GN Saibaba News: शिंदे सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से मिला "सुप्रीम झटका", जी एन साईबाबा की रिहाई पर रोक लगाने की लगाई थी गुहार
जीएन साईबाबा केस में SC ने बॉम्बे HC के आदेश पर लगाई रोक, महाराष्ट्र सरकार 4 सप्ताह के भीतर मांगा जवाब
GN Saibaba News: एक सनसनीखेज घटनाक्रम के चलते शुक्रवार को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में मुंह की खानी पड़ी है। मामला दिल्ली यूनीवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा व अन्य लोगों से जुड़ा हुआ है। शुक्रवार को ही साईबाबा की जेल से रिहाई की बाबत बंबई उच्च न्यायालय ने एक अहम आदेश दिया था, जिसके विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
गौरतलब है कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत पांच साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को कथित माओवादी लिंक और भारत सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास के आरोप से बरी किया था। गोकरकोंडा नागा साईबाबा अपने कथित माओवादी संबंधों के लिए 2017 से नागपुर की केंद्रीय जेल में बंद थे। उनके खिलाफ पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ति रोहित देव और अनिल पानसरे की खंडपीठ ने जिस प्रकरण में जो यह फैसला सुनाया था, उसमें माओवादी होने और माओवादियों की मदद के नाम पर गिरफ्तार किये गये आरोपियों में से एक पांडु पोरा नरोटे की इस साल अगस्त में मौत हो चुकी थी। महेश तिर्की, हेम मिश्रा, प्रशांत राही और विजय नान तिर्की इस मामले में अन्य आरोपी थे। कोर्ट ने शारीरिक विकलांग साईं बाबा की तत्काल रिहाई का आदेश जारी किया था। न्यायालय के इसी आदेश के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार शुक्रवार को ही गुहार लगाने सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी। जहां महाराष्ट्र सरकार को यह तगड़ा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साईबाबा को कथित माओवादी संपर्क मामले में बरी करने के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए महाराष्ट्र सरकार को इस बात की अनुमति दे दी कि वह तत्काल सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध करते हुए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे सकती है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अदालत बरी करने के आदेश पर रोक नहीं लगा सकती क्योंकि विभिन्न पक्ष उसके सामने नहीं हैं।
इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि उसने मामले की फाइल या हाई कोर्ट के फैसले पर भी गौर नहीं किया है। आप मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने के संबंध में भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक निर्णय के लिए रजिस्ट्री के समक्ष आवेदन दे करते हैं।