआ है। यह सिर्फ आवागमन की सुविधा के लिए उठाया गया कदम है। पंजाब, राजस्थान, हरियाणा व अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में किसानों का दिल्ली की ओर आना जारी है। किसान संगठन 14 दिसंबर यानी सोमवार को अपने तय कार्यक्रम के अनुसार, भाजपा के कार्यालयों पर धरना प्रदर्शन देंगे और अपना विरोध जताएंगे। प्रमुख किसान नेता अपने आंदोलन के अगले चरण में अनशन भी करेंगे।

दरअसल, सरकार कम प्रभावी व भाजपा समर्थक किसान संघों के जरिए अपने पक्ष में समर्थन दिखाना चाहती है। यह प्रयास भी किया जा रहा है कि किसान संघ अलग-अलग खेमे में बट जाएं और आंदोलन कम प्रभावी हो जाए।

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