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लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में दलितों पर 50 दिन में हुईं 40 हिंसक वारदातें

Janjwar Desk
9 Jun 2020 8:45 AM GMT
लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में दलितों पर 50 दिन में हुईं 40 हिंसक वारदातें
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वर्तमान में तमिलनाडु में दलित जिस शोषण का शिकार हो रहे हैं उसे राजनीतिक सत्ता और अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में समझना होगा। तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन ने न्याय एवं समानता की जो लड़ाई लड़ी और जिसमें काफी हद तक सफलता भी हासिल की वो गैर-ब्राह्मणवादी उन जातियों तक ही सीमित रही जिनका समाज में प्रभाव और वर्चस्व था यानी कि बीच की जातियां।

सी लक्ष्मणन का विश्लेषण

जनज्वार ब्यूरो। कहा जाता है कि संकट में ही पता चलता है कि कोई भी व्यवस्था दुरुस्त है या नहीं। संकट की घड़ी में ही पता लगता है कि व्यवस्था कितनी महत्वपूर्ण है, कितनी स्थाई है, कितनी उपयोगी है और कितनी लचीली है। कोविड-19 महामारी के दौरान यह चिंताजनक प्रक्रिया सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक - हर क्षेत्र में व्याप्त थी और विकास की ऐसी की तैसी कर रही थी। हर तरफ यही चर्चा है कि एक 'नयी आम ज़िंदगी' के साथ जीना होगा। हालांकि अभी उसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता है।

दूसरी तरफ दलित विरोधी जाति आधारित 'पुरानी आम व्यवस्था' में थोड़ी भी कमी आना अभी बाकी है। सच तो ये है कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान तमिलनाडु में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही हुई है। लॉकडाउन के 50 दिनों के भीतर-भीतर राज्य में दलितों पर अत्याचार की चालीस से भी ज़्यादा घटनाएं सामने आईं हैं। इनमें हत्याएं शामिल हैं, ऑनर किलिंग शामिल हैं, जातिगत अपमान, पुलिसिया उत्पीड़न और बलात्कार शामिल हैं।

ससे भी ख़राब बात ये है कि लॉकडाउन का हवाला देकर इन अपराधों को न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने पर रोक लगा दी गयी। अगर जातिगत अपराध करने वाला बेल हासिल करने की अर्ज़ी लगाता है तो क़ानूनन यह ज़रूरी होता है कि याचिकाकर्ता को इसकी सूचना दी जाये। न्यायालयों ने लॉकडाउन का इस्तेमाल अपराध के शिकार हुए लोगों को बेल की सूचना ना देने के बहाने के रूप में करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह होता है कि अपराधी को आसानी से बेल मिल जाती है, वो वापिस समाज में लौट आता है और मनमानी तरीके से शिकायत कर्ता तथा गवाहों के साथ पेश आता है।

न जातिगत अपराधों में से ज़्यादातर तमिलनाडु के उत्तरी ज़िलों में हुए हैं जहां अति पिछड़ी जाति वाला समुदाय वनियार ज़्यादा प्रभावी है। इसके अलावा पुडुकोटाई, कन्याकुमारी और सालेम जैसे अनेक अंदरूनी और दक्षिणी ज़िलों में भी अत्याचार की इस तरह की घटनाएं घटित हुयी हैं। इन अत्याचार के शिकार दलित युवक थे जिनमें से ज़्यादातर घर से दूर शहरों और कस्बों में पढ़ रहे या नौकरी कर रहे थे और जो लॉकडाउन की घोषणा के बाद अपने पुश्तैनी गावों को लौट आये थे।

24 मार्च को लॉकडाउन लागू किये जाने के बाद मीडिया में अत्याचार की जो घटनाएं सामने आईं उनकी सूची नीचे दी जा रही है :

मार्च महीना : 6 घटनाएं

26 मार्च : आम तालाब में मछली मारने के चलते पेरियार युवकों की हिंसक पिटाई शक्तिशाली जाति समूह वनियार के युवाओं ने कर दी। यह घटना विलुपुरम ज़िले के थिरुवल्लेणारूम के अलूरीपट्टू गांव का है। केस दर्ज़ कर लिया गया है।

