Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure: Kisan Andolan के एक साल में किसानों ने क्या खोया, क्या पाया
(किसान आंदोलन का संघर्ष)
Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure: किसान आंदोलन (Farmer Protest) को आज एक साल पूरे हो गए है। जिस मांग के साथ किसानों ने इस आंदोलन (Farmers Protest) को जन्म दिया था, वह लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार पूरी हो गई। तीन कृषि कानून (Three Farm Law) वापसी के बाद क्रांतिकारी आंदोलन के एक साल (Kisan Andolan ke Ek Sal) पर दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के बीच उल्लास का माहौल है। देशभर के किसानों ने एकजुटता का संदेश देने के लिए सिंघु बॉर्डर पर जश्न की तैयारी की है। मगर आंदोलन के एक साल के दौरान किसानों ने कई उतार चढ़ाव देखें। किसानों पर कभी पानी की बौछारें की गई तो कभी कांटो के तार से रास्ता रोकने की कोशिश हुई। आंदोलनकारी किसानों को बदनाम करने की साजिश के तहत कई हत्याएं और बलात्कार जैसी घिनौनी वारदातों को अंजाम दिया गया। मगर, किसानों के मजबूत हौसले का ही नतीजा है कि केंद्र सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और कृषि कानून को वापस लेने का ऐलान करना पड़ा।
किसान आंदोलन के एक साल (One Year of Farmers Protest) पूरे होने पर उन 12 महीने की तरफ एक बार फिर से पीछे मुड़ कर देखना जरूरी है, क्योंकि यह किसान आंदोलन आने वाली कई पीढ़ियां सदियों तक याद रखेंगी। अबतक की सबसे लंबे समय तक चले इस आंदोलन के दौरान भारत के किसानों ने सालों से खोयी हुई अपनी इज्जत को फिर से हासिल किया। देश के अन्नदाता ने साबित कर दिखाया कि भारत देश आज भी किसानों प्रधान देश है और सत्ताधरी सरकार चाहे जितनी भी मजबूत क्यों न हो, उन्हें अन्नदाता के आगे झुकना पड़ेगा। मगर इन 12 महिनों में किसानों ने सिर्फ सरकार को झुकाने में कामयाब रहे नहीं बल्कि बहुत कुछ गंवाया भी है। आंदोलन के एक साल बाद भी शेष मांगो को लेकर किसानों का प्रदर्शन जारी है। किसान अब भी MSP और अन्य मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं।
आंदोलनकारी किसानों ने क्या कुछ पाया
फार्म लॉ वापस लेने के लिए मजबूर किया
वर्षों तक याद किया जाएगा आंदोलन
आंदोलनकारी किसान आज 26 नवंबर को अपने आंदोलन के एक साल पूरे होने पर जश्न मना रहे हैं। 12 महीने से चल रहा यह आंदोलन अपने आप में एतिहासिक है। एक साल के दौरान किसानों ने त्रिपाल और टेंट लगाकर बॉर्डर (Delhi Borders) को ही अपना आशियाना बना लिया था। एक तरफ जहां पुरुष अग्रिम मोर्चे पर आंदोलन कर रहे थे तो वहीं घर की महिलाएं खेती और बच्चों को संभाल रही थी। अपार धेर्य और संयम का परिचय देते हुए किसानों ने सरकार को अपनी बात मानने को मजबर कर दिया। एक साल पहले जिस मंसूबे के साथ किसानों ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी वह पूरा हो गया।
सियासी दल को झुकने पर किया मजबूर
केंद्र की मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद कई अहम फैसला लिया। कड़ी आलोचना के बावजूद भाजपा ने अपने किसी भी फैसले को कभी गलत नहीं माना। कृषि कानून बिल लाने के बाद भी सरकार को यही रुख था। मोदी सरकार के समर्थकों ने तो प्रदर्शनकारी किसानों को आतंकवादी और खालिस्तानी तक कह डाला। सरकार ने भी आंदोलन को दरकिनार कर आंखें मूद ली थी। मगर किसानों का आंदोलन हर गुजरते दिन के साथ मजबूर होता चला गया। सरकार की नींद तक खुली जब 2022 में पांच राज्यों में चुनाव आए। चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश और पंजाब में कृषि कानूनों को सबसे ज्यादा विरोध हुआ। इन राज्यों में किसानों के प्रभाव को देखते हुए मोदी सरकार ने भी मन बदलना ही सही समझा और किसानों की जिद के आगे घुटने टेक दिए।
आंदोलनकारी किसानों ने क्या कुछ खोया
700 से ज्यादा किसानों की मौत
आंदोलनकारी किसानों के लिए पिछले एक साल आसान नहीं रहे। आंदोलन के दौरान किसानों पर कभी लाठीचार्ज हुई तो कभी उनपर गाड़ी चढ़ा दी गई। लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Khiri) कांड किसे याद नहीं होगा। इस घटना में 4 किसान समेत 9 लोगों की जान चली गई थी। किसानों द्वारा पेश एक आंकड़ों की मानें किसान आंदोलन के एक साल के दौरान करीब 700 किसानों की जान चली गई। कई किसानों ने तो आत्महत्या कर ली। बंगाल से किसान आंदोलन में हिस्सा लेने पहुंची एक युवती के साथ बलात्कारकिया गया। बाद में उसकी मौत की वजह कोरोना इंफेक्शन को बताया गया। आंदोलन के दौरान 700 किसानों की मौत के पीछे की भले ही अलग अलग कहानियां हो पर यह बताती है कि सरकार ने जो फैसला एक साल बाद लिया वह अगर पहले ली जाती तो इतनी जानें बच जाती।
मृत किसानों को मुआवजा की मांग
कृषि बिल वापसी के बाद किसानों ने और भी कई मांगे सरकार के सामने रखी है। आंदोलनकारी किसान सरकार से लगातार मांग कर रही है कि प्रदर्शन के दौरान जिन 700 किसानों की मौत हुई उनके परिवार को उचित मुआवजा दी जाए।
MSP की मांग अब भी जारी
केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून (Agriculture Bill) वापस ले लिए हैं लेकिन अभी भी किसान आंदोलन पर डटे हैं। किसान अब MSP को लेकर अपनी मांगों पर अड़े हैं। बता दें कि एमएसपी सरकार द्वारा किसानों को प्रदान किया जाने वाला न्यूनतम मूल्य का सुरक्षा कवच है। एमएसपी के माध्यम से ही सरकार किसानों की उपज को एक सुनिश्चित खरीद वाले बाजार के साथ-साथ उन्हें एक गारंटीकृत मूल्य देने के लिए उनके उत्पाद को खरीदती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने का वादा किये जाने के बाद किसानों ने पीएम को पत्र लिखा है कि वे अब अपनी अन्य मांगों के लिए विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे, जिनमें से सबसे प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइस – एमएसपी) की कानूनी गारंटी है।