27 मार्च : पिछले साल नीलाकोट्टई के पास कोटाइपेरी गाँव में एक दलित युवक ने प्रभावशाली जाति की युवती कविता से शादी कर ली। कविता के परिवार द्वारा धमकाए जाने पर विवाहित जोड़ा पेरियाकुलम में रहने लगा। 16 मार्च को कविता के जुड़वा बेटे पैदा हुए। २२ मार्च को पति-पत्नी नवजात शिशुओं के साथ अपने गांव कोटाइपेरी पहुंचे। २७ मार्च को कविता के परिवार और रिश्तेदारों में से 50 लोगों का एक जत्था तलवारों और दूसरे घातक हथियारों से लैस हो उनके गांव पहुंचा और दलितों के 15 घरों पर आक्रमण करके उन्हें नुक्सान पहुँचाया।

लितों की उप-जाति पेरियर से आने वाले राजदुरई को प्रभावशाली नाडार जाति के बालमुरुगन और उसके दो साथियों ने मार-मार कर जख्मी कर दिया। इसकी शिकायत दर्ज़ कर दी गई है। यह घटना थूठुकुड़ी ज़िले में पेरुचेंदूर के पास थोपुराई गांव में घटी थी।

1 मार्च : चेन्नई में काम करने वाला एक दलित युवक सुधाकर अपने गांव मोरप्पाथंगल लौटा था। यह गांव तिरुवन्नमलाई ज़िले में अरनी कस्बे के पास है। सुधाकर के वनियार जाति की एक लड़की परिमला से संबंध थे। लड़की के पिता मूर्ती और एक रिश्तेदार जयकुमार ने सुधाकर की नृशंस हत्या कर दी। दोनों अपराधियों को वेल्लोर जेल भेज दिया गया।

30 मार्च : एक अरुणथतियार दलित युवक पंडियन की कल्लाकुरुचि ज़िले के उलुंदारपेट के पास अथिपक्कम गांव में वहां की प्रभावशाली जाति वनियर् के लोगों ने बिजली का करेंट लगा हत्या कर दी। पंडियन का दोष यह था कि वह एक वनियर लड़की से प्रेम करता था।

31 मार्च : इंजीनियरिंग के एक छात्र गौतम पेरियन को तिरुवन्नमलाई ज़िले के चेंगम के पास स्थित गांव कुप्पानाथम में ईस्वरन नामक एक पुलिस कॉन्स्टेबल ने उस समय पीट दिया जब वह अपनी बहन की दोस्तों से बात कर रहा था। उसने जो टी-शर्ट पहनी थी उस पर बाबा साहेब आंबेडकर का चित्र छपा था। बहुत प्रयास करने के बाद ही वे कॉन्स्टेबल ईस्वरन के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ करवाने में सफल हो सके। पुलिस वाले के खिलाफ दलित/आदिवासी क़ानून के तहत कार्यवाई की गयी और उसे निलंबित कर दिया गया। लेकिन आज तक न तो उसकी गिरफ्तारी हुयी है और ना ही उसे हवालात भेजा गया है।

अप्रैल महीना : 17 घटनाएं

2 अप्रैल : अरुणथतियार दलित जाति के पति-पत्नी को प्रभावशाली थेवर जाति के ग्रामीणों ने बुरी तरह से पीट डाला। उनका अपराध बस इतना सा था कि वे आम सड़क पर चल कर जा रहे थे। घटना सिवगंगाई ज़िले में मानमादुरई तालुक के मुन्किलरानी गांव की है।

4 अप्रैल : गांव के अरुणथतियार दलितों को पूर्व मंत्री के पुत्र और पशु विक्रेता शक्तिवेल गौंडार ने पीट-पीट कर मार डालने की धमकी दे डाली थी। पिटाई का कारण यह था कि इन लोगों ने स्थानीय चुनावों में सत्तारूढ़ दल एआईएडीएमके के पक्ष में वोट नहीं डाला था जबकि प्रभावशाली जाति यह तय कर चुकी थी कि गांव के वोट किसे पड़ेंगे। यह घटना तिरुपुर ज़िले के पप्पामपलयम गांव की है।

6 अप्रैल : वेप्पनपट्टी गांव के एक दलित भारतीराज ने पुडुकोट्टई ज़िले की वीरालक्ष्मी के साथ प्रेम विवाह किया। प्रभावशाली जाति के वीरालक्ष्मी के माँ-बाप ने उन्हें धमकाया। युवा दम्पति ने पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज़ कराई।

11 अप्रैल : अरुणथतियार दलितों के एक समूह ने रात के खाने के लिए गाय का मांस पकाया। चूंकि बैल की एक टांग टूट गई थी इसलिए उसे मार दिया गया। देर शाम म्युनिसिपल कमिश्नर ससिकला पुलिस बल के साथ गांव में पधारीं और उन्होंने पके हुए मीट पर ज़हर उड़ेल दिया। यह घटना तिरुपुर ज़िले की वेलाकोविल म्युनिसिपल्टी के चोरियांकीनाथुपालयम गांव में घटी थी।

14 अप्रैल : अरुणथतियार दलित समुदाय की अनीता को सरसू और उसके पति ने चप्पलों से पीटा। ये दोनों ही वनियार जाति से आते हैं। इसके पीछे कारण ये था कि अनीता ने आम लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले नल से पीने का पानी ले लिया था। अनुसूचित जाति एवं जनजाति कानून २०१५ के तहत आइलपेट्टी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज़ कर ली गयी। विपक्षी द्वारा अनीता एवं अन्य तीन लोगों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज़ करा दी गयी। यह घटना नमक्कल ज़िले में रसिपुरम तालुक के समथुवापुरम में घटी।

21 अप्रैल : मुरुगंदम नामक एक एमबीए स्नातक दलित युवक के 4 साल से भानुप्रिया के साथ प्रेम सम्बन्ध थे। भानुप्रिया पुदुकोट्टई ज़िले के करमबामपड़ाई गांव की प्रभावशाली जाति से आती है। 21 अप्रैल को दोनों ने शादी कर ली। इस शादी से भानुप्रिया का परिवार नाराज़ था। भानुप्रिया के 15 रिश्तेदारों ने मुरुगंदम पर हमला बोल कर भानुप्रिया को अगवा कर लिया। बाद में एविडेन्स नामक एनजीओ के हस्तक्षेप करने पर उसे रिहा किया गया।

22 अप्रैल : 33 साल की एक अरुणथातियार दलित महिला एस अमसावल्ली सालेम ज़िले में तारामंगलम के पास ओमालुर ब्लॉक में कोनकापड़ी (दलित महिलाओं के लिए आरक्षित) ग्राम पंचायत की अध्यक्ष थी। 22 अप्रैल को उसे ना केवल अपना काम करने से रोका गया बल्कि वार्ड सदस्य मोहन ने उसे गाली भी दी। मोहन शक्तिशाली वेलाला गौंडर जाति का है और पूर्व पंचायत अध्यक्ष( उस समय सामान्य महिलाओं के लिए आरक्षित) का पति भी है।

22 अप्रैल : प्राइमरी एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव बैंक के निर्वाचित सदस्य धनपाल को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करने से सुब्रमणि द्वारा रोका गया। सुब्रमणि प्रभावशाली नादिर जाति से आता है। यह घटना सालेम ज़िले में घटी।

23 अप्रैल : कुड्डालोर ज़िले में वृद्दाचलम के पास रसेन्द्रापट्टिनम गांव के प्रधान सदियां पेपरन ने दावा किया कि उसने और दूसरे प्रधानों ने भी ऐसी ही समस्या का सामना किया है, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान।

24 अप्रैल : तेनकासी ज़िले के सिवागिरी तालुक के रामचन्द्रपुरम गांव में प्रभावी जाति के लोगों ने अरुणाथतियार दलितों को आम सड़क का इस्तेमाल करने से रोका और उन्हें हिंसा का शिकार भी बनाया।

24 अप्रैल : तिरुवन्नमलाई ज़िले के कीलपचूरथांडा गांव में प्रभावी जाति के 15 लोगों के समूह ने ज़मीन-विवाद के चलते दलितों पर हमला बोल दिया। हमलावरों ने दलितों को ज़मीन छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। 12 लोगों को न्यायिक हिरासत में लिया गया। 7 लोगों का अस्पताल में इलाज किया गया। भीड़ ने जेसीबी की मदद से दलितों के घरों को तहस-नहस कर दिया।

24 अप्रैल : नए-नए बसे कल्लाकुरुचि ज़िले के उलुंदारपेट कस्बे में वेलिचम टीवी के एक रिपोर्टर आदि सुरेश की गावं के जातिवादी गुंडों ने जम कर पिटाई कर दी। दरअसल इन गुंडों ने उलुंदनवर कोइल गवर्न्मेंट मिडिल स्कूल की दीवार पर लगे बाबा साहब आंबेडकर के चित्र को नुक्सान पहुंचाया था। इसी नुक्सान की रिपोर्टिंग करने के कारण रिपोर्टर की पिटाई की गयी थी।

24 अप्रैल : देवराज और हरिहरन श्रीरंगमपट्टी पहुँचने पर प्रभावशाली जाति समूह द्वारा गरियाए और पीटे जाते हैं। इस अपराध के लिए तीन लोगों को बंदी बना लिया जाता है। यह घटना दिंदिगुल ज़िले के अय्यामपट्टी गांव में घटी।

25 अप्रैल : बदला लेने की खातिर कुड्डालोर ज़िले के विदुथलई चिरुठेंगाल काची नेता के पिता की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गई।

25 अप्रैल : चिदंबरम ज़िले में नटराजन नामक ५५ वर्षीय दलित की नृशंस ह्त्या कर दी गयी।

27 अप्रैल : स्थानीय झगड़े को लेकर तिरुनेलवेली ज़िले में वल्लियूर के पास वेप्पनकाडू गांव में तीन दलित युवकों को लैम्प पोस्ट से बाँध दिया गया।

28 अप्रैल : प्रभावशाली जाति के चार युवक बालकृष्णन नामक दलित के खेत से आम चुराते हुए पकडे गए। बालकृष्णन को गाली देने के एवज में प्रभावशाली जाति के सुभैय्या और अन्य तीन लोगों को जेल भेज दिया गया। यह घटना दिंदिगुल ज़िले में नत्थम के पास लिंगवाड़ी गांव में घटी।

मई महीना : 16 घटनाएं

1 मई : कुड्डालोर ज़िले में मंजाकुप्पम पोस्ट ऑफिस के पास बाबा साहब आंबेडकर की मूर्ती को अपवित्र किया गया।

2 मई : कन्याकुमारी ज़िले के आनंदी नगर कॉलोनी में एक दलित युवक विनोद की प्रभावशाली जाति की लड़की के साथ विवाह करने के कारण ह्त्या कर दी गयी। २ मई को जेनिसटर्न ने विनोद की ह्त्या कर दी। अंसारीपल्लम पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज़ की गयी और अपराधी को गिरफ्तार कर लिया गया।

4 मई : पंचायत प्रमुख कोरावर जाति की सेल्वी को प्रभावशाली कुप्पुसामी जाति के व्यक्ति द्वारा जाति-सूचक गालियां दी गईं और पंचायत का काम करने से.रोका गया।तिरुपुर ज़िले में दारपुरम पंचायत यूनियन के गौंडाचिपुडुर गांव में उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज़ कराई।

6 मई : एरोडे ज़िले के बवानीअम्मपिटई नेरूचीपेत्तई में सफाई कर्मचारी बालन काम करने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मर गया। उसका परिवार यह देख कर चकरा गया कि सरकारी अधिकारियों ने बालन का मृत शरीर एक हाथ से खींचने वाले छकड़े से घर भेज दिया।

6 मई : प्रभावशाली जाति के मालिक नीलकांतन के खेत में नहीं आने के कारण राजेश और उसकी माँ राजकुमारी पर हँसिये से हमला किया गया। हमला पुलिस के सामने हुआ। यह घटना पुड्डुकोट्टई ज़िले में अरनथांगी के पास वैम्पाकुडी गांव में घटी।

7 मई : पुडुकोट्टई ज़िले के कर्म अबाविदुथी गांव के दलित समुदाय के मनोहरन पर प्रभावी जाति के पलराज और अन्य 10 से भी ज़्यादा व्यक्तियों ने हिंसात्मक हमला बोल दिया। उनके खिलाफ कमाकुडी पुलिस चौकी पर शिकायत दर्ज़ करा दी गयी।

7 मई : दलित जाति से आने वाला एक वकील ईस्वरन भारतीयर यूनिवर्सिटी के गेट नंबर २ के पास रहता है। 7 मई को जब वो खाना खा रहा था तब वडावल्ली पुलिस चौकी का सब-इन्स्पेक्टर वहां आया और उसे खूब पीटा। ईस्वरन के बाएं पैर का टखना टूट गया।

7 मई : विनोद कुमार और उसके दो दोस्तों को नल्लामयन और प्रभावी जाति के आठ दूसरे सदस्यों ने बुरी तरह पीटा। उसिलामपट्टी में शिकायत दर्ज़ कराई गयी। उनमें से पांच गिरफ्तार कर लिए गए। यह घटना मदुरै ज़िले के कीजामथारिया गावं में घटी।

8 मई : कुड्डालोर ज़िले के माथ्थुरे गांव की इंदिरा और 10 अन्य दलितों पर पुदूर पंचायत प्रधान और प्रभावशाली जाति के 10 अन्य लोगों ने घातक हमला बोल दिया। वेप्पुर पुलिस चौकी पर शिकायत दर्ज़ कराई गयी।

8 मई : आई टी सेक्टर में काम कर रहे एमसीए ग्रेजुएट नव विवाहित विष्णुप्रियम की हत्या कर दी गयी और उसके भाई को घायल कर दिया गया। वो अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच लटका है। यह हमला प्रभावशाली जाति वन्नियर्स द्वारा रचा गया था। यह घटना सलेम ज़िले के ओमालुर तालुके के फ्लॉवर बाजार क्षेत्र में घटी।

8 मई : थूथुकुड़ी ज़िले के उदयकुलम गांव में एक दलित युवक बालावेसम ने पांच साल पहले अपने घर की डीड के कागज़ गिरवी रख कर 40 हज़ार रुपये का क़र्ज़ लिया था। बालावेसम और उसके दामाद थंगराज ने क़र्ज़ की राशि जमा करके डीड के कागज़ वापिस मांगे। लेकिन उनके बीच झगड़ा बढ़ गया और देखते-देखते प्रभावशाली जाति के मुत्थूराज ने ह्त्या कर डाली। उसके खिलाफ शिकायत दर्ज़ कर ली गयी।

8 मई : रानीपेट में एक दलित युवक मिल्टन पर प्रभावशाली जाति के गिरोह ने कातिलाना हमला कर दिया।

9 मई : थंजावुअर ज़िले में पप्पांडू पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कल्लामंगलम गांव के परियर जाति के लोगों पर प्रभावशाली जाति कलार के लोगों ने जानलेवा हमला बोल दिया।

9 मई : लॉ कॉलेज के विद्यार्थी ससिकुमार पर गोपीनाथ की अगुवाई वाले एक प्रभावशाली जाति के गैंग ने जानलेवा हमला बोला और गाली-गलौच भी की। नमक्कल टाउन पुलिस चौकी पर शिकायत दर्ज़ हो गयी है। यह घटना नमक्कल ज़िले के वगुरामपट्टी गांव में घटी।

17 मई : एक अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी ७६ वर्षीय जगन्नाथन की मृत्यु हो गयी। उसके मृत शरीर को कीचड वाले रास्ते से ले जाने के लिए मजबूर किया गया। गांव का नियम है कि अगर कोई दलित मर जाता है तो उसके शरीर को अंतिम यात्रा के लिए घुमा कर चक्कर लगा कर ले जाया जायेगा ना कि आम रास्ते से ले जाया जाएगा। यह घटना तिरुवन्नामलाई ज़िले के चितानक्कल गांव में घटी।

17 मई : प्रभावशाली जाति वनियार के कुछ लोग आदि द्रविडार सड़क पर तेज़ रफ़्तार से मोटर साईकिल दौड़ा रहे थे। जब दलित जाति परियर के लोगों ने उनसे तेज़ रफ़्तार में मोटर साईकिल नहीं चलाने को कहा तो उनकी बुरी तरह से पिटाई कर दी गयी। यह घटना रानीपेट ज़िले के नेमुली तालुक के ओछेरी गांव में घटी।

25 मई : दलित जाति अरुणथतियार का एक युवक धनसेकरन को प्रभावशाली जाति वालों के एक १७ सदस्यीय गैंग ने बुरी तरह से मारा और मकानों को तहस-नहस कर दिया। उसकी मोटर साईकिल चुरा ली गयी क्योंकि वह आम सड़क पर मोटर साईकिल चला रहा था। यह घटना तिरुवन्नमलाई ज़िले में किल पेन्नाथुर तालुक के सूरियाकांठाल गांव घटी। शिकायत दर्ज़ कराई गयी और वेट्टावलावू पुलिस चौकी में केस पंजीकृत कर लिया गया।

तमिलनाडु में जातिवाद का लचीलापन

र्तमान में तमिलनाडु में दलित जिस शोषण का शिकार हो रहे हैं उसे राजनीतिक सत्ता और अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में समझना होगा। तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन ने न्याय एवं समानता की जो लड़ाई लड़ी और जिसमें काफी हद तक सफलता भी हासिल की वो गैर-ब्राह्मणवादी उन जातियों तक ही सीमित रही जिनका समाज में प्रभाव और वर्चस्व था यानी कि बीच की जातियां।

मिलनाडु में लम्बे समय से दलितों पर हो रही ज़्यादतियां राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों और दलितों के प्रति खुले रूप से दिखाई देने वाली उनकी संवेदनहीनता का ही परिणाम हैं। यही कारण है कि अत्याचार करने वालों और द्रविड़ राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं के गुण परस्पर मिलते-जुलते दिखाई देते हैं। परिणामस्वरूप सत्ता में बैठी पार्टी, वो चाहे जो भी हो, संवैधानिक उत्तरदायित्वों से अपना पल्ला झाड़ लेती है।

परोक्त टिप्पणियां डीएमके नेताओं आर एस भारती, दयानिधि मारन, टी आर बालू और दिंदिगुल श्रीनिवासन जैसे एआईएडीएमके नेताओं के सन्दर्भ में पूरी तरह से न्यायोचित लगती हैं। कोविड-19 महामारी और उसके चलते किये गए लॉकडाउन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि तमिलनाडु के द्रविड़ियन राजनीतिक दल पहले छुपा कर दलित विरोधी गतिविधियाँ करते थे लेकिन अब ऐसा खुल्लम-खुल्ला करने लगे हैं।

लॉकडाउन ने दलितों के खिलाफ अन्याय और हिंसा करने के ज़्यादा मौके और शक्ति जातिवादी ताक़तों को सौंप दी है। लॉकडाउन के दौरान जन आंदोलनों पर अंकुश लग जाता है और दलितों पर हों रहे अत्याचारों का विरोध नहीं किया जाता है। मुख्यधारा का मीडिया दलितों पर हो रहे अत्याचारों को सीमित तरीके से ही रिपोर्ट कर पाता है। और न्यायिक प्रक्रियाएं भी सीमित हो जाती हैं।

जिला प्रशासन तो वायरस के खिलाफ निषेधात्मक कदमों को लागू करवाने में ही व्यस्त रहता है। पूरी संभावना है कि इन सभी बातों ने मिलकर ताक़तवर जातियों को दलितों के खिलाफ और अधिक हिंसा करने की हिम्मत दी होगी।

(मदद करने के लिए लेखक एम सी राजन, एविडेंस कथीर और करुपैय्याह का आभार, यह लेख साभार 'द लीड' से लिया गया है।)

